लद्दाख के दूर पहाड़ी गाँव से दुनिया भर में पहुँचा रहे लोकगीतों की धुन

पारंपरिक लोक गीत आज लोगों को दीवाना बना रहे हैं, इनकी कोशिश यही है कि अपने लोकगीतों की इस धुन को लद्दाख के पहाड़ों से लेकर दुनिया के हर एक कोने तक पहुँचाएँ।

किसी ने नहीं सोचा था कि लद्दाख की दूर बर्फ से ढके पहाड़ी गाँवों के कुछ युवाओं का यह बैंड अपने लोक गीतों के ज़रिए लोगों को दीवाना बना देगा।

कुछ साल पहले कुछ दोस्तों ने मिलकर शुरू किया था दाशुग बैंड को, सबकी एक ही कोशिश थी कि अपने लोक गीतों को दुनिया तक ले जाएँ, इसकी शुरूआत कोविड के दौरान, जब हर कोई अपने गाँव वापस लौट आया था।

इसकी शुरूआत की त्सेवांग नुरबू, आज वही इस बैंड के मुख्य गायक भी हैं, वो गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “मेरे लिए पर्सनली ये फोक साँन्ग मायने रखता है, ये सिर्फ एक गीत नहीं, हमारी संस्कृति और इतिहास की कहानी कहते हैं, जिससे हम बहुत सीखते हैं।”

वो आगे बताते हैं, “21वीं सदी में बहुत तरह के गीत हैं, हमारी कोशिश है कि कैसे अपनी माटी से जुड़े रहना है। जब बैंड बना तो मेरे अंदर था कि हमारा बैंड फोक को लेकर अगर बढ़ सकता है, हम भी बॉलीवुड और हिंदी गाने गाते थे, हमें लगा कि इसे तो सब सुनते और गाते हैं, हमारी कोशिश है कि हम अपने लद्दाखी गीतों को देश ही नहीं दुनिया तक लेकर जाएँ।”

इस बैंड का नाम भी बेहद ख़ास है, स्थानीय बोली में दा का मतलब होता है ध्वनि और शुग का मतलब ऊर्जा या शक्ति होता है।

बैंड के रिग्जिन नुरबू बताते हैं, “2020 में नुरबू ने मुझसे बात की, उसने मुझसे कहा कि हमें फोक म्यूजिक में कुछ करना चाहिए, हमें अपने म्यूजिक के लिए कुछ करना चाहिए, तब हमने म्यूजिकल सोसाइटी बनाई, देखते-देखते सरकारी विभाग से भी हमें काम मिलने लगा।

“तब हमने इसका नाम दाशुग रखा हम नई पीढ़ी को अपने लोक गीतों से जोड़ना शुरू किया। हमने लद्दाख के गीतों का फ्यूजन बनाने शुरू किया और हमने कई ओरिजनल गाने बनाने शुरू किए। अभी हम लोक गीतों को अपने अंदाज में गाते हैं, क्योंकि हमारे लोकगीत काफी लंबे होते हैं, इसलिए उन्हें अपने अंदाज में फिर से बनाते हैं, “रिग्जिन ने आगे कहा।

आज यह बैंड कई राज्यों में अपना प्रदर्शन कर चुका है, भले ही लोग इनकी बोली और भाषा न समझ पाएँ, लेकिन एक चीज वो समझते हैं, वो है संगीत की धुन जिससे वो खुद को जुड़ा महसूस करते हैं,

ट्सेवांग फुनटॉन्ग यहाँ पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाते हैं, देहरादून में पढ़ाई के दौरान उन्होंने गिटार भी बजाना सीखा और जब वापस लौटकर आए तो उन्हें लगा कि अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों को भी तो सीखना चाहिए।

ट्सेवांग फुनटॉन्ग गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “मैंने गिटार बजाना सीखा था, जब मैं वापस लद्दाख गया तो मैंने देखा कि लोग हमारे लोकल म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट को भूलते जा रहे हैं, हमारे यहां ढोलक होती है, जिसे हम दमन कहते हैं, शहनाई को सुरना कहते हैं, हमारे ईस्ट लद्दाख में गिटार जैसा वाद्य यंत्र होता है, जिसे हम ओपंग बोलते हैं। मुझे गिटार आता था, तो मुझे लगा कि मैं इसे भी सीख सकता हूँ।”

इन लोक गीतों की आवाज़ दूर शांत घाटी में गूँजती हैं, लोग इन्हें सुनकर झूमने लगते हैं, लोगों को लगता है कि चलो उनके संगीत को कोई तो दुनिया भर में पहुँचा रहा है।

ट्शिरिंग नुरबो के पास लोक गीतों का खजाना है, उन्हें हर गीत याद हैं, वो गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “जब मैं बैंड में शामिल हुआ, क्योंकि मैं बचपन से लोक गीतों को सुनता था, मुझे शुरू से यही पसंद था।”

वो आगे कहते हैं, “हमारे लिए लोक किताब एक किताब की तरह है, जैसे एक किताब में कई तरह के सिलेबस होते हैं, उसी तरह से हमारे फोक में अलग-अलग गीत होते हैं, शादी के लिए अलग गाना होता है, मॉनेस्ट्री के लिए अलग गाना होता है।”

पारंपरिक लोक गीत आज लोगों को दीवाना बना रहे हैं, इनकी कोशिश यही है कि अपने लोकगीतों की इस धुन को लद्दाख के पहाड़ों से लेकर दुनिया के हर एक कोने तक पहुँचाएँ।

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