सीतापुर/बरेली (उत्तर प्रदेश)। पिछले हफ्ते 15 जून की शाम करीब 4 बजे 22 वर्षीय जयदयाल यादव अपने परिवार के कुछ सदस्यों के साथ बनगढ़ा गाँव में अपनी आधा हेक्टेयर जमीन पर बाजरा की फसल की सिंचाई करने के लिए घर से निकले थे, तब उन्हें क्या पता था कि वह जिंदा नहीं लौटेंगे। 22 साल के जयदयाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
जयदलाल के 20 वर्षीय भाई अमित यादव, जोकि घटना स्थल पर मौजूद थे, ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इस बात को लेकर झगड़ा हुआ था कि कौन पहले खेत की सिंचाई करेगा और जिसके कारण मेरे भाई की हत्या हो गई।”
“पाइप खेत में फैला हुआ था और हम फसल को पानी देने के लिए तैयार थे। लेकिन, तभी दूसरे किसानों ने झगड़ा करना शुरू कर दिया क्योंकि वे पहले अपनी गन्ने की फसल की सिंचाई करना चाहते थे। उनमें से एक बंदूक लाया और मेरे भाई को गोली मार दी। वह तुरंत मर गया, “अमित ने कहा।
“हम ट्यूबवेल से अपना खुद का इंजन लाए थे, लड़ाई इस बात को लेकर हुई कौन पहले सिंचाई करेगा, “अमित ने बताया, जिनके परिवार के दो और भी चोटिल हो गए हैं।
कुछ ऐसी ही घटना अगले दिन सीतापुर से करीब 100 किलोमीटर दूर हुई है। जहां पड़ोसी जिले बाराबंकी में, पानी को लेकर हुई हिंसक झड़पों में चार किसान घायल हो गए और उनमें से एक राजधानी लखनऊ के एक सरकारी अस्पताल में जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहा है।
“आशीष यादव को खेतों में सिंचाई को लेकर हुए संघर्ष में गोली मार दी गई थी, जबकि विरोधी पक्ष का भी एक सदस्य घायल हो गया है। इस मामले में छह लोगों को हिरासत में लिया गया है, “उत्तर प्रदेश पुलिस के रामनगर के सर्कल अधिकारी दिनेश कुमार दुबे ने 16 जून को प्रेस को बताया।
ग्रामीण भारत में पानी को लेकर संघर्ष आम बात है, लेकिन सिंचाई को हो रही हिंसक झड़पें चिंता का विषय हैं।
देश में हीटवेव के जल्दी आने के साथ, उत्तर प्रदेश के किसान अभी भी मानसून के आने का इंतजार कर रहे हैं। गन्ना और मेंथा जैसी फसलें पानी की कमी के कारण सूख रही हैं।
राज्य में लगभग 78 प्रतिशत सिंचाई की जरूरत भूजल स्रोतों जैसे ट्यूबवेल और कुओं से पूरी होती है, जैसा कि भूजल इयर बुक उत्तर प्रदेश 2018-2019 नोट करता है। लेकिन, भूजल पर अधिक निर्भरता के कारण राज्य के कई जिलों में जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है, जो किसानों के संकट को और बढ़ा रहा है।
बार-बार बिजली कटौती और डीजल की आसमान छूती कीमतें उनकी परेशानी को और बढ़ा रही हैं।
“जिस तरह से हम भूजल से खेतों की सिंचाई कर रहे हैं, वह बिल्कुल टिकाऊ नहीं है। भूजल भंडार अनंत नहीं हैं और यह आने वाले दशकों में हमारे लिए एक गंभीर खतरा पैदा करेगा, “वेंकटेश दत्ता, स्कूल ऑफ अर्थ एंड एनवायरनमेंटल साइंसेज, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में लखनऊ स्थित प्रोफेसर ने गाँव कनेक्शन को बताया।
सूख रहीं हैं नहरें
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, उत्तर प्रदेश में देश में नदियों और नहरों का सबसे लंबा नेटवर्क है। मंत्रालय ने एक संक्षिप्त जल निकायों पर जल निकायों का विवरण में जिक्र किया है, “नदियों और नहरों में, उत्तर प्रदेश 31.2 हजार किमी पर नदियों और नहरों की कुल लंबाई के साथ पहले स्थान पर है, जो देश में नदियों और नहरों की कुल लंबाई का लगभग 17 प्रतिशत है।”
माननीय मुख्यमंत्री श्री @myogiadityanath जी के मार्गदर्शन में सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग द्वारा 143.32 लाख हे० भूमि सिंचित की जा रही है। #JalShakti4UP pic.twitter.com/PPsTOr3m4w
