टीचर्स डायरी: ‘जब उस बच्चे ने बिना डरे सच कहा और अपनी गलती मानी’

पवन कुमार मिश्र, शाहजहांपुर जिले के कांट ब्लॉक के कंपोजिट विद्यालय, कांट में अध्यापक हैं, टीचर्स डायरी में साल 2018 में अपने स्कूल में हुआ एक किस्सा साझा कर रहे हैं।
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शाहजहांपुर जिले के कांट ब्लॉक में एक गाँव है अमोरा। अमोरा में कंपोजिट विद्यालय है। प्राइमरी और उच्च प्राथमिक कुछ दूरी पर स्थित हैं। उनकी बाउंड्री एक ही है। मैं स्कूल पहुंच ही पाया था कि सामने वाले प्राथमिक स्कूल की अध्यापिका मेरे स्कूल की ओर बढ़ी चली आ रहीं थी। मैंने उन्हे दूर से आते हुए देखा। उनकी चाल तेज थी। ऐसा लग रहा था कि वह कोई बहुत बड़ी बात जल्दी से बताने आ रही हैं।

मेरा स्कूल उच्च प्राथमिक विद्यालय है। वह जब नजदीक आईं तो उनके चेहरे पर गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था। वह बोलीं यह पता करिए चोरी किसने की है। मैं सन्न रह गया। चोरी? कैसी चोरी मैंने उन अध्यापिका से कहा। इसके बाद उन्होने सारी घटना कह सुनाई। उन्होने बताया कि हर दिन इंटरवल को वह अपने लंच के लिए थोड़ी नमकीन ले आती हैं ताकि वह जल्दी से हल्का फुल्का खा पी सकें। एक दिन मैं पांच किलो नमकीन लेकर आई थी और उसे कार्यालय में रख दिया। मैं हर दिन उसमें से थोड़ी नमकीन लेकर मध्‍यावकाश में काम चला लेती थी।

मैं बिना कुछ बोले उन्हे बहुत ध्यान से सुन रहा था और वह गुस्से से लगातार घटना को शुरुआत से बताने जुटी थीं। उन्होंने आगे कहा। देखो नमकीन जल्दी खाई जा सकती है, इसलिए मैंने विद्यालय में भोजन की जगह इसका चुनाव किया। मैंने नमकीन को कार्यालय में रखा था। वह मेरी मेज पर थी। ना मालूम कैसे किसी बच्चे ने खिड़की से उस पांच किलो की नमकीन को गायब कर दिया। मैंने उनसे सवाल पूछा यह आप मुझे क्यों बता रही हैं। उन्होंने जवाब दिया कि देखो यह चोरी आपके स्कूल के किसी बच्चे ने ही की है। मैं हैरान रह गया। मैंने कहा यह कैसे कह सकती हो। मुझे अपने बच्चों पर पूरा भरोसा है।

संवाद अब कुछ तेज स्वर में हो रहा था जिसे सारे बच्चे सुन रहे थे। वह अध्यापिका तर्क देने लगीं कि देखो कोई चोर आदमी चोरी करता तो वह खाली नमकीन नहीं चुराता। मैंने कहा अध्यापिका महोदय आप अपने बच्चों से पूछिये। उन्होंने जवाब दिया देखो ऐसा है मेरे बच्चे अभी छोटे हैं और दूसरे मैं उन्हें अच्छे से पढ़ाती हूं वह कुछ भी बने चोर अपराधी नहीं बनेंगे। इसके बाद वह अपने विद्यालय की ओर जाने के लिए मुड़ी और कुछ कदम चलने के बाद उन्होंने फिर मेरे स्कूल की ओर मुड़कर देखा। वह रुक गईं और तेज आवाज में कहा मास्टर जी मैं शिकायत इसलिए लायी थी ताकि बच्चे की गलती सुधारी जा सके। उसे स्वीकार करिए और उन्हे अच्छी शिक्षा दीजिए। वह वापस अपने स्कूल जा रही थीं। सारे बच्चे और मैं उन्हे बस दूर तक जाते देखता रह गया। हर दिन की भांति मेरी नैतिक शिक्षा की कक्षा शुरू हुई। मुझे उन अध्यापिका के तर्क समझ में आ रहे थे।

मैं इस बात को लेकर परेशान था कि मेरी शिक्षा दोषपूर्ण है अगर बच्चे में चोरी की प्रवृत्ति विकसित हो रही है। लेकिन वह सुधार भी तो तब सकूँगा जब मुझे उस बच्चे का पता लगेगा। मुझे कुछ बच्चों पर संदेह था। मैंने उन्हे अकेले में बुलाया और बहुत सी कहानियों को सुनाकर समझाया। मैं घटना को उनके मुंह से सुनना चाहता था। मेरी कई कोशिश नाकाम रहीं। उनमें से किसी बच्चे ने चोरी करने की बात स्वीकार नहीं की।

आज नैतिक शिक्षा की कक्षा में मैंने बच्चों से कह दिया कि मैं तुम्हें नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाते रह गया और मेरे किसी बच्चे ने चोरी की है। वह अध्यापिका सही कह के गई हैं यह मेरी शिक्षा की कमी है। तुममें कोई दोषी नहीं है। मुझे लगता था कि मैं जो कुछ प्यार से पढ़ाता हूं वह तुम सब सीखते हो लेकिन मुझे लगता है कि मेरा पढ़ाना बेकार है। मैंने इसके बाद गहरी सांस ली और खुद को परेशान सा पाया। उस दिन छुट्टी हो गई।

अगले दिन विद्यालय फिर खुला हर दिन की भांति सभी कक्षाएं सुचारू रूप से चलीं। जब नैतिक शिक्षा की पढ़ाई की बारी आई तो मैं कक्षा में पहुंचा और कहा कि मेरे पढ़ाने से कोई फायदा तो है नहीं लेकिन पढ़ाना तो है ही। यह कहकर मैंने गाँधी जी के जीवन की एक कहानी सुनाई।

धीरे धीरे छुट्टी का समय नजदीक आ चुका था। अचानक तेज घंटे की लगातार ध्वनि आना शुरू हुई। सभी बच्चे अपना बस्ता लेकर भाग खड़े हुए। मैंने जेब से कमरे बंद करने के लिए चाभी निकाली। मैंने कमरे में ताला लगाया और जैसे ही मुड़ा एक बच्चा पीठ पर बैग टांगे मेरे सामने खड़ा था। अरे घर नहीं गए मैंने उससे पूछा। उसकी आँखों में आँसू थे। मैं घबरा गया अरे क्या हुआ तुम रो रहे हो। उसने मुझसे कहा नमