एक-दो दिन नहीं, बरसों की मेहनत ने इन्हें इस मुकाम तक पहुँचाया, इंटरनेट पर छा गए हैं ये बच्चे

पिछले कुछ दिनों से बच्चों के कुछ वीडियो इंटरनेट पर छा गए हैं, लाल रंग के कपड़ों में सजे-संवरे बच्चे किसी सुपर मॉडल से कम नहीं नज़र आ रहे हैं, लेकिन शायद आपको यकीन न हो, ये सारे झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे हैं और इन्होंने ये कपड़े भी खुद से तैयार किए हैं।

यहाँ की तंग की गलियों से होकर गुजरते हैं तो गली के छोर पर एक मकान दिखाई देता है, इस तीन मंजिला मकान में चलता है इनोवेशन फॉर चेंज, जिसके हर फ्लोर पर हर दिन अलग-अलग कहानियाँ गढ़ी जाती हैं। कहीं पर बच्चे डांस कर रहे हैं तो कहीं पर बच्चे सिलाई करने में व्यस्त दिखाई देते हैं। हर कोई अपने सीखने में मशगूल है और सब में एक बात सामान्य है वो इनका मैनेजमेंट, सबको पता है कि उन्हें क्या करना है।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ का भवानीगंज मोहल्ले के इस स्कूल के इन बच्चों की तारीफ आज हर कोई कर रहा है, लेकिन इन बच्चों की कई साल की मेहनत इन्हें यहाँ तक लेकर आयी है। इसे शुरू किया है हर्षित सिंह ने, इस मुहिम को शुरू करने के बारे में हर्षित गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “कुछ दोस्तों ने मिलकर बस्ती और कम्युनिटी में काम करना शुरू किया, कई बार कम्युनिटी में विरोध भी हुए पर एक समय के बाद उन्हें समझ में आया कि हम जो कर रहे हैं, उन्हीं के लिए क्या कर रहे हैं।”

वो आगे कहते हैं, “कम्युनिटी में हम 2015-16 से काम कर रहे हैं, तब से लगातार ये सिलसिला चलता जा रहा है। हम प्रजेंट में जीने वाले लोग हैं, अगर हमने अपना प्रजेंट सुधार लिया तो फ्यूचर अपने आप सुधर जाएगा।”

सेंटर के बच्चों ने मशहूर डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी के ब्राइडल कलेक्शन को रीक्रिएट किया है। यह वीडियो इतनी शानदार क्रिएटिविटी और टैलेंट से भरा हुआ था कि खुद सब्यसाची ने इसे अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया और इसकी तारीफ भी की।

बच्चों के वायरल वीडियो पर हर्षित कहते हैं, “आज के दिन में हमारी यही कोशिश रहती है कि हम हर एक दिन को कैसे यूटिलाइज कर लें, ज्यादा से ज्यादा चीजें बच्चों को सिखा पाएँ। जैसे आज लोग बच्चों की तारीफ कर रहे हैं कि लग ही नहीं रहा कि बच्चे कैमरा पर पहली बार आए हैं, मैं इस पर यही कहना चाहूँगा कि ये बच्चों की कई सालों की, कई घंटों और कई दिनों की मेहनत है।”

यहाँ पर पढ़ने वाले ज़्यादातर बच्चों के पिता या तो प्राइवेट नौकरी करते हैं, या दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, या फिर रिक्शा चलाते हैं। राखी के पिता भी प्राइवेट नौकरी करते हैं और राखी मॉडल बनना चाहती हैं। राखी कहती हैं, “मुझे मॉडलिंग करना पसंद है, इस वीडियो में भी मैंने मॉडलिंग की है। अब तो लोग मुझे जानने लगें हैं, मैंने घर में बता दिया है कि मुझे मॉडल बनना है।”

यहाँ पर कई ऐसे भी बच्चे हैं जो कभी यहाँ पढ़ते थे आज दूसरे बच्चों को पढ़ाते हैं। हर एक बच्चे का डिपार्टमेंट बँटा हुआ है, बच्चे ही सारी जिम्मेदारियाँ देखते हैं और बड़े बच्चे छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं। यहाँ जितने भी काम है, सारे बच्चे ही करते हैं, जो डोनेशन से कपड़े आते हैं, बच्चे उनसे ड‍्रेस डिजाइन करते हैं। यही वीडियो शूट और एडिटिंग भी बच्चे ही करते हैं।”

इशिका मेकअप आर्टिस्ट बनना चाहती हैं, वो कहती हैं, “लोग कहते थे यहाँ तो सिर्फ रील ही बनती रहती है, डांस करवाते रहते हैं, पढ़ाई कब होती है? आज देखिए हमें कोई हर कोई जानने लगा है।”

हर्षित और उनके साथी विशाल कन्नौजिया की कोशिश रहती है कि सीमित संसाधनों में बच्चों को हर एक दिन कुछ सिखा पाएँ। कई बार उन्हें अभिभावकों और आसपास के लोगों का विरोध भी झेलना पड़ता है, लेकिन इनका प्रयास जारी है। रंजना कुमारी का एक ही सपना है कि वो फैशन डिजाइनर बनें, इसलिए वो हर दिन कुछ न कुछ नया बनाती रहती हैं। इस स्कूल के ज्यादातर बच्चों को गीता के श्लोक कंठस्थ है। हर दिन यहाँ 400 बच्चों के लिए खाना बनता है, तभी तो कई बच्चे घर नहीं जाना चाहते हैं।

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