लखनऊ। गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में हाल ही में हुई 37 से ज्यादा बच्चों की मौत पर सवाल उठने लगे हैं। गोरखपुर आज से नहीं बल्कि चार दशकों से बच्चों की अकाल मौत का जिला बना हुआ है। अगर गोरखपुर एक देश होता तो उन 20 मुल्कों में शामिल होता जहां शिशु मृत्यु दर सर्वाधिक है।
हेल्थ डिपार्टमेंट के आंकड़ों के मुताबिक, गोरखपुर में पैदा होने वाले एक हजार बच्चों में से 62 बच्चों की मौत एक साल की उम्र से पहले ही हो जाती है, जबकि यूपी में एक हजार में से 48 और भारत में एक हजार में से 40 बच्चों की इस तरह मौत होती है।
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गोरखपुर जिले की शिशु मृत्यु दर दुनिया के 20 देशों से भी ज्यादा
अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) के आंकड़ों से ग्लोबल लेवल पर कॉम्पैरिजन करने पर पता चलता है तो गोरखपुर का शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) दुनिया के 20 देशों से भी ज्यादा है। हेल्थ एक्टिविस्ट बॉबी रमाकांत ने बताया कि 44.5 लाख की आबादी वाले गोरखपुर में शिशु मृत्यु दर 62 है जो आबादी के लिहाज से लिस्ट में 18वें स्थान पर है। इस तरह गोरखपुर जांबिया और दक्षिणी सूडान जैसे देशों की कतार में खड़ा हो गया है। जहां आबादी 19.18 लाख है। दोनों देशों में शिशु मृत्य दर क्रमश: 62.90 और 64.60 है। सीआईए की लिस्ट में अफगानिस्तान चोटी का देश है, जहां शिशु मृत्यु दर 112 है। जबकि माली में 100, सोमालिया में 96 सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 88 और जिनिया बिसाउ में 87 है।
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पांच वर्ष से कम उम्र की शिशु मृत्यु दर की ये हैं वजह
पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में गोरखपुर की स्थिति राष्ट्रीय और राज्य औसत की तुलना में भी काफी खराब है। भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर का औसत 50 जबकि यूपी में 62 है। गोरखपुर की बात करें तो यह औसत 76 है। स्वास्थ्य मामलों से जुड़ी आरती धर कहती हैं, ‘इतने ज्यादा शिशु मृत्यु दर की वजह कुपोषण, अधूरा टीकाकरण, खुले में शौच और गंदा पानी है।’ चौथे नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों का हवाला देते हुए आरती बताती हैं, ‘गोरखपुर में 35 फीसदी से ज्यादा बच्चे कम वजन (कुपोषित) के हैं, जबकि 42 फीसदी बच्चे कमजोर हैं।’ उन्होंने बताया कि गोरखपुर टीकाकरण के मामले में भी पीछे है। यहां हर तीन में से एक बच्चे का जरूरी टीकाकरण का चक्र पूरा नहीं हो पाता है। गोरखपुर में केवल 35 फीसदी घरों में शौचालय हैं। यहां खुले में शौच की दर ज्यादा है। इसी वजह से यहां के 25 फीसदी बच्चे डायरिया से प्रभावित हैं।
कुपोषित बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कम
बाल रोग विशेषज्ञों के मुताबिक कुपोषण और अधूरे टीकाकरण की वजह से बच्चों में इंसेफलाइटिस का खतरा बढ़ जाता है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की फैकल्टी मेंबर प्रफेसर शैली अवस्थी कहती हैं, ‘कुपोषण से पीड़ित बच्चों के अंदर इंफेक्शन से मुकाबले की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इसी वजह से डायरिया और सांस के संक्रमण जैसी आम बीमारियों से भी बच्चों की मौत हो जाती है।’
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