— . (@UPIrrigationDep) April 6, 2022
उत्तर प्रदेश में नहर सिंचाई नेटवर्क 77,660 किलोमीटर तक है और इसमें रजबाहा (छोटी नहरें) और नाले शामिल हैं जो मुख्य नहरों से पानी को खेतों तक पहुंचाने में मदद करते हैं।
बरेली जिले के भुता प्रखंड के किसान मनोज मौर्य ने गाँव कनेक्शन को बताया, ”किसानों के लिए नहर सिंचाई के लिए सबसे सस्ता साधन है। लेकिन प्रदेश में नहरों का लंबा नेटवर्क होने के बाद भी सिंचाई की जरूरतें नहीं पूरी हो पा रहीं हैं, क्योंकि या तो नहरें टूट गई हैं या वे सूख गई हैं।”
“मेरे यहां के खेतों की कभी नहरों से सिंचाई होती थी, जोकि यहां से लगभग 250 मीटर दूर बहती है, लेकिन अब लगभग 15 साल से, मुझे ट्यूबवेल से अपनी फसलों की सिंचाई करनी होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मुख्य नहर से पानी लाने वाले छोटे नाले टूट हो गए हैं, उन पर अतिक्रमण कर लिया गया है या बस खराब हो गए हैं, “मौर्य ने आगे बताया।
15 जून को जब गाँव कनेक्शन ने सीतापुर के महोली प्रखंड के मढिया गाँव का दौरा किया तो किसान आधी रात को अपने खेतों की सिंचाई के लिए संघर्ष कर रहे थे।
Tucked in your bed to sleep?
But sleepless farmers are spending day & night in their fields under the open sky to irrigate their sugarcane crop. Canals don’t have enough water, water pumping motors don’t work due to long power cuts. Detailed ground report soon!
📹: @ramji3789 pic.twitter.com/Iny0EMZ3NG
— Gaon Connection English (@GaonConnectionE) June 15, 2022
मढ़िया गाँव के एक किसान गुड्डू ने गाँव कनेक्शन को बताया, “आस-पास के गाँवों के लोग दिन के दौरान नाले से पानी अपने खेतों में लगा देते हैं, इसलिए हमें अपनी फसलों को पानी देने के लिए पूरे दिन इंतजार करना पड़ता है।” “हम पंप नहीं चला सकते हैं, क्योंकि डीजल की कीमतें आसमान छू रही हैं। हमारे पास अपने खेतों की सिंचाई के लिए नालियों में पानी बहने का इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, “किसान ने आगे कहा।
“नहरों से खेतों में पानी लाने वाले पुराने नालियां कहीं नहीं हैं। हम खुद इन छोटी नालियों को खोदते हैं और नहर में पानी बहने का इंतजार करते हैं। भूजल स्तर भी हर साल गिर रहा है, “चिंतित किसान ने आगे कहा।
मढ़िया गाँव के एक अन्य किसान का कहना है कि ग्रामीणों द्वारा नहर के नाले का अतिक्रमण से उनके जैसे किसानों को सिंचाई करने में मुश्किल होती है।
“गाँव के कई लोगों ने नहर से निकलने वाले नालियों को तोड़ दिया है, कुछ ने तो इस पर कब्जा भी कर लिया है, “धीरज तिवारी ने गाँव कनेक्शन को बताया।
संपर्क किए जाने पर, सिंचाई और जल संसाधन विभाग में सीतापुर के एक कार्यकारी अभियंता विशाल पोरवाल ने कहा, “नहरें निश्चित रूप से सिंचाई का सबसे किफायती और आसान तरीका हैं। हम ग्रामीणों और किसानों से उम्मीद करते हैं कि वे नहरों की देखभाल करेंगे और उनका अतिक्रमण या नुकसान नहीं करेंगे।”
“अगर कोई नहरों या उनकी छोटी नालियों को नुकसान पहुंचाते हुए पाया जाता है, तो हम उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करते हैं, “पोरवाल ने कहा।
नहर नेटवर्क को बनाए रखना महंगा है। उदाहरण के लिए, सिंचाई और जल संसाधन विभाग के अनुसार अकेले सीतापुर जिले में नहर नेटवर्क की मरम्मत, रखरखाव और सिल्ट निकालने पर सालाना 2.5 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में कुल 75 जिले हैं।
सिंचाई में रुकावट न आए इसको देखने के लिए सरकारी कर्मचारी सींचपाल की नियुक्ति की जाती है, जिनकी पूरी देख रेख की जिम्मेदारी होती है।
