एक गाँव का लड़का, जिसके मन में हमेशा एक ख़याल आता कि घर में कोई पीरियड्स के बारे में क्यों बात नहीं करता, इस पर बात करना गलत क्यों है? जब से होश संभाला अपने गाँव में लोगों को परेशानियों में जूझते देखा, लेकिन कभी ये नहीं सोचा था कि भविष्य में वही लड़का लोगों को उनकी परेशानियों से निकालेगा।
ये हैं हरियाणा के जींद ज़िले के खांडा गाँव के सैंडी खांडा, बीटेक की पढ़ाई की लेकिन एक एक्सीडेंट ने उनकी पूरी ज़िंदगी बदल दी, डॉक्टरों ने कहा कि उनके बचने की संभावना बहुत कम है, लेकिन कड़े संघर्ष के बाद वे बच गए। इस घटना ने उन्हें यह सिखाया कि ज़िंदगी बहुत छोटी होती है और बहुत कुछ करना है। इसी सोच के साथ, 2016 में अपनी सर्जरी पूरी होने के बाद, समाज में बदलाव लाने के लिए निकल पड़े।
सैंडी गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “जैसे पहले गाँव में पीरियड्स के बारे में बात करने में संकोच किया जाता था, घर में भी इस विषय पर चर्चा करना सही नहीं माना जाता था।”
लेकिन उस एक्सीडेंट के बाद सैंडी को लगा कि ऊपर वाले ने उन्हें दूसरी ज़िंदगी दी है, उसे समाज की सेवा में समर्पित करना चाहिए। इसी सोच के साथ उन्होंने अपने गाँव और आसपास के क्षेत्रों में बदलाव लाने का निर्णय लिया। लेकिन तब, उनके पास न तो पर्याप्त संसाधन थे और न ही सही दिशा कि क्या और कैसे करना है ये पता था।
इसके बाद, 2019 में उन्होंने ‘ग्रीन पेंसिल फाउंडेशन‘ की स्थापना की। यहाँ से उन्होंने पर्यावरण, किसानों और महिलाओं के मुद्दों पर काम करना शुरू किया।
सैंडी खांडा, ग्रीन पेंसिल फाउंडेशन के संस्थापक, कहते हैं, “हम हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक और उत्तर भारत के कई सुदूर गाँवों में जा चुके हैं। अब तक हमने लगभग 5000 से अधिक गाँवों को कवर किया है, साथ ही शहरों और स्लम में भी। हम लोगों को जागरूक करते हैं और वर्कशॉप आयोजित करते हैं ताकि वे समझ सकें कि पर्यावरण संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है।”

वे ‘पीरियड्स ऑफ प्राइड’ नामक एक अभियान चला रहे हैं, जो महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता (मेंस्ट्रुअल हाइजीन) के बारे में शिक्षित करता है और क्लॉथ पैड को प्रमोट करते हैं। इस अभियान के माध्यम से वे महिलाओं को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि कैसे कपड़े के पैड का उपयोग करके हम प्लास्टिक प्रदूषण और पीरियड वेस्ट को कम कर सकते हैं। साथ ही, वे PCOD और PCOS जैसी बीमारियों के बारे में भी जागरूकता फैलाते हैं।
सैंडी लोगों को नवीकरणीय ऊर्जा और बागवानी के बारे में समझाते हैं, जिससे उन्हें और पर्यावरण को कितना फायदा हो सकता है।
दिल्ली में वायु AQI लगातार बढ़ता जा रहा है, जो कई तरह की समस्याओं का कारण बन सकता है। सैंडी इस विषय पर गाँव कनेक्शन से चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं, “यह स्थिति बहुत गंभीर है, हमें इसे सुधारने के लिए कदम उठाने होंगे नहीं तो लोगों को कई सारी बीमारियों का सामना करना पड़ेगा ।”
जब वे गाँव जाते हैं, तो लोगों को समझाते हैं कि प्लास्टिक का कचरा कितना नुकसानदायक होता है। इसे जलाने से जहरीली गैसें निकलती हैं, और मिट्टी में फेंकने पर यह वर्षों तक मिट्टी में मिलते नहीं।
गाँव के लोगों की सोच थी कि पीरियड्स पर बात करना सही नहीं है और इस दौरान महिलाएँ अशुद्ध होती हैं, लेकिन आकाश इन भ्रांतियों को दूर कर सही जानकारी लोगों तक पहुँचाने का काम कर रहे हैं।
जार्जटाउन पब्लिक पालिसी रिव्यु (Georgetown Public Policy Review) के 2020 के रिपोर्ट्स के मुताबिक, तमिलनाडु के दो गाँवों में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि 84% लड़कियाँ मासिक धर्म के समय इस बात से अनजान थीं कि उनके साथ क्या हो रहा है। माँएँ आमतौर पर अपनी बेटियों से इस विषय पर बात नहीं करतीं। इसी तरह, 63% गाँवों के स्कूल मासिक धर्म के बारे में कोई शिक्षा नहीं देते, जिससे इस पीरियड्स को छुपाया जाता है। जागरूकता की यह कमी घरों और स्कूलों में मासिक धर्म से जुड़े कारण होती है।

