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मजदूर नहीं अब इन्हें बिजनेस वूमेन कहिए

कुछ महीने पहले तक गाँव की इन महिलाओं को अंदाज़ा नहीं था कि वो अपना कारोबार शुरू कर लेंगी। आज इन्हे न काम से निकाले जाने की चिंता है और न ही छोटी-छोटी जरूरतों के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने की; क्यों मजदूरी करने वाली महिलाएँ बन गईं हैं बिजनेस वूमेन
#women empowerment

काले-नीले तिरपाल से बने छोटे-छोटे घर में उमस भरी गर्मी में महिलाओं का समूह काम करने में जुटा हुआ है , कोई डाई तैयार कर रहा है तो कोई दोने पैक कर रहा है, तो कोई हिसाब कर रहा है कि कितने दोने पैक हो गए।

लखनऊ जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर चिनहट ब्लॉक के राम रहीम नगर की इन महिलाओं में से कोई शहर के बड़े घरों में झाड़ू पोछा तो कोई नई बनती इमारत के लिए ईंट-गारा उठाता था। एक दिन इन महिलाओं ने सपना देखा, खुद का अपना बिजनेस शुरू करने का सपना। इनकी राह इतनी आसान भी कहाँ थी, लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी और आज बन गईं हैं बिजनेस वूमेन।

बाज़ार में दोने बेचने की तैयारी कर रही मंजू गौतम बहराइच की रहने वाली हैं, कई साल पहले काम की तलाश में इनका परिवार लखनऊ आ गया। घर में पति अकेले कमाने वाले इसलिए मंजू ने भी दिहाड़ी मजदूरी करनी शुरू कर दी। लेकिन कई घंटे काम करने के बाद भी मालिक की चार बाते सुनने को मिलती। लेकिन आज मंजू आत्मनिर्भर बन गईं, मंजू बताती हैं, “एक दिन हमें स्वयं समूह के बारे में पता चला कि कैसे खुद का काम कर सकते हैं।”

वो आगे कहती हैं, “हम कई महिलाओं को घर बैठे काम मिल गया है, अब हमें काम करना अच्छा लगता है; सुबह उठते हैं और अपना काम शुरू कर देते हैं, दोपहर के बाद दो लोग माल बेचने के लिए निकल जाती हैं।”

इन महिलाओं ने साल 2022 में पुष्प स्वयं सहायता नाम का समूह बनाया, जिसमें ये हर महीने प्रति महिला 100 रुपए की बचत करती हैं। इसमें एक्शन ऐड संस्था इनकी मदद के लिए आगे आयी और दिसंबर 2023 में इनकी बस्ती में दोना पत्तल बनाने की मशीन लगवा दी गई।

अभी शुरुआती दौर में इनका मुनाफा भले ही बहुत ज़्यादा न हो पर ये इस बाद से बेहद खुश हैं कि अब इन्हें किसी की बातें नहीं सुननी पड़ती न ही अपमान सहना पड़ता है, क्योंकि ये इनका खुद का काम है जहाँ ये अपने काम की मालिक खुद हैं।

एक्शन एड से जुड़ी कहकशां परवीन गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “विचारों से आत्मनिर्भर बनने के साथ ही अगर हम विचारों से भी आत्मनिर्भर होते हैं तो महिलाएँ सशक्त बनती हैं; हमने इन महिलाओं के साथ लाइवलीहुड पर काम किया और इन्हें दोना पत्तल बनाने की मशीन यहाँ लगवाई, दस महिलाओं के इस समूह को एक-एक चीज बताई गई कि कैसे वो बिजनेस आगे बढ़ा सकती हैं।”

वो आगे कहती हैं, “हमने इन्हें मशीन के साथ दो डाई दी थी, इन्होंने अपने पैसों से तीन डाई खरीद ली है; अब इन्हें दूसरे के घरों में काम नहीं करना पड़ता है, हम उम्मीद करते हैं ये महिलाएँ ऐसे ही आगे बढ़ती रहेंगी। ”

ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार देश के 742 जिलों में कुल 84,92,827 स्वयं सहायता समूह गठित हैं, जिनमें ज़्यादातर समूहों की सदस्य महिलाएँ ही हैं।

पूनम भी उन्हीं महिलाओं में से एक हैं, दोनों को पैक करके साइकिल से दुकान-दुकान बेचने जाती हैं। एक-एक दोने को पैक करते हुए पूनम गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “हम ऐसी जगह रहते हैं, जहाँ हर मौसम में कोई न कोई परेशानी आती ही रहती है, हमारी बेटियाँ और बहुएँ किसी के यहाँ झाड़ू-पोछा करती हैं तो उनमें कोई दूसरा काम करता है, लेकिन जब मशीन वाला आया तो उसने हमें एक-एक चीज समझायी।”

वो आगे कहती हैं, “एक महीने की ट्रेनिंग के बाद अब हम खुद से ही सारा काम कर लेते हैं, अब तो हम दसों लोग मिलजुल कर काम करते हैं, कोई दोने बनाता है तो कोई पैकिंग करता है, तो कोई उसे बाज़ार में बेचने जाता है।”

“पहले दूसरे के घर में जाते थे तो उनकी डांट सुनने को मिलती थी, लेकिन अब अपना काम शुरु कर दिया तो न किसी की डांट सुनने को मिलती है और न ही काम से निकाले जाने की टेंशन होती है, “पूनम ने खुशी से कहा।

आज ये महिलाएँ गली-गली घूम कर इसकी मार्केटिंग करती हैं। अब तो अपने काम में माहिर हो गयी हैं। आज उनकी बातों और काम करने के तरीकों में आत्मविश्वास साफ झलकता है।

एक्शन ऐड संस्था यह काम सिर्फ यूपी की शहरी मलिन बस्तियों में नहीं कर रही, बल्कि ये काम भारत के 13 शहरों की 120 मलिन बस्तियों में किया जा रहा है, जिसमें 137 से ज़्यादा समूह चल रहे हैं और 4500 से ज्यादा महिलाएँ जुड़ी हुई हैं।

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