भरतपुर (राजस्थान)। पैसे की कमी के चलते किसी बेटी की शादी न रुक जाए, इसलिए भरतपुर की मोनिका जैन ने बेटियों की शादी का बीड़ा उठा रखा है। पिछले आठ सालों में मोनिका जैन ने 117 बेटियों की शादियाँ करवाई है।
राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 185 किलोमीटर दूर भरतपुर है।
राजस्थान में जलमहलों की नगरी के नाम से मशहूर डीग (भरतपुर) की मोनिका जैन (37 वर्ष) ने आख़िर इस मुहिम को कैसे शुरू किया के सवाल पर गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “साल 2016 की बात है, मैंने 70-75 साल की वृद्धा जमुना कोली को घर-घर से पोतियों की शादी के लिए ज़रूरी सामान जुटाते देखा तो मेरी आँखें भर आई और मुझे वह नज़ारा याद आ गया, जब मेरी मौसी माया जैन ऐसे ही गरीब बेटियों की शादी कराने के लिए सामान जुटाती थी और मैं उस सामान को इधर से उधर रखने में मदद किया करती थी। उस समय मैं पाँचवीं कक्षा में पढ़ती थी।”
वो आगे कहती हैं, “वृद्धा को घर-घर माँगते देखा तो मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपनी सहेली शशि गोयल के घर पहुँचकर उसे बताया। वो डीग की ही रहने वाली थी। पता किया तो वास्तविकता में वृद्धा जमुना की दो पोतियों प्रीति और सोनम की शादी होनी थी और घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी।”
मोनिका जैन ने गाँव कनेक्शन से कहा , “सहेली और पड़ोसी शशि गोयल के सहमत होते ही हम दोनों (मोनिका जैन और शशि गोयल) वृद्धा की दोनों पोतियों के कन्यादान के लिए सामान जुटाने निकल पड़े। घर-घर जाकर कन्यादान के लिए सामान माँगने लगे तो शुरूआती दौर में कई तरह की चुनौतियाँ झेली। कोई अपना घर का दरवाज़ा ही नहीं खोलता तो कोई छींटाकशी भी करता। कई लोग तो यह तक कहने से बाज नहीं आए कि वो देखो, भीख माँगने जा रही हैं।”
लेकिन समाजसेविका मोनिका जैन की इस मुहिम में धीरे-धीरे महिलाएँ जुड़ती गईं और घर-घर जाकर कन्यादान एकत्र कर गरीब बेटियों के हाथ पीले करने का सिलसिला बढ़ता गया। इन महिलाओं के साथ मिलकर मोनिका ने प्रिय सखी संस्था बनाई और उन्होंने अपने अभियान का नाम ‘कन्यादान हमारा स्वाभिमान’ रखा। उनकी संस्था डीग में ही नहीं, अब भरतपुर में भी गठित हो गई है। पड़ौसी जिला अलवर जाकर भी कोमल शर्मा के हाथ पीले करा चुकी हैं।
मोनिका बताती हैं, ” कन्यादान हमारा स्वाभियान अभियान के तहत हमने घर-घर जाकर कन्यादान का जरूरी सामान एकत्र किया। हमें गरीब बेटी के हाथ पीले कराने के लिए किसी भी गाँव, कस्बा, शहर में घर-घर जाकर माँगने में किसी तरह की शर्म नहीं आती, बल्कि हमें गर्व महसूस होता है कि हम किसी की मदद कर पा रहे हैं। कोरोना काल में भी 11 कन्याओं के हाथ पीले कराने में मदद की।”
अब तो लोग मोनिक की मदद करने को आतुर रहते हैं। यहाँ तक कि रिक्शा वाला भी सामान को बेटी के घर तक पहुँचाने का किराया नहीं लेता। हलवाई अपनी मज़दूरी छोड़ देता है। टेंट वाले नि:शुल्क टेंट लगा देते हैं तो पानी वाला भी पैसा नहीं लेता। साड़ी वाला दुकानदार बेटियों के लिए साड़ियाँ दे देता है तो किराना वाला किराने का सामान दे देता है।
मोनिका बताती हैं कि “हम गरीब बेटी के हाथों को पीला कराने के लिए उसके परिवार से किसी तरह का पैसा नहीं लेते हैं। सब कुछ निस्वार्थ सेवा की भावना से किया जा रहा है। प्रिय सखी संस्था की सदस्याएँ हर माह 200 रुपए जमा कराती हैं। शादी की सालगिरह या बेटे के जन्मदिन जैसे शुभ अवसर पर भी कुछ ना कुछ सहयोग करती रहती हैं। बेटियों की शादी के साथ ये महिलाएँ और भी तरह की मदद करती हैं।”
“कोविड महामारी के दौरान प्रिय सखी संस्था के माध्यम से कोरोना काल में गाँव वहज (डीग) में विधवा राजकुमारी जाटव की बेटी की शादी ही नहीं कराई, बल्कि उनका एक बीघा खेत भी छुड़वाया, जो एक दबंग के पास गिरवी रखा था। इसी तरह गाँव सिनसिनी (डीग) में विधवा महिला साबो जाटव की बेटी के हाथ पीले कराए और उनका घर ठीक कराया।” मोनिका ने गाँव कनेक्शन को बताया।
मोनिका के मुताबिक उनकी संस्था ने सैंत गाँव में 80 वर्षीय वृद्धा स्यामो को दो पोते एक पोती के लालन-पालन के लिए ज़रूरी सामान का इंतजाम कराया तो सैंत गाँव में ही मानसिक रूप से कमजोर कुसुम के 7 वर्षीय बेटे लखन के पालन-पोषण की व्यवस्था कराई और उनके यहाँ 12 गुणा 18 की साइज का टिनशैड डलवाया। घर में प्लास्टर और सीमेंट का फर्श कराया। भरतपुर में बसों में पानी पिलाने वाले दिव्यांग लक्ष्मण की बेटी की शादी कराने के लिए वहज गाँव से चंदा में 70 हज़ार रुपए एकत्र किए और फिर गाँव के ही 5 सदस्यों की कमेटी बनाकर बारातियों को खाना बनाने के लिए ज़रूरी किराने का सामान पहुँचाया।
डीग की 50 वर्षीय राधा कोली बताती हैं, “साल 2016 में मेरी दो बेटियों की शादी के दौरान मोनिका जैन और शशि गोयल ने बहुत मदद की थी, जिसे मैं जीवन भर नहीं भूल सकती। शादी के बाद जब भी मेरी दोनों बेटियाँ घर आती हैं तो उनसे ज़रूर मिलती हैं और उनसे (मोनिका जैन से) जो कुछ बन पड़ता है, वे बेटियों के हाथ पर ज़रूर रखती हैं।”
मोनिका बताती हैं, “आज भी कई युवतियाँ शादी के बाद मिलने आती हैं। वे अपने घर-परिवार में खुश हैं और आभार भी जताती है तो यह जान सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है।”
मोनिका जैन की मुहिम में उनके पति भी पूरा साथ देते हैं। उनके पति अमित जैन बताते हैं, “महिलाएँ जागरूक हो रही हैं और गरीब बेटियों की शादी में मददगार बनकर पुण्य का काम कर रही हैं। इनकी तारीफ सुनकर बहुत अच्छा लगता है।”
समाजसेवी मोनिका जैन की सहेली और शुरूआती दौर में उनके साथ सबसे पहले जुड़ी शशि गोयल बताती हैं, “ऐसा काम करके हमें आत्म संतुष्टि मिलती है। सेवा के बदले हमें गरीब कन्याओं की दुआएँ मिलती हैं। अब हम किसी भी घर के दरवाजे पर दस्तक देते हैं तो वे लोग समझ जाते हैं और कई बार बिना माँगे ही सामान लाकर पकड़ा देते हैं।”
किसी ज़माने में राजस्थान महिलाओं के मामले में पीछे माना जाता था लेकिन अब 21वीं सदी में यहाँ एक हज़ार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1009 है। करीब दो साल पहले नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 की रिपोर्ट में इस बात हुआ ख़ुलासा चौकाने वाला था। इससे साफ है इस राज्य में अब बेटियों को लेकर नजरियां बदल रहा है जो दूसरे राज्यों के लिए भी मिसाल है।
भरतपुर में महिला एवं बाल विकास विभाग की उप निदेशक अर्चना पिप्पल ने गाँव कनेक्शन से बातचीत में कहा कि जो संस्थाएँ सम्मेलन आदि करती हैं, उन्हें सरकारी अनुदान मिलता है। डीग में महिला का समूह प्रिय सखी संगठन के बारे में भी सुना है। उस संगठन से जुड़ी महिलाएँ गरीब युवतियों की शादी करने के लिए घर-घर जाकर नेक व पुण्य का काम कर रही हैं। ऐसे संगठन हर जगह होने चाहिए ताकि समाज में आर्थिक रूप से कम सम्पन्न लोगों की मदद हो सके।