हिमाचल के एक गाँव की महिला किसान कैसे बनी दूसरों के लिए मिसाल

हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति की यशी डोल्मा ने स्पीति उप मंडल के लिदांग गाँव के किसानों के लिए आर्थिक समृद्धि का नया रास्ता खोजा है।
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करीब 12000 फीट की ऊंचाई पर स्थित हिमाचल प्रदेश के लिदांग गाँव में वो सब कुछ हो रहा है जिसकी यहाँ के लोगों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

लाहौल स्पिति के काज़ा ब्लॉक के लिदांग गाँव में जहाँ ताज़ा सब्जियाँ मिलना किसी सपने से कम नहीं था वहाँ न सिर्फ ये उग रही हैं बल्कि स्थानीय किसानों को जैविक खेती से स्वरोजगार मिल गया है।

ये सबकुछ मुमकिन हुआ है इस गाँव की 42 साल की यशी डोल्मा के कारण, जिन्होंने 20 महिलाओं के साथ समूह बना कर करीब 80 बीघा ज़मीन में डॉक्टर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती से बेमौसमी सब्जियां और दूसरी फसलें उगा कर दूसरों के लिए मिसाल कायम किया है ।

जब यशी डोल्मा ने प्राकृतिक खेती की शुरूआत की तो सबको लगा कि ये क्या कर रहीं हैं और लोगों की हैरानी तब और बढ़ गई जब उन्होंने ख़ुद ही मंडी में दुकान लगानी शुरू की।

यशी डोल्मा गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “मैं भी जॉब करना चाहती थी, लेकिन जब कुछ समझ में नहीं आया तो खेती करने लगी और जब सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के बारे में पता चला तो लगा अब मुझे भी खेती में इसी तरीके को अपनाना चाहिए।”

साल 2019 में यशी का संपर्क एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी ‘आत्मा’ से हुआ। उनके लगन को देखते हुए आत्मा परियोजना की तरफ से उन्हें हिमाचल के पूर्व राज्यपाल आचार्य देवव्रत के कुरुक्षेत्र स्थित फार्म का एक्सपोजर विजिट करवाया गया।

यशी डोल्मा आगे बताती हैं, “हमारे यहाँ आत्मा प्रोजेक्ट वाले गाँव-गाँव जाकर किसानों को प्राकृतिक खेती की जानकारी दे रहे थे, कम पैसे में अच्छी खेती कैसे कर सकते हैं इसकी जानकारी दे रहे थे। जब हमने सुना तो हमें लगा की ट्राई करना चाहिए, हम कुछ दिनों के लिए कुरुक्षेत्र भी गए थे, जिसमें प्राकृतिक खेती की काफी जानकारी दी गई।”

लेकिन जब यशी कुरुक्षेत्र से लौट कर आयीं तो कोविड महामारी आ गई, इसलिए उन्होंने किचन गार्डन से शुरूआत की और सब्ज़ियाँ उगाने लगीं। यशी कहती हैं, “मैं पहले भी ज़्यादा केमिकल का इस्तेमाल नहीं करती थी, इसलिए ज़्यादा नुकसान नहीं हुआ था, अब तो पूरी तरह से प्राकृतिक खेती करती हूँ।”

यशी के पास 50 बीघा अपनी ज़मीन है, लेकिन सिंचाई की सुविधा न होने से सिर्फ चार-पाँच बीघा में ही खेती कर पाती हैं। यहाँ खेत नवंबर से अप्रैल तक बर्फ से ढ़के रहते हैं, मई से अक्टूबर तक यहाँ खेती होती है इस मौसम में वे 9 फसलें ले रही हैं। उनके पति राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय काज़ा में शिक्षक हैं और छुट्टियों में खेती में उनकी मदद करते हैं।

यशी कहती हैं, “पहले महिलाएँ दुकान लगाने का काम नहीं करती थीं, लेकिन मेरे करने के बाद अब तो दूसरी महिलाएँ भी आने लगी हैं। पहले मुझे लोग कहते थे कि इन्हें देखो अब सब्ज़ी बेचेंगी, लेकिन मैंने लोगों की बातें नहीं सुनी और अपना काम करती रही।” वो आगे कहती हैं, “अब तो पूरे गाँव की महिलाएँ सब्ज़ी बेचने जाती हैं।”

उन्होंने गाँव के अन्य किसानों को भी प्राकृतिक तरीके से विदेशी सब्जियाँ उगाने के लिए प्रेरित किया है। वह अपने प्रखंड की विभिन्न पंचायतों के किसानों को इस खेती का प्रशिक्षण देती हैं। उसके आसपास 50 से अधिक किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है।

38 साल के तंडुप छेरिंग भी यशी के साथ खेती करते हैं। तंडुप जब 26 साल के थे तभी से खेती से जुड़े हुए हैं, लेकिन पिछले तीन साल से वो भी प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। वो बताते हैं, “मैं काफी समय से खेती कर रहा हूँ, लेकिन अभी कुछ समय से प्राकृतिक खेती शुरू की है, जिसमें खर्चे कम होते हैं। अब तो हम भी मंडी में दुकान लगाते हैं, इससे लोगों को प्राकृतिक रूप से उगी सब्जियाँ मिलती रहती हैं।”

महिला दिवस 2021 के मौके पर सीडीपीओ काज़ा द्वारा यशी डोल्मा को सर्वश्रेष्ठ प्रगतिशील किसान सम्मान दिया गया। यशी को यूएचएफ नौनी, सोलन की तरफ से साल 2020 में स्पीति घाटी के सर्वश्रेष्ठ प्रगतिशील किसान का पुरस्कार भी मिला।

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