कोटा (राजस्थान)। पाँच रुपए में घर का स्वादिष्ट खाना, चौंक गए न? लेकिन ये हक़ीक़त है। राजस्थान के कोटा में ‘मुस्कान की रसोई’ में आप सिर्फ पाँच रुपए में खाना खा सकते हैं। इस रसोई को 43 साल की स्वाति श्रृंगी चलाती हैं।
मुस्कान की रसोई शुरू होने के पीछे की कहानी दिलचस्प है। पाँच रुपए में खाना खिलाने वाली स्वाति श्रृंगी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “इसकी प्रेरणा मुझे नोएडा में चल रही दादी की रसोई से मिली,जिसे अनूप खन्ना चलाते हैं। उनका एक वीडियो मैंने सोशल मीडिया पर देखा तो विचार आया कि जब दादी की रसोई में लोगों को पाँच रुपए में खाना मिल सकता है तो फिर मैं क्यों नहीं कर सकती।”
बस यही से शुरू हुई मुस्कान की रसोई, सबसे पहला काउंटर जैन सर्जिकल हॉस्पिटल के सामने 14 जुलाई, 2018 को खोला गया। उसके बाद दूसरा काउंटर न्यू मेडिकल कॉलेज के सामने और तीसरा काउंटर सुधा हॉस्पिटल के सामने है।
स्वाति आगे बताती हैं, “मैं आज भी सुबह 4 बजे जागती हूँ और स्नान-ध्यान करने के बाद सबसे पहले मुस्कान की रसोई पहुँचकर सब्ज़ी ख़ुद ही बनाती हूँ । पहले पूरा खाना मैं घर पर ही बनाती थी, तब एक ही काउंटर था।”
अस्पताल और कॉलेज के आसपास काउंटर खोलने का कारण बताते हुए स्वाति कहती हैं, “अस्पताल में आने वाले मरीज़ों के रिश्तेदारों और शिक्षा नगरी में पढ़ाई के लिए आने वाले विद्यार्थियों को घर का खाना मिल पाना बड़ी चुनौती है। ऐसे में अगर सिर्फ़ 5 रुपए में घर जैसा खाना मिल जाता है तो उनके लिए हमारी तरफ से मदद हो जाती है। पाँच रुपए अदा करने से उनका स्वाभिमान भी बना रहता है, ये नहीं लगता है कि मुफ़्त में खा रहे हैं । ”
लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाई जा सके। इसी मक़सद से यह रसोई शुरू की गई तो इसका नामकरण भी मुस्कान की रसोई किया गया। इसकी शुरूआत स्वाति ने अकेले की थी, लेकिन धीरे-धीरे और लोग जुड़ने लगे। आज उनके सहयोगी साथियों में महिला और पुरुषों की कुल संख्या 114 है।
गाँव कनेक्शन से बातचीत में स्वाति कहती हैं, “शुरुआत में पूरा ख़र्चा मैं खुद ही उठाती थी, लेकिन बाद में लोग भी सहयोग करने लगे। अब तो लोग अपने या अपने रिश्तेदारों के जन्मदिन, शादी की सालगिरह जैसे आयोजनों पर मुस्कान की रसोई से खाना बनवाते हैं। फिलहाल इसके लिए हमारे पास अब एडवांस में बुकिंग चलती रहती है।”
मुस्कान की रसोई के तीनों काउंटर से रोज़ तीन सौ लोगों को खाना उपलब्ध कराया जाता है। पिछले पाँच साल में तीन लाख से अधिक लोग इस रसोई का स्वादिष्ट खाना खा चुके हैं।
पाँच साल के इस सफ़र को याद करते हुए स्वाति श्रृंगी कहती हैं, “अनगिनत लोगों की दुआएँ मिली और यही मेरी पूँजी है, जो मेरे उत्साह को बढ़ाती रहती है।”
“इस सफ़र में सम्मान तो कई मिले, लेकिन जो मान-सम्मान मुझे 10 साल के दिव्यांग गुड्डू से मिला, उसे मैं जीवन में कभी भुला नहीं पाऊँगी। गुड्डू अब दुनिया में नहीं है, लेकिन उसे मुझसे बहुत लगाव था। उसके पिता उसे रोज़ व्हीलचेयर पर बैठा कर लाते थे। खाते समय भी वह इतना ध्यान रखता था कि मेरी स्कूटी कोई छू नहीं ले।” स्वाति ने गुड्डू को याद करते हुए बताया।
स्वाति आगे कहती हैं, “करीब दो साल पहले गुड्डू का बीमारी के कारण निधन हो गया, जिसका गम मुझे कई बार सालता है। यह ऐसा गम है, जिसे मैं जीवन भर भुला नहीं पाऊँगी और गुड्डू मेरी याद बना रहेगा।”
मुस्कान की रसोई चलाने के कारण स्वाति को कोटा ही नहीं, बल्कि दूर-दूर तक पहचान मिली। कई स्वयंसेवी और सामाजिक संगठनों ने उन्हें सम्मानित भी किया।
स्वाति के ससुर 80 साल के मदनलाल श्रृंगी कहते हैं, “मेरी पुत्रवधु बहुत ही नेक काम कर रही है। शारीरिक रूप से तो मैं इनके काम में सहयोग नहीं कर पाता हूँ, लेकिन इन्हें प्रोत्साहित करने में पीछे नहीं हटता। मेरा बेटा योगेश भी हर तरह से स्वाति की मदद करने को तैयार रहता है। मेरी इच्छा है कि यह काम कभी बंद न हो।
शुरूआती दौर में सबसे पहले मुस्कान की रसोई में सहयोग करने वाली 41 साल की सुनीता कुमावत बताती हैं कि स्वाति का यह काम मुझे भी पसंद आया तो मैं इनके साथ जुड़ गई। खाना बनाने से लेकर काउंटर पर खाना देने तक में मैं स्वाति के साथ रहती थी। खाना खाने के बाद जब लोग दुआएँ देते थे, तो हमें आत्मसंतुष्टि के साथ बहुत ख़ुशी मिलती थी।
ऐसे भी लोग हैं जो मुस्कान की रसोई पर हर दिन आते हैं। गुजरात के अहमदाबाद से कोटा में नीट की तैयारी करने आए 22 साल के संजय कहते हैं, “पिछले करीब 6 महीने से रोज़ मुस्कान की रसोई से खाना खा रहा हूँ। इतना सस्ता और इतना अच्छा खाना मिलेगा, यह तो अहमदाबाद से चलते समय सोचा भी नहीं था।”
वो आगे कहते हैं, “फिलहाल मुस्कान की रसोई का काउंटर सुबह के समय और वह भी सोमवार से शुक्रवार तक ही खुलता है। लेकिन यह काउंटर सुबह-शाम दोनों समय और सातों दिन खुले तो बहुत अच्छा रहेगा।’