सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। 45 वर्षीय वीरेश शुक्ला का घर सीतापुर के मिश्रिख नगर पालिका में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां इलाज के लिए सभी स्वास्थ्य सुविधा मौजूद हैं लेकिन फिर भी, उन्हें अपने परिवार के किसी भी सदस्य को स्वास्थ्य केंद्र ले जाने या यहां तक कि दवाएं खरीदने से पहले दो बार सोचना पड़ता है।
शुक्ला बताते हैं, “स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) के परिसर में सड़ी बदबू आती है। बदबू इतनी ज्यादा है कि मुझे उल्टी आने लगती हैं। ऐसा लगता है मानों आंतड़ियां बाहर निकल आएंगीं। करोना की वजह से मैं अपने मुंह को कपड़े या मास्क से ढककर रखता हूं। उसके बाद भी यह दुर्गंध बर्दाश्त नहीं होती है।”
मिश्रिख सीएचसी में आने वाली यह बदबू पास के मैदान में मिश्रित बायोमेडिकल कचरे के डंपिंग के कारण आती है। जिसके चलते शुक्ला के साथ-साथ और भी बहुत से स्थानीय निवासी चिकित्सा सुविधाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। 30 अगस्त को गांव कनेक्शन उस जगह पहुंचा जहां अवैध रुप से कूड़ा डाला जा रहा था। वहां खून से लथपथ कपड़े, मानव ऊतक और प्लेसेंटा (गर्भनाल) पड़े हुए थे। इन पर मक्खियां भिनभिना रहीं थीं। यह बायोमेडिकल कचरा रोजाना खुले में फेंका जा रहा है। इसकी शिकायत स्थानीय ग्रामीणों ने की।
इसके अलावा बायोमेडिकल कचरे से भरी प्लास्टिक की थैलियां जिनमें सीरिंज और खून से लथपथ पट्टियों भी थीं, उन्हें इलाके के आवारा कुत्ते दांतों से चबा रहे थे।
मिश्रिख नगर पालिका के लिए काम करने वाले एक सफाई कर्मचारी राज कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया कि बायोमेडिकल कचरे को साफ करना उनके काम का हिस्सा नहीं है। लेकिन वह कचरे को साफ कर रहे हैं। अगर वह ऐसा नहीं करेंगे तो इस इलाके में रहना मुश्किल हो जाएगा।
सफाई कर्मचारी गांव कनेक्शन को बताते हैं, “बहुत ही सड़ी हुई दुर्गंध है। इसका असर मुझ पर भी पड़ता है। य़ह दुर्गंध मुझे पूरा दिन परेशान करती है। इसके चलते मैं अक्सर रात का खाना नहीं खा पाता हूं।” कुमार चिंतित होते हुए कहते हैं, ” इस्तेमाल किए गए इंजेक्शन की सुई, मास्क, दस्ताने जैसे खतरनाक कचरे को मैं अपने हाथों से उठाता हूं। मेरे मन में हमेशा किसी गंभीर बीमारी से संक्रमित होने का खतरा बना रहता है।”
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, सीतापुर में रोजाना औसतन 1020.80 किलोग्राम बायोमेडिकल कचरा निकलता है। जिले में विभिन्न स्वास्थ्य सुविधाओं से निकलने वाले इस कचरे के सुरक्षित निस्तारण का ठेका दो निजी कंपनियों को दिया गया है।
हालांकि, स्थानीय लोगों की शिकायत है कि अस्पताल का मिश्रित कचरा खुले में फेंक दिया जाता है, जिससे गंदगी तो होती ही है साथ ही बीमारियां भी फैलती हैं। लेकिन अधिकारी इस तरफ नहीं देखते हैं। उनका कहना कुछ और ही है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी राम करण ने गांव कनेक्शन को बताया, “अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र जो अपने बायोमेडिकल कचरे को खुले में फेंकते हैं हम उनके बारे में सीएमओ (मुख्य चिकित्सा अधिकारी) को सूचना देते है और ऐसे केंद्रों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। हमने मिश्रिख सीएचसी को इस तरह खतरनाक कचरे का निपटान नहीं करने का निर्देश दिया है, लेकिन आखिरकार काम तो सीएमओ की कॉल ही करती है।”
सीतापुर में बायोमेडिकल कचरे का प्रबंधन
सीतापुर में बायोमेडिकल कचरे से निपटारे के बारे में बताते हुए क्षेत्रीय अधिकारी ने कहा, “सीतापुर जिले में कुल 200 स्वास्थ्य सुविधाएं हैं और इनमें से 66 में मरीजों को भर्ती नहीं किया जाता है। इनसे कुल 1020.80 किलोग्राम बायोमेडिकल कचरा पैदा होता है।
जिले में बायोमेडिकल वेस्ट को कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी में ट्रीट करने के लिए प्राइवेट कंपनियों को टेंडर दिए गए हैं। सीतापुर में इस तरह के कचरे के उचित तरीके से निपटारे के लिए स्टार पोलुटेक प्राइवेट लिमिटेड और सिनर्जी वेस्ट मैनेजमेंट कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड नाम की दो कंपनियां जिम्मेदारी सौंपी गई है।
पिसावां ब्लॉक के चदरा क्षेत्र में स्थित, स्टार पोलुटेक को सीतापुर के निजी अस्पतालों से बायोमेडिकल कचरे को इकट्ठा करने और उसके निपटारे का काम सौंपा गया है, जबकि सिनर्जी पर सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों से कचरा उठाने की जिम्मेदारी है।
