मेरठ की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री से बोल्ड हो गई, चमत्कार की आस लगाए बैठी विश्व पटल पर नाम रोशन करने वाली इंडस्ट्री निराशा के अलावा कुछ नहीं लगा। उद्यमियों का कहना है कि लंबे-चौड़े दावे करने वाली केन्द्र सरकार ने बजट में स्पोर्ट्स इंडस्ट्री की पूरी तरह अनदेखी की है।
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मेरठ और जालंधर में खेल ईकाइयों का वर्चस्व है। मेरठ में स्पोर्ट्स कारोबार से 35 हजार से ज्यादा परिवार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। इन ईकाइयों में विश्वस्तरीय क्रिकेट किट, एथलेटिक्स इक्युमेंट्स, टेबिल टेनिस, फुटबॉल, हॉकी समेत सभी तरह के स्पोर्ट्स गुड्स बनाए जाते हैं।
ग्लोबलाइजेशन के चलते स्पोर्ट्स इंडस्ट्री को कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। आम बजट से काफी उम्मीदे थी, लेकिन निराशा हाथ लगी।
पुनीत मोहन शर्मा, अध्यक्ष ऑल इंडिया स्पोर्ट्स एंड मैन्युफैक्चर्स
सालाना डेढ हजार करोड़ के कारोबार की मेरठ में 2500 से ज्यादा छोटी-बड़ी स्पोर्ट्स गुड्स ईकाइयां संचालित हैं। वैश्वीकरण के चलते मिलने वाली चुनौतियों के बाद भी इस उद्योग को केन्द्र सरकार से कोई सहयोग नहीं है।
क्या चाहते थे उद्यमी
- खेल उत्पादों और खेल परिधानों पर एक अप्रैल 2011 में लागू की गई एक्साइज ड्यूटी खत्म हो
- क्रिकेट बैट बनाने वाली कश्मीरी विलों से प्रतिबंद खत्म हो, इंग्लिस विलो पर छूट दी जाए
- स्पोर्ट्स उत्पादों के कच्चे माल में सब्सिडी और इंडस्ट्री के विकास को स्पेशल पैकेज
- कच्चे माल और मशीनो पर सब्सिडी
- खेल उद्योग के लिए सस्ते लोन की व्यवस्था
क्या कहते हैं कारोबारी
बीडीएम के मालिक राकेश महाजन कहते हैं, “स्पोर्ट्स उद्यमियों द्वारा दिए गए मांग पत्र पर केन्द्र ने कोई विचार नहीं किया, उनकी एक भी मांग पूरी नहीं की गई है। निराषा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा है।
स्पोर्ट्स कारोबारी नवीन कहते हैं, “स्पोर्ट्स इंडस्ट्री के उत्पादों ने ओलंपिक और कॉमनवेल्थ गेम्स में भी अपनी धाक जमाई है। बजट से इंडस्ट्री को सब्सिडी देने की पूरी उम्मीद थी।”