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यहाँ बड़े मंगल पर पशुओं के लिए भी लगता है भण्डारा

मंगलवार के दिन पूरे अवध क्षेत्र में भंडारे का आयोजन होता है, कहीं पूरी-सब्जी, तो कहीं हलवा पूरी बांटी जाती है, कहा जाता है इस दिन लोगों के घरों में खाना नहीं बनता और न ही कोई भूखे पेट रहता है। लेकिन इस बार कुछ अलग हो रहा है, पशुओं के लिए भी भंडारा लग रहा है।
bada mangal

तपती दोपहर में सड़क से हटकर एक किनारे लगा पंडाल और वहाँ टेबल पर रखे कई तरह के फल और कच्ची सब्जियाँ लखनऊ के टैक्सी ड्राइवर कामता प्रसाद के लिए आम दिनों से अलग है।

छप्पन साल के कामता यहाँ रुके तो थे बड़े मंगल का प्रसाद लेने के लिए, लेकिन वे जब इस पंडाल में आये तो यहाँ उन्हें कुछ और ही दिखा।

यूपी की राजधानी लखनऊ में बड़ा मंगल पर भंडारा नयी बात नहीं है, लेकिन पूरी सब्जी की जगह फल और कच्ची सब्जी वाला भंडारा कामता जैसे कई राहगीर के लिए हैरत की बात है। दरअसल ये भंडारा नवाबों के शहर में पहली बार खास तौर पर जानवरों के लिए लगाया गया।

यहाँ मंगलवार से एक दिन पहले से ही भंडारे की तैयारियाँ शुरु हो जाती है, हर कोई अपने हिसाब से अलग-अलग चीजें लेकर मंगलवार की दोपहर पहुँच जाता है। इस भंडारे में छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक शामिल होते हैं। ये भंडारा जीव आश्रय संस्था की तरफ से लगाया जाता है।

भंडारे की इस पहल के बारे में जीव आश्रय से जुड़ी शिल्पी चौधरी बताती हैं, “इंसानों के लिए तो सैकड़ों भंडारे लगते हैं, लेकिन जानवर भूखे रह जाते हैं, जीवों को लोग भंडारे से भगा देते हैं इसीलिए हमने इसकी शुरुआत की है।”

जीव आश्रय टीम इस बार निराश्रित जानवरों को भंडारे के जरिए से भोजन उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है, साथ ही अलग-अलग जगह पर पशुओं के लिए पानी के बर्तन भी रख रही है। इस अनूठी पहल में हर जीव के लिए अलग भोजन की व्यवस्था की गयी है। भूसा, रोटी, चावल, दलिया, सोया बड़ी और कई तरह के फल जीव आश्रय संस्था के सदस्यों के सहयोग से इकट्ठा किये जाते हैं।

शिल्पी चौधरी आगे कहती हैं, “हमारी शुरू से यही कोशिश रही है कि जानवरों के लिए कुछ किया जाए, हमने देखा है कि जानवरों को भंडारे से भगाया जाता है। हमारी ज़िम्मेदारी है कि इनके लिए कुछ करें।”

जानवरों के लिए भंडारे में खाने के लिए क्या होता है? इसपर शिल्पी कहती हैं, “हमारे यहाँ गायों के लिए तरबूज, खीरा, ककड़ी, गोभी जैसी सब्जियां और हरा चारा है; कुत्तों के लिए खास खिचड़ी बनाई जाती है, हम इन्हें खिलाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों तक जाते हैं; सारी चीजें लोग दान देते हैं।”

बड़े मंगल के पीछे की क्या है मान्यता?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ज्येष्ठ माह में मंगलवार के दिन भगवान श्रीराम और हनुमान जी की पहली बार भेंट हुई थी। इसी वजह से ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले सभी मंगलवार को बड़ा मंगल के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान राम भक्त प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और वे अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं।

इसके अलावा एक अन्य कथा के अनुसार, जब महाभारत काल में महाबली भीम को अपने बल पर घमंड हो गया था, तो उनके घमंड को खत्म करने के लिए वीर बजरंगबली ने बूढ़े वानर का रूप धारण किया था। इसके साथ ही उनके घमंड को तोड़ा भी था, जिसके चलते इसे बुढ़वा मंगल भी कहा जाता है।

अवध में कब से हुई बड़े मंगल की शुरुआत?

लखनऊ से भी बड़ा मंगल की कहानी जुड़ी है। इस शहर में बड़ा मंगल बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि करीब 400 साल पहले अवध के मुगलशासक नवाब मोहम्मद अली शाह के बेटे की तबीयत बहुत खराब हो गई थी, जिसकी वजह से उनकी बेगम बेहद दुखी रहती थी।

हर संभव प्रयास के बाद भी जब उनका बेटा ठीक नहीं हुआ तो कुछ लोगों ने नवाब मोहम्मद वाजिद अली शाह की बेगम को लखनऊ के अलीगंज में स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर में मंगलवार को दुआ माँगने को कहा। लोगों के कहे अनुसार उन्होंने ऐसा ही किया जिसके थोड़े दिन बाद बेटे की तबीयत में सुधार होने लगा।

इस खुशी में अवध के नवाब और उनकी बेगम ने अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर की मरम्मत कराई, जिसका काम ज्येष्ठ माह में पूरा हुआ था। इसके बाद पूरे लखनऊ में गुड़ और प्रसाद बांटा गया। तब से बुढ़वा मंगल के दिन लखनऊ में जलपान कराने, भंडारा करने और प्रसाद बांटना शुरू हुआ।

ऐसा माना जाता है तभी से यहाँ हर साल ज्येष्ठ मास के सभी मंगलवार पर जगह-जगह भंडारे का आयोजन होता है।

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