सिनर्जी कंपनी के कार्यकारी अधिकारी राकेश द्विवेदी ने गांव कनेक्शन को बताया कि उसके पास सरकारी अस्पतालों से कचरे के निपटारे का टेंडर है। लेकिन यह केवल वही कचरा इकट्ठा करता है जिसे नियमों के अनुसार तरीके से अलग-अलग करके रखा गया होता है और संबंधित बैग में ठीक से पैक किया जाता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तैयार किए गए अस्पताल कचरा प्रबंधन नियमों के अनुसार, स्वास्थ्य केंद्र पर कचरे को अलग-अलग रंग के बैग- पीले, लाल, सफेद और नीले रंग में अलग किया जाना चाहिए।
रक्त बैग, स्टॉक या सूक्ष्मजीवों के नमूने, टीके, मानव और पशु के उत्तक और अंगों के कचरे को पीले बैग में रखा जाना चाहिए।
जबकि टयूबिंग, बोतल, इंटरावेनस ट्यूब और सेट, कैथेटर, मूत्र बैग, सुई के बिना सीरिंज, सुइयों के साथ फिक्स्ड सुई सिरिंज, और दस्ताने जैसे डिस्पोजेबल कचरे को लाल बैग में रखना होता है। सफेद बैग सुई जैसी नुकीली चीजों के लिए होते हैं और नीले बैग का इस्तेमाल दवा की शीशियों सहित टूटे या फेंके गए और दूषित कांच के लिए किया जाता है।
द्विवेदी ने कहा, “सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों से कचरा लाने के लिए हमारे पास चार गाड़िया हैं। हम सीतापुर में एक महीने में कुल छह से सात टन (6,000 से 7,000 किलोग्राम) बायोमेडिकल कचरा जलाते हैं। लेकिन हम खुले में इस तरह से फेंके गए कचरे को नहीं उठाते हैं। इसे पॉलीथिन की थैलियों में पैक करना होगा। “
इस बीच, स्टार पोलुटेक के प्रतिनिधि हिमांशु बाथम ने गांव कनेक्शन को बताया, “हमारे पास अस्पतालों से रोजाना कचरा लाने के लिए पांच गाड़ियां हैं और हमारे प्लांट में 500 से 600 किलोग्राम बायोमेडिकल कचरा जलाया जाता है। अस्पतालों के हर बिस्तर से रोजाना लगभग 250 ग्राम चिकित्सा कचरा निकलता है। ऐसे एक बिस्तर के कचरे के लिए एक महीने में 200 रुपये मिलते हैं।
हालांकि, केंद्रीकृत बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट सुविधाएं होने के बावजूद भी, जिले में मिश्रित बायोमेडिकल कचरे को खुले में फेंका जा रहा है।
परेशान हैं स्थानीय निवासी
निशांत मिश्रा मिश्रिख सीएचसी में एक आपातकालीन एम्बुलेंस ड्राइवर हैं। पास के मैदान में मिश्रित बायोमेडिकल कचरे को जलाने पर आने वाली बदबू से खासे परेशान हैं।
मिश्रा बताते हैं, “जब बायोमेडिकल कचरे में आग लगाई जाती है तो दुर्गंध और भी तेज हो जाती है। इसे सहन कर पाना मुश्किल हो जाता है। हमने डॉक्टरों से शिकायत की है लेकिन वे कहते हैं कि यह कचरा ज्यादा नुकसान दायक नहीं है।”
मिश्रिख में रहने वाले 32 वर्षीय अपूर्व पांडे का घर स्वास्थ्य केंद्र से थोड़ी ही दूरी पर है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि केंद्र में बायोमेडिकल कचरे के लिए तीन कमरे हैं।
वह कहते हैं, “फिर भी वे मिश्रित कचरे को खुले में फेंक देते हैं, मुझे समझ नहीं आता क्यों।”
मिश्रिख से करीब 20 किलोमीटर दूर पिसावां प्रखंड के सीएचसी का भी यही हाल था। सेंटर के पास बायोमेडिकल कचरे को जलाया जाता है। केंद्र के एक कर्मचारी ने गांव कनेक्शन को नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कचरे का निस्तारण ठीक से नहीं किया जाता है।
अधिकारियों ने बात दूसरे पर टाल दी
मिश्रिख सीएचसी प्रभारी आशीष सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया कि उन्होंने हाल ही में स्वास्थ्य केंद्र का कार्यभार संभाला है और कचरा प्रबंधन को कारगर बनाने के प्रयास कर रहे हैं।
सिंह ने कहते हैं, “यह कचरा ज्यादा नुकसानदायक नहीं है। नगर पालिका की गाड़ी समय पर नहीं आती है जिस कारण यह कचरा इक्ट्ठा हो जाता है। लेकिन हम बायोमेडिकल कचरे का बेहतर तरीके से प्रबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं।”
इस बीच सीतापुर सीएमओ मधु गैरोला ने गांव कनेक्शन को बताया कि कचरे को लेकर इस तरह की लापरवाही और निपटारे की इजाजत नहीं है।
उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “बायोमेडिकल कचरे का कोई भी इस तरह से निपटान नहीं कर सकता है। इस तरह के खतरनाक कचरे का जब तक निपटारा नहीं होता, तब तक उसे ऐसे कचरे को रखने के लिए बने खास केंद्रों में रखा जाना चाहिए। स्वास्थ्य सुविधा देने वाला कोई भी संस्थान अगर ऐसा नहीं कर रहा है, तो हम उस पर कार्रवाई करेंगे और लिखित स्पष्टीकरण की मांग करेंगे।”
अनुवाद: संघप्रिया मौर्या