गुवाहाटी, असम। पूर्वोत्तर भारत में गुवाहाटी के बाहरी इलाके में लीक से हट कर चल रहा एक स्कूल न सिर्फ गाँधी जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाता है बल्कि उनकी शिक्षा को भी उतनी शिद्दत के साथ अपनाए हुए है। दरअसल देश में ऐसे शैक्षणिक संस्थान कम ही हैं जो महात्मा गाँधी की नई तालीम नजरिए को अपनाए हुए हैं। गाँधी की यह नई तालीम कौशल विकास के साथ-साथ शिक्षा के सिद्धांत पर आधारित है।
अक्षर फाउँडेशन ने 2016 में इस स्कूल की नींव रखी थी। यहाँ वंचित परिवारों से आने वाले छात्रों को उम्र के बजाय उनके कौशल स्तर के आधार पर बाँटा जाता है। शिक्षा देने के साथ-साथ, स्कूल इन बच्चों को सिलाई, बढ़ईगीरी, बागवानी, प्रिंटिंग, अपसाइक्लिंग और प्लास्टिक उत्पादों को रीसाइक्लिंग जैसी स्किल भी सिखाता है।
इतना ही नहीं, बल्कि बच्चे इन कौशलों को सीखते हुए कमाते भी हैं ताकि वे अपने परिवार की आर्थिक मदद कर सके। ‘सीखते हुए कमाई’ असम के इस स्कूल का आदर्श वाक्य है। इस स्कूल की शुरुआत 10 बच्चों के साथ हुई थी और आज कक्षा एक से 12 तक में कुल 110 बच्चे पढ़ते हैं। यहाँ लड़कियों और लड़कों की संख्या लगभग बराबर है।
अक्षर फाउँडेशन का स्कूल एक चेंजमेकर है।
स्कूल की संस्थापक अलका सरमा ने परंपरागत तरीके से हटकर स्कूल में पढ़ाने के पीछे का कारण बताया। पूर्व प्रोफेसर और दो बार की विधायक अलका सरमा ने कहा, “हमने गुवाहाटी के बाहरी इलाके पमोही में वंचित समुदाय के बीच शिक्षा की अलख जगाने के लिए इस स्कूल को बनाया था। इस इलाके में काफी गरीबी है और साक्षरता की दर भी न के बराबर थी।”
स्कूल के संस्थापक के मुताबिक वंचित समुदाय के लोगों को शिक्षा देने में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। क्योंकि कई बच्चे कचरा बीनने का काम करते या फिर किसी छोटे-मोटे काम में लगे हुए थे , कुछ घर पर अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करते थे। इन मुश्किलों को दूर करने के लिए स्कूल ने नए तरह से पढ़ाने की शुरुआत की जिसमें बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ ज़रूरी स्किल भी सिखाई जाने लगी।
स्कूल की सह-संस्थापक पारमिता सरमा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पमोही में बहुत से परिवारों में माता-पिता दोनों दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं, जबकि बड़ी लड़कियाँ घर की ज़िम्मेदारियाँ निभाती हैं और छोटे भाई-बहनों की देखभाल करती हैं।”
परमिता सरमा ने कहा, “उनके लिए यह सोच से परे था कि बच्चे का स्कूल में बिताया गया समय उनके परिवार की आय बढ़ाने में मदद कर सकता है। इन परिवारों में धारणा यह थी कि लड़कियों को घर पर रहना चाहिए और उन्हें पढ़ाई-लिखाई की ज़रूरत नहीं है।”
अक्षर फाउँडेशन ने एक अपरंपरागत शिक्षण पद्धति को अपनाने का निर्णय लिया जहाँ छात्रों को उम्र के बजाय कौशल स्तर के आधार पर बाँटा गया। स्कूल अधिकारी बच्चों के माता-पिता से मिले और उन्हें भरोसा दिलाया कि उनके बच्चे पढ़ाई करते हुए कमाई भी कर सकते हैं।
यह स्कूल पिछले सात सालों से महात्मा गाँधी की नई तालीम शिक्षा दर्शन के आधार पर आगे बढ़ रहा है, जो शिक्षा और कामकाज को एक साथ लेकर चलता है। अक्षर फाउंडेशन के छात्र सिलाई, बढ़ईगीरी, बागवानी, प्रिंटिंग, अपसाइक्लिंग और प्लास्टिक उत्पादों की रीसाइक्लिंग जैसी स्किल सीखते हैं।
स्कूल इस बात का खास ध्यान रखता है कि बच्चे को उसके हर काम के लिए पैसे मिले। स्कूल के एक सीनियर टीचर गौरव दास ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ पाँचवी क्लास से लेकर 12वीं में पढ़ने वाले सभी बच्चे स्कूल में चलने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। इसके लिए उन्हें अंक दिए जाते हैं जो बाद में पैसे में बदल जाते हैं। यह पैसा उनके बैंक खातों में जमा कर दिया जाता है।” उन्होंने आगे बताया, “लॉकडाउन के दौरान कई छात्र ने यह पैसा कमाया था। बाद में उस पैसों से उन्होंने अपने लिए स्मार्टफोन खरीदे।”
एक छात्र को बढ़ईगीरी, छपाई और लैंडस्केपिंग के काम के लिए हर घंटे 35 रुपये दिए जाते हैं वहीं कचरे को अलग करने के लिए हर घंटे के 40 रुपये, छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए हर आधे घंटे में 5 रुपये से लेकर 25 रुपये और इको-ब्रिक्स बनाने के लिए उन्हें 10 रुपये से 15 रुपये के बीच दिए जाते हैं।