“हर एक सींचपाल नहर के 18 किमी के हिस्से की देखभाल करता है। हमें जमीनी स्तर पर नहरों की देखभाल करने में जनशक्ति की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण इन्हें अक्सर कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, “एक कर्मचारी ने अपना नाम न लिखे जाने के शर्त पर गाँव कनेक्शन को बताया।
भूजल पर अधिक निर्भरता
भूजल इयर बुक उत्तर प्रदेश 2018-2019 के अनुसार, राज्य में लगभग 78 प्रतिशत सिंचाई ट्यूबवेल और कुओं जैसे भूजल स्रोतों से होती है। लेकिन, ग्राउंड वाटर का स्तर तेजी से गिर रहा है।
राज्य के जल शक्ति मंत्रालय द्वारा प्रदर्शित आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, प्री-मानसून सीज़न के दौरान भूजल स्तर (राज्य के लिए औसत) 2011 में 8.6 मीटर से गिरकर 2021 में 9.8 मीटर हो गया, जिसमें कुल मिलाकर 1.2 मीटर की गिरावट दर्ज की गई। इसी तरह, मानसून के बाद के मौसम के लिए, भूजल स्तर 2011 से 2021 तक 7.08 मीटर से 7.97 मीटर तक गिर गया।
भूजल स्तर में गिरावट का अर्थ है पानी निकालने में किसानों को अतिरिक्त समय और अतिरिक्त लागत।
“पानी के पंप से अपने खेतों की सिंचाई करने में लगभग दो या तीन गुना समय लगता है। डीजल करीब 100 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। कुछ साल पहले एक बीघा जमीन की सिंचाई के लिए एक लीटर डीजल लगता था। लेकिन अब, ऐसा करने में लगभग तीन लीटर लगते हैं, “सीतापुर के मढ़िया गाँव के एक किसान अनूप कुमार त्रिवेदी ने कहा।
“यहां तक कि अगर हम अपने ट्यूबवेल चलाने के लिए बिजली का उपयोग करते हैं, तो यह संभव नहीं है। बिजली दिन में केवल चार से छह घंटे ही आती है और कोई निश्चित समय भी नहीं है, “किसान ने कहा।
‘अस्थिर’ सिंचाई पद्धतियां
लखनऊ स्थित बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के वेंकटेश दत्ता ने कहा कि देश भर में जिस तरह से कृषि की जा रही है, उसमें बड़े सुधार की जरूरत है। भूजल भंडार को संरक्षित किया जाना चाहिए।
“एक लोकप्रिय राय है कि तालाबों के निर्माण से भूजल भंडार की भरपाई हो सकती है। लेकिन इसके साथ ही हमें यह भी बताने की जरूरत है कि हम इन तालाबों का निर्माण कहां करते हैं। उन्होंने आगे कहा, “मैं जो सुझाव देता हूं वह यह है कि ‘जल अभयारण्य’ उन क्षेत्रों में स्थापित किए जाने चाहिए जहां बारिश का पानी स्वाभाविक रूप से जमीन से नीचे चला जाता है।”
“एक जल अभयारण्य एक आकर्षक पर्यटन स्थल की तरह नहीं लग सकता है, क्योंकि यह केवल एक खुला मैदान है, लेकिन इस तरह प्रकृति भूजल की भरपाई करती है। एक्वीफर्स को रिचार्ज करने के लिए इसे कुछ सुपर-स्ट्रक्चर बनाने की जरूरत नहीं है, “प्रोफेसर ने बताया।
दत्ता ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि एक बाद एक एक मौसम में गन्ना और मेंथा जैसी फसलों की खेती करने से ने केवल भूजल के लिए बल्कि मिट्टी के लिए हानिकारक है।
उन्होंने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती और बाराबंकी जिले में मेंथा की खेती से किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है, लेकिन एक ही फसल की खेती बड़े पैमाने पर मिट्टी की गुणवत्ता के लिए हानिकारक है।
“एक ही फसल की खेती बार-बार करने पर मिट्टी बंजर हो सकती। प्रकृति ने उस पर पनपने के लिए केवल एक प्रकार के पौधे के लिए भूमि नहीं बनाई है। लेकिन दुर्भाग्य से, अस्थायी लाभ ने किसानों को नकदी फसलों की खेती करने के लिए आकर्षित किया है, चाहे उनकी मिट्टी या स्थलाकृति कैसी भी हो, “दत्ता ने कहा।
बाराबंकी (यूपी) से वीरेंद्र सिंह और लखनऊ से प्रत्यक्ष श्रीवास्तव के इनपुट्स के साथ।