गाँव में महिलाओं को पीरियड्स के बारे में समझाना कठिन था, खासकर जब एक लड़का उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा हो। लेकिन सैंडी ने महिला वालंटियर्स के साथ मिलकर इस संकोच को दूर किया। सैंडी कहते हैं, “ यह कोई छुपाने या फुसफुसाकर बात करने वाली चीज़ नहीं है, बल्कि एक सामान्य विषय है। इसके अलावा, में ये भी समझाया यह भी कि पीरियड्स के दौरान स्वच्छता का ध्यान कैसे रखा जाए।
डिंपल शर्मा, इंग्लिश ऑनर्स की छात्रा, हरियाणा से, गाँव कनेक्शन से हँसते हुए कहती हैं, “हमारे गाँव के स्कूल में सैंडी सर ने वर्कशॉप करवाई थी। जब मैंने सुना कि लोग पीरियड्स के बारे में खुले में बात कर रहे हैं, तो मुझे हिचकिचाहट हुई, लेकिन बाद में समझ आया कि यह कोई बड़ी बात नहीं है, बल्कि एक सामान्य विषय है।”
यूएन वीमेन ( UN Women) की रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2020 में 66% लड़कियों ने कहा कि वे मासिक धर्म से संबंधित उत्पाद खरीदने में असमर्थ थीं। ज्यादातर लड़कियाँ और महिलाएँ इस पर बात नहीं करती हैं।
डिंपल आगे कहती हैं, “दो साल हो गए हैं मुझे वर्कशॉप अटेंड किए हुए। तब से मैं कपड़े के पैड इस्तेमाल कर रही हूँ और दूसरों को भी इसके बारे में बता रही हूँ। मैं बताती हूँ कि कैसे इन्हें सही तरीके से साफ रखना चाहिए और इसका इस्तेमाल करने से हर महीने नया पैड खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता।”
सुलभ स्वच्छता मिशन फाउंडेशन (SSMF) द्वारा 17 जनवरी 2025 को मुंबई में जारी ‘मेनार्चे से मेनोपॉज तक की चुप्पी का मुकाबला’ वाली रिपोर्ट के अनुसार, महिला डॉक्टरों की कमी के कारण 91.7% वृद्ध महिलाएँ मासिक धर्म से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए डॉक्टर से सलाह नहीं लेतीं।
सैंडी समझाते हुए कहते हैं, “पर्यावरण, कृषि और महिलाओं की स्वच्छता आपस में जुड़े हुए हैं। अगर हम सिंगल-यूज़ सैनिटरी पैड का उपयोग करेंगे और उन्हें खेतों में खुले में फेंकेंगे, तो इससे टॉक्सिन निकलेंगे, जो पानी को प्रदूषित करेंगे और वायु प्रदूषण भी बढ़ाएँगे। यही कारण है कि हमने कपड़े के पैड को प्रमोट करना शुरू किया।”

लगभग 121 मिलियन भारतीय महिलाएँ सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं, जिससे हर साल 12.3 बिलियन नैपकिन और 1,13,000 टन कचरा होता है।
आज सैंडी की इस मुहीम में कई सारे लोग जुड़ गए हैं, आकाश महतो भी उन्हीं में से एक हैं, ‘द लॉस्ट स्प्रिंग’ की कहानी से प्रेरित होकर, आकाश महतो हमेशा सोचते थे कि कैसे वे दिल्ली जाकर कुछ कर सकें । ग्रीन पेंसिल फाउंडेशन के वालंटियर आकाश गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “कोविड के दौरान जब मैं घर पर था, तब मुझे कुछ करना था। इसलिए मैंने यहाँ जुड़ने का फैसला किया। मुझे हमेशा से पौधरोपण और जलवायू परिवर्तन में रुचि थी।”
“सैंडी सर से बहुत कुछ सीखने को मिला। वे बहुत डाउन टू अर्थ हैं। आमतौर पर लोग फाउंडर से मिलने की कोशिश करते हैं, लेकिन सैंडी सर के साथ ऐसा महसूस नहीं हुआ। हम लोगों को समझाते हैं कि पेड़-पौधे नहीं लगाने से जलवायु पर क्या असर पड़ सकता है और बारिश क्यों कम हो रही, “आकाश आगे बताते हैं।
बीटेक करने के बाद सैंडी ने भी दूसरे लोगों की तरह सोचा था कि कि पढ़ाई पूरी करने के बाद कॉर्पोरेट नौकरी करेंगे, लेकिन उनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था। समाज के लिए कुछ करने की भावना आज उन्हें इस राह पर आगे बढ़ रहे हैं।
सैंडी के माता-पिता और भाई-बहन भी इस लड़ाई में साथ देते हैं, उन्हें गर्व है कि सैंडी ने ये रास्ता चुना।