ये इको-ब्रिक्स बेकार प्लास्टिक से बनाई जाती हैं। इन ईंटों में लगने वाली प्लास्टिक को छात्र हर गुरुवार को स्कूल लाते हैं और फिर इसे रिसाइकल किया जाता है। इस तरह वे कमाई के साथ-साथ अपने आस-पास की एक बड़ी समस्या का समाधान भी कर रहे हैं।
पमोही के लोग आमतौर पर सर्दियों में खुद को गर्म रखने के लिए प्लास्टिक को जला देते हैं। दरअसल उन्हें उसकी वजह से खुद उनको और पर्यावरण को होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में पता नहीं है। अक्षर फाउंडेशन ने समुदाय को इस बारे में शिक्षित करने का फैसला लिया और एक पहल शुरू की। इस पहल के जरिए बच्चों को प्लास्टिक इकट्ठा करने और उन्हें स्कूल में एक जगह जमा करने के लिए कहा गया।
पारमिता सरमा ने बताया, “शुरु में गाँव वालों ने इसका काफी विरोध किया। क्योंकि प्लास्टिक जलाना ही इन लोगों को सर्दी के मौसम में गर्म रखने का एकमात्र तरीका था। लेकिन हमें थोड़ा सख्त होना पड़ा। हमने माता-पिता को चेतावनी दी कि अगर वे अपने बच्चों को प्लास्टिक इकट्ठा करके स्कूल नहीं लाने देंगे, तो उनसे फीस ली जाएगी।”
अब, हर गुरुवार को सभी छात्र साप्ताहिक कोटा पूरा करने के लिए बेकार पड़ी प्लास्टिक की 25 चीजें स्कूल में ले आते हैं।
वे इस प्लास्टिक को अपने घरों, दुकानों, सड़कों आदि से इकट्ठा करते हैं। प्लास्टिक को स्कूल में छांटा जाता है और सिंगल-यूज वाली प्लास्टिक की बोतलों को इको-ईंटें बनाने के लिए रिसाइकिल किया जाता है। फिर इन ईंटों का इस्तेमाल स्कूल के कई तरह के निर्माण कार्यों में किया जाता है।
2016 में सिर्फ 10 बच्चों के साथ शुरू हुए इस स्कूल में आज 110 बच्चे पढ़ते हैं। परमिता सरमा ने कहा, “इसके 99 फीसदी छात्र ऐसे हैं, जिनकी पहली पीढ़ी स्कूल में आई है। उनमें से कई के माता-पिता ऐसे हैं जिन्होंने मुश्किल से निचले दर्जे की प्राथमिक शिक्षा पूरी की है।”
अक्षर फाउंडेशन शिक्षा देने वाले एक स्कूल से कहीं अधिक बड़ा हो गया है। इसने कई सामाजिक मुद्दों को पहचाना और उन्हें सुधारने की कोशिश की।
पमोही में बाल विवाह एक बड़ी समस्या थी। अलका सरमा ने कहा, “जिन लड़कियों की कम उम्र में शादी हो गई थी, वे चौदह या पँद्रह साल की उम्र में माँ बन गईं।” वहीं एक समस्या नशीली दवाओं के सेवन की भी थी। स्कूल के एक अन्य संस्थापक सदस्य माजिन मुख्तार ने गाँव कनेक्शन को बताया “जो बच्चे कूड़ा बीनने का काम करते थे, वे भी सिगरेट-बीड़ी, शराब और अन्य नशीले पदार्थों लेने लगे थे।”
अक्षर फाउंडेशन ने नियमित तौर पर पैरेंट्स-टीचर मीटिंग करनी शुरू कर दी। यहाँ परिवार नियोजन, लैंगिक समानता, नशामुक्ति आदि मुद्दों पर खुलकर चर्चा की गई।
अलका सरमा के मुताबिक, अभिभावकों के साथ बातचीत का स्थानीय समुदाय पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा, “लड़कियाँ अपनी माँ की तरह 15 साल की उम्र में शादी नहीं करती हैं। इसकी बजाय अब वे स्कूल जाती हैं। जो बच्चे और किशोर कभी गलत आदतों के शिकार थे, वे अब इन आदतों को छोड़ रहे हैं और आगे की ओर देख रहे हैं।”
अक्षर फाउँडेशन ने राज्य भर के सरकारी स्कूलों में अक्षर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 मॉडल को लागू करने के लिए असम के समग्र शिक्षा अभियान के साथ सहयोग किया है। समग्र शिक्षा अभियान स्कूली शिक्षा क्षेत्र के लिए एक व्यापक कार्यक्रम है, जो प्री-स्कूल से लेकर 12वीं कक्षा तक फैला हुआ है। इसके जरिए स्कूली शिक्षा के लिए समान अवसरों और समान सीखने के परिणामों के संदर्भ में स्कूल की प्रभावशीलता में सुधार के व्यापक लक्ष्य को लागू किया जाता है।
मौजूदा समय में 14 स्कूलों ने अक्षर फाउँडेशन के मॉडल को अपनाया है। इस साल इनकी संख्या बढ़कर 25 और अगले साल 100 तक पहुंचने की संभावना है। हर स्कूल में रोजाना फ्री कोचिंग सेशन, डिजिटल क्लास, प्लास्टिक रीसाइक्लिंग वर्कशाप आदि आयोजित की जाती हैं। इसके अलावा नर्सिंग, बढ़ईगीरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑफिस असिस्टेंस, बागवानी और कई अन्य क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
अगर आप एक वालंटियर के रूप में चेंजमेकर्स प्रोजेक्ट में शामिल होना चाहते हैं और हमें अपने क्षेत्र के चेंजमेकर्स से जुड़ने में मदद करना चाहते हैं,
तो कृपया हमें ईमेल करें connect@gaonconnection.com या हमें +91 95656 11118 पर व्हाट्सएप करें