गोरखपुर त्रासदी : इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की रिपोर्ट ने खोली सरकारी व्यवस्था की पोल

Indian Medical Association

लखनऊ। गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में पिछले दिनों 60 से ज्यादा बच्चों की माैत हो गसी थी। इस पूरे मामले में कई खुलासे पहले दिन से ही होते आए हैं। ऐसे में आज भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने आज अपनी रिपोर्ट जारी की है। आईएमए ने जो रिपोर्ट जारी की वो ये हैं…..

गोरखपुर त्रासदी से जहां कई निर्दोषों की जान गई तो वहीं इस हादसे से पूरा देश हिल गया। ये हादसा देश में बहस का एक बड़ा मुद्दा बन गया।

मामले की गंभीरता को देखते हुए भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) मुख्यालयों ने प्रोफेसर केपी कुशवाहा, पूर्व प्रधानाचार्य और प्रमुख, बाल चिकित्सा विभाग, मेडिकल कॉलेज गोरखपुर, डॉ अशोक अग्रवाल, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आईएमए और आईएमए गोरखपुर शाखा के अध्यक्ष डॉ बीबी गुप्ता को मिलाकर एक जांच समिति का गठन किया।

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समिति ने निम्नलिखित डॉक्टरों से अपने केस पेश करने से पहले उपस्थित होने के लिए कहा- जिसमें घटना के समय प्रोफेसर डॉ राजीव मिश्रा, प्रिंसिपल बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर, प्रो डॉ़ सतीश कुमार, हेड एनेस्थेसिया विभाग, मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर, डॉ महिमा मित्तल, एसोसिएट प्रोफेसर, विभाग बाल चिकित्सा संस्थान, मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर, डॉ कफील खान, सहायक प्रो और नोडल अधिकारी एन्सेफलाइटिस वार्ड, विभाग बाल चिकित्सा संस्थान मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर, डॉ एके श्रीवास्तव, मुख्य में अधीक्षक, नेहरू अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर, लेकिन, ये डॉक्टर जांच समिति के समक्ष उपस्थित होने में विफल रहे, जिसके बाद उन्होंने मेडिकल कॉलेज में बाल चिकित्सा विभाग के विभाग का दौरा करने का निर्णय लिया।

लोग बोलने में संकोच करते थे। समिति का दायरा केवल डॉक्टरों के कामकाज की जांच करना था, क्योंकि अन्य मुद्दों जैसे कि ऑक्सीजन की कमी, अपर्याप्त कर्मचारी और किसी भी संरचनात्मक कमी की जांच मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की जा रही थी।

समिति ने अखबारों और अन्य मीडिया में प्रकाशित विभिन्न रिपोर्टों पर भी ध्यान दिया जिसके बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे-

  • 10 अगस्त की रात को ऑक्सीजन की आपूर्ति थोड़ी देर के लिए बंद हुई थी।
  • तरल ऑक्सीजन सप्लायर को पिछले 5-6 महीनों से उसकी बकाया राशि नहीं दी गई थी।
  • अस्पताल और वार्ड की सफाई ठीक नहीं थी। अस्पतालों में कुत्तों और चूहों की उपस्थिति स्वीकार्य नहीं की जा सकती। ये अस्पताल परिसर के मानक पर ठीक नहीं है।
  • अस्पताल इन मामलों सहित कई अन्य बीमारियों से निपटने का प्रयास कर रहा था। लेकिन अस्पताल में मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा थी।
  • गोरखपुर और आसपास के जिलों में इंसेफेलाइटिस को नियंत्रित करने की कोई सुविधा नहीं है।
  • कर्मचारियों की कमी है – पीएडीसी/सीएचसी में बेसिक, नर्स और अन्य पैरामीडिकल स्टाफ की भारी कमी है।
  • पूर्वांचल के 10 जिलों में कर्मचारियों की कमी के कारण आईसीयू और अन्य संसाधन ठीक से काम नहीं कर रहे।
  • ऑक्सीजन की कमी के संबंध में अस्पताल प्रशासन द्वारा कोई चेतावनी जारी नहीं किया गया था, विशेषज्ञ डॉक्टरों को इसके लिए एक सप्ताह पहले बताया जाना चाहिए था, ऑक्सीजन की व्यवस्था तुरंत नहीं की जा सकती।

आईएमए के अनुसार डॉ राजीव मिश्रा और डॉ कफील खान के खिलाफ चिकित्सा नैदानिक लापरवाही का कोई सबूत नहीं है लेकिन उनके खिलाफ प्रशासनिक लापरवाही के मामले इनकार नहीं किया जा सकता सकता, इसलिए, उनके खिलाफ प्रशासनिक जांच और कार्रवाई की जा सकती है।

हमारी टीम ने पूरी जाँच की है और जो रिपोर्ट आई है उसे हमने सरकार को भेज दिया है। आगे की कार्रवाई सरकार करेगी। हम सभी डॉक्टरों के लिए काम करते हैं, इसलिए हमने डॉक्टरों को हिदायत दी है कि लापरवाही न करें।

डॉ केके अग्रवाल, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, राष्ट्रीय अध्यक्ष

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हाल ही में आई फिल्म ‘एर्लिफ्ट’ जो “खाली” करने की वास्तविक कहानी पर आधारित है, उसमें कुवैत से कई सैकड़ों भारतीयों की पहली खाड़ी युद्ध के दौरान अपने देश वापस लाया गया।

इसी तरह हम ‘ग्रीन कॉरीडोर’ के बारे में पढ़ते हैं, जिसमें बिना किसी ट्रैफिक अवरोधों के लिए कटे हुआ अंगों को गाड़ी से एक अन्य अस्पताल तक पहुंचाने के लिए स्थापित किया जा रहा है, जहां रोगी को अंग प्राप्त करने का इंतजार रहता है। यह एक आपातकालीन स्थिति है जहां समय अत्यंत महत्वपूर्ण है। गोरखपुर त्रासदी जैसी परिस्थितियों में हम ऐसा क्यों नही कर सकते। जहां हर साल इेंसेफिलाइटस जैसी महामारी आती है, इस बीमारी के कारण हर साल कई बच्चे अपनी जान गंवाते हैं।

इस त्रासदी को देखते हुए आईएमए ने भविष्य में इसी तरह की स्थिति से बचने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं-

  • एक ऐसी राज्य नीति होनी चाहिए जो गंभीर मरीजों को नजदीक में ही बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करा सके।
  • सभी मरीजों सरकारी अस्पतालों में इलाज से इंकार कर दिया, इन्हें निर्धारित दरों पर निजी क्षेत्र में उपचार की लागत के लिए पैसे वापस मिलने चाहिए।
  • अस्पतालों में सभी आवश्यक दवाओं, जांच और ऑक्सीजन का बैकअप कम से कम सप्ताह का होना चाहिए।
  • आईआरडीए ने सभी निजी अस्पतालों के लिए एनएबीएच मान्यता प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया है। इसे सभी सरकारी सरकार अस्पतालों की ओर बढ़ाना चाहिए।
  • आवश्यक दवाओं और जांच, गैर-आवश्यक दवाओं और परीक्षणों के लिए इलाज की लागत को कम करने के लिए ज्यादा बजट का आवंटन होना चाहिए।
  • देखभाल सेवाओं के लिए सभी भुगतान एडवांस या समय पर किए जाने चाहिए।
  • डॉक्टर और चिकित्सक प्रशासक भी हैं। चिकित्सीय चिकित्सा लापरवाही और प्रशासनिक लापरवाही के बीच भेद करना जरूरी है।

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