जब हम न्यूजपेपर पढ़ते हैं तो उसमे जो हमारा सबसे पसंदीदा विषय होता हैं हम उसी विषय को पढ़ना चाहते हैं उसी प्रकार बच्चे भी है, उन्हें अगर उन्हें खेल माध्यम से पढ़ाया जाए तो खेल भी पढ़ाई का जरिया बन सकता है।
जब मैं विद्यालय पहुंचा तो बच्चों की संख्या 123 थी। बच्चों की रुचि देखकर समझ गया था कि ऐसे नहीं चलने वाला इनको पढाने के लिए कुछ अनोखा तरीका अपनाना होगा, जिसके बाद बच्चों का ध्यान खेल कूद की तरफ बढ़ाया और इस माध्यम से पढाई भी खेल का एक हिस्सा बनाया गया। लेकिन अब समस्या ये थी की बच्चे रोज रोज स्कूल नहीं आ रहे थे।
इसको देखते हुए टीचर्स बच्चों के घर गये तो उनके माता पिता ने अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताया और बच्चे खेतों मे मटर तोडऩे गये थे तो मैं भी बच्चों के पास खेतों में चले गया और बच्चों के साथ मटर तोड़ने लगे और बच्चों ने कहा सर हम यहां मटर तोड़ने आये हैं तो हमने कहा हम भी आपके साथ रविवार की छुट्टी में ऐसे काम करा देंगे, बाकी दिन आप स्कूल आओ। बच्चों को लगा की सर हमारे साथ मटर तोड़कर भी पढ़ाना चाहते हैं फिर बच्चें खुद ही धीरे धीरे स्कूल आने लगे और बच्चों की संख्या लगभग 300 तक बढ़ गई।
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लेकिन धीरे-धीरे बच्चे स्पोर्ट्स मे काफी अच्छा करने लगे स्कूल में खेलने के साथ अब बच्चे स्कुल से बाहर भी खेलने के लिए भेजे जाने लगे और उनका मनोबल बढ़ने लगा। आस पास के स्कूलो को पीछे छोड़कर बच्चे स्टेट लेवल पर खेले जाने के साथ वहां से लगातार पाँच सालों से ट्राफी जीतकर ला रहे हैं। जिसको देखकर उनके माता पिता को भी काफी खुशी होने लगी कि उनके बच्चे उनका और उनके गाँव का नाम रौशन कर रहे हैं। उनमें कुछ बच्चे पढाई में भी काफी अच्छा कर रहे थे।
मैंने जन्मदिन के मौके पर स्कूल में बच्चों का मनोबल बढाने के लिए उन्हे टीशर्ट और ट्रैकशूट दिया जिसके लिए डीएम साहब की तरफ से सम्मानित भी किया गया। जिसके बाद गाँव के प्रधान जी ने स्कूल में बच्चों के लिए टाई बेल्ट फ्री मे बांटे। कक्षा मे बच्चों के पास पढ़ाई से जुड़ी चीजे नहीं होने पर राकेश ने खुद बच्चों को लाकर दे दिया करते हैं जिससे बच्चे हमेशा जुड़े रहे और समय पर अपनी समस्याएं साझा कर सकें।
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यह स्टोरी गाँव कनेक्शन के इंटर्न अंबिका त्रिपाठी ने लिखी है।
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