बैंक की जॉब छोड़ छोटे से गाँव में शुरू किया स्टार्टअप, मशरूम की खेती कर महिलाओं को दे रहे हैं रोज़गार के अवसर

पिछले कई सालों से पलायन की मार झेल रहे उत्तराखंड में भी उम्मीद नज़र आने लगी है। बहुत से युवा न सिर्फ गाँव वापस आ रहे हैं, बल्कि कई लोगों को रोज़गार भी दे रहे हैं।
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एक समय था जब लक्ष्मी बिष्ट घर और खेत का काम निपटाने के बाद खाली बैठी रहती, लेकिन आजकल उनके पास समय नहीं रहता। आखिर वो मशरूम की खेती जो करने लगी हैं।

लक्ष्मी बिष्ट को घर बैठे मशरूम उगाने के बैग मिल जाते हैं और उन्हें इसे बेचने के लिए भी कहीं दूर नहीं जाना पड़ता है। ये अकेले लक्ष्मी की सफलता की कहानी नहीं है, उनके जैसी 2500 से ज़्यादा महिलाएँ आज आयस्टर मशरूम की खेती से घर बैठे बढ़िया कमाई कर रहीं हैं।

51 साल की लक्ष्मी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “हम गाँव की महिलाओं का शौक है कुछ न कुछ करते रहना, खाली नहीं बैठना है। हमारे यहाँ महिलाएँ घर का भी काम करती हैं, खेती का भी काम करती हैं, लेकिन जितना अब फायदा हो रहा है उतना कभी नहीं हुआ है।” लक्ष्मी की तरह ही उनके गाँव की रीना बिष्ट, ममता बिष्ट और रजनी बिष्ट जैसी महिलाएँ अब आत्मनिर्भर बन गई हैं।

इन महिलाओं को ये राह दिखाई है उत्तराखंड के टिहरी जिले के थौलधार विकासखंड के अंदर आने वाले भैंस कोटि गाँव के युवा कुलदीप बिष्ट ने। ऐसा नहीं है कि कुलदीप शुरू से मशरूम की खेती करना चाहते थे। कुलदीप ने एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद बैंक में नौकरी भी की, लेकिन उनका मन नौकरी में न लगा।

कुलदीप गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “पढ़ाई पूरी करने के बाद बैंक में नौकरी की , वेतन भी अच्छा था; लेकिन फिर भी दिल में सुकून नहीं था; क्योंकि मुझे गाँव से बहुत लगाव है और दादाजी भी खेती से जुड़े थे। हम लोग जॉब तो कर रहे थे लेकिन मन के अंदर शांति नहीं थी, मन में यही चलता रहता था कि हम अपने पहाड़ छोड़कर यहाँ पर काम कर रहे हैं। ” कुलदीप ने बताया।

बस फिर क्या था साल 2017 में कुलदीप नौकरी छोड़कर अपने गाँव लौट आए और मशरूम की खेती शुरू कर दी। आखिर मशरूम की खेती ही क्यों शुरु की के सवाल पर कुलदीप गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “मशरुम फार्मिंग को इसलिए चुना क्योंकि ये इंडोर होती है; इसको हम पूरे सीजन ग्रो कर सकते हैं और ये कमरे के अंदर उगाया जाता है, इसके अलावा इसमें सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें जंगली जानवर का कोई भय नहीं रहता है, बारिश का कोई भय नहीं रहता है तो इसको हम आसानी से एक कमरे में ग्रो कर सकते हैं।”

लेकिन ऐसा नहीं था कि मशरूम की खेती करना इतना आसान था, इसलिए उन्होंने अपने साथ अपने दोस्त प्रमोद जुयाल को भी जोड़ लिया। एक साल में उन्हें फायदा नज़र आने लगा और साल 2018 में उन्होंने एफएमडी फार्म्स रजिस्टर करा लिया।

बेरोज़गारों को भी देते हैं ट्रेनिंग

कुलदीप का मानना है कि गाँव में काम करने के लिए बहुत कुछ है और वो चाहते हैं कि उत्तराखंड से ये पूरे देश में ये सन्देश पहुचे कि गाँव के पास देने के लिए बहुत कुछ है और लोगों को यहाँ से पलायन करने की कोई ज़रुरत नहीं। इसके लिए वो मशरुम की खेती कैसे की जाए; इसकी ट्रेनिंग भी देते हैं जिसमें आस पास की गाँव की महिलाओं से लेकर देश के कई राज्यों से युवा आते हैं और मशरुम की खेती से लेकर उसके लिए किए जाने वाले सेटअप की भी जानकारी लेकर के जाते हैं।

कुलदीप गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “हमने ट्रेनिंग सेंटर भी शुरू कर दिया जहाँ काफी लोग आने लगे फिर हमने गवर्नमेंट के लिए भी ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया; मशरुम की खेती के लिए जो सेटअप लगता है उसकी पूरी जानकारी हम देते हैं, ट्रेनिंग सेशन में काफी लोग आते हैं और सीख के जाते हैं , हम उन्हें ये भी बताते हैं कि छोटे से लेवल से बड़े लेवल पर कैसे जाना है।”

आस पास के गाँव की महिलाओ को दे रहे रोज़गार

कुलदीप ने एक इकोसिस्टम बनाया है, जहाँ वो गाँव में ही मशरुम का अच्छा प्रोडक्शन करते हैं। ऐसा वो इसलिए भी कर पा रहे हैं क्योंकि वो आस पास की गाँव की महिलाओँ को पहले तो मशरुम की खेती की ट्रेनिंग देते हैं, उसके बाद उन्हें बैग्स अपनी तरफ से देते हैं और महिलाएँ मशरुम उगाती हैं, उनसे कुलदीप खुद ही खरीदते भी हैं, इससे गाँव की महिलाएँ अच्छा पैसा कमा पाती हैं।

कुलदीप बताते हैं, “अभी हमारे गाँव में हम 25 से 30 महिलाओं के साथ काम कर रहे हैं; मेरे खुद के गाँव में भी यूनिट है और पाँच गाँव में भी यूनिट लगी है, हमारा 50 से 60 किलों रोज़ का मशरुम निकल जाता है; जो 200 से 250 रूपए किलो मार्किट में बिक जाता है। साथ ही देहरादून में हमारा ट्रेनिंग सेंटर है और गाँव में हमारी प्रोसेसिंग यूनिट भी है, जिसको मैं बड़े लेवल पर लेकर जा रहा हूँ।”

क्या है आगे का विज़न

कुलदीप मशरूम की खेती को एक अलग मुकाम पर ले गए हैं वो न सिर्फ मशरूम की खेती कर उसे बाज़ार में बेचते हैं; बल्कि वो मशरूम से ही अलग-अलग प्रोडक्ट भी बनाते हैं, जिसे वो अपने ब्रांड फुनगु (FUNGGO) के नाम से बाज़ार में बेचते हैं। अभी फिलहाल उनके बाज़ार में दस से बारह प्रोडक्ट मौज़ूद हैं और यही नहीं उन्हें हाल ही में स्टार्टअप उत्तराखंड द्वारा टॉप 10 सर्वश्रेष्ठ स्टार्टअप के लिए भी चुना गया है।

उनका विज़न अपने ब्रांड को इंटरनेशनल लेवल पर लेकर जाना है और हर गाँव को वो मशरुम गाँव के रूप में ही देखते हैं । वो कहतें है कि “हमारा विज़न है जो घोस्ट प्लेस हो चुके हैं उनमें हम मशरुम प्रोडक्शन करें और अब हम हर गाँव को मशरुम गाँव के नज़रिए से देख रहे हैं; साथ ही जो हमारे प्रोडक्ट हैं उनको हम इंटरनेशनल लेवल पर लेकर जाएँगे ताकि लोगों को उत्तराखंड से प्रेरणा मिले कि वो पलायन न करें।”

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