बड़ा गोबिंदपुर, झारखण्ड। बड़ा गोबिंदपुर के लोग अब भीषण गर्मी में भी पानी को लेकर कतई फिक्रमंद नहीं हैं। बारिश की एक-एक बूँद को इकठ्ठा करने की उनकी तरकीब से खाकड़ीपारा पँचायत के आदिवासी गाँव में तो लोगों की ज़िंदगी ही बदल गई है।
बड़ा गोबिंदपुर गाँव के वार्ड नंबर 7 की रहने वाली देवकी मुर्मू गाँव कनेक्शन को बताती हैं, “हमेशा से ऐसा नहीं था, हमारे गाँव में कुछ हैंडपम्प थे और कुएँ पानी का ज़रिया थे। गर्मी में तो पानी की समस्या हो जाती थी।”
देवकी ने आगे कहा, “महादेव नाला और लवभंगा नाला, पानी के अन्य स्रोत थे, लेकिन उनमें कारखानों का गंदा पानी छोड़े जाने से वे किसी काम के नहीं रहे।”
बारा गोबिंदपुर के जल संकटग्रस्त लोगों ने जब मदद के लिए गैर-लाभकारी टाटा स्टील रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी से संपर्क किया तो उसने गाँव में पानी जमा करने की पहली इकाई स्थापित की।
वार्ड नंबर 6 के राम चंद्र सोरेन गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “टाटा स्टील रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी ने हमें बताया कि अपने घरों की छतों से बारिश के पानी को कैसे इकठ्ठा कर उसका इस्तेमाल किया जा सकता है।”
लोगों को दिखाया गया कि कैसे उनकी छतों से बारिश के पानी को डोंगी नाम की पाइप के ज़रिए घर के बगल में खोदे गए एक छोटे से गड्ढे में छोड़ा जा सकता है। सोरेन ने बताया कि इन गड्ढों को एक भूमिगत पाइप से आपस में जोड़ा गया था, जो आख़िर में पानी को पास के एक कुएँ में छोड़ देता था, जिसकी गहराई 50 फीट तक थी।
छतों से बहकर आने वाले बारिश के पानी को इकठ्ठा करने से ही भूजल स्तर बढ़ गया और गाँव में पानी की स्थिति में सुधार हुआ।
“हम जो बारिश के पानी को जमा करते हैं, उससे कुएँ और हैंडपंप अब गर्मियों में नहीं सूखते हैं। हमें उनसे साल भर पानी मिलता है, और हमें पानी ख़ोजने के लिए कहीं और नहीं देखना पड़ता है, ”सोरेन ने कहा।
जिन कुओं में बारिश का पानी जमा किया जाता है, उनके 200 फीट के दायरे में स्थित हैंडपंपों और कुओं में साल भर पानी रहता है।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग
देवकी मुर्मू ने कहा, “टाटा स्टील रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी ने 2013-14 में बारा गोबिंदपुर के वार्ड नंबर 5, 6 और 7 के तीन वार्डों में 75 घरों में बारिश के पानी को जमा करने का इंतज़ाम किया। इससे आज लगभग 150 परिवारों को फ़ायदा हो रहा है।” जिन घरों के आस-पास पुराने कुएँ थे, उन्हें जल संचयन परियोजना (पानी जमा करने) के लिए चुना गया था।
“वर्षा जल संचयन से पहले, पानी सीधे खुले खेतों या सड़कों में बह जाता था और हमारे किसी काम का नहीं होता था, “उन्होंने आगे कहा।
मुर्मू के मुताबिक, स्थानीय लोगों, ग्राम प्रधान और पँचायत प्रतिनिधियों ने बारिश के पानी को जमा करने की मुहीम में पूरा साथ दिया।
“खखरीपाड़ा पँचायत के तहत कुल आठ वार्ड हैं और दूसरे पाँच वार्डों के लोगों को भी यह सुविधा मिलनी चाहिए। उद्योगों को टीएसआरडीएस की तरह आगे आना चाहिए और ग्रामीणों की मदद करनी चाहिए।” मुर्मू ने कहा, सरकार को मिट्टी के जलस्तर को बनाए रखने और बारिश के पानी को बर्बाद होने से बचाने के लिए इसे पूरे झारखंड में लागू करना चाहिए।
खाकड़ीपारा पँचायत के प्रधान कृष्णा हेंब्रम ने कहा कि कुल मिलाकर आठ वार्ड उनकी पँचायत के तहत आते हैं जिनमें करीब 400 परिवार हैं। इनमें से पाँच वार्ड बड़ा गोविंदपुर गाँव और तीन खाकरीपारा गाँव के तहत आते हैं।
प्रधान ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पांच साल पहले, राज्य सरकार ने बड़ा गोबिंदपुर के अन्य दो वार्डों में जल मीनार नामक तीन सौर आधारित पानी की टंकियों का निर्माण किया, ताकि उन्हें पानी की समस्या से निजात मिल सके।”
“2016 में, झारखंड सरकार ने वर्षा जल संचयन परियोजना शुरू की। राज्य भर में दोभा या तालाब खोदे गए। इनमें बारिश का पानी जमा होता था और गाँव के लोग इसका इस्तेमाल घरेलू और ख़ेती से जुड़े कामों के लिए करते थे। लेकिन रख रखाव के अभाव में वे बेकार हो गए,” कृष्णा हेंब्रम ने आगे कहा।
प्रधान ने कहा, “लेकिन बारा गोबिंदपुर के लोगों ने दिखाया है कि कैसे पानी की स्थिति में सुधार कर सकते हैं। दूसरे गाँवों को भी बारिश के पानी को जमा कर इस्तेमाल में लाना चाहिए।”
अब प्रदूषित नदियों पर निर्भर नहीं
हालाँकि बड़ा गोबिंदपुर, गढ़दा और आस-पास के गाँवों के पास दो नदियाँ बहती हैं, लेकिन उनका पानी इस्तेमाल के लायक नहीं है। वहाँ के लोगों की शिकायत है कि कारखानों का कचरा नदी नालों में बह रहा है।
“एक समय था जब बच्चे इन नदियों के संगम में नहाते थे, लोग इसका इस्तेमाल सिंचाई और अपने पशुओं के लिए करते थे।” गढ़डा गाँव के निवासी राकेश हेंब्रम गाँव कनेक्शन को बताते हैं।
“लेकिन अब और नहीं। पानी का इस्तेमाल हमारे ख़ेतों की सिंचाई के लिए भी नहीं किया जा सकता है। प्रदूषित नदी का पानी ज़मीन की उत्पादकता को नुकसान पहुँचाता है और फ़सल के साथ ही मिट्टी को भी ख़राब कर देता है।” राकेश ने आगे कहा।
बारिश के जमा पानी ने अब नदियों के गंदे पानी को इस्तेमाल करने की मज़बूरी खत्म कर दी है। लोगों को अब कुओं और हैंडपंपों से साफ़ पानी मिलता है।” राकेश हेंब्रम कहते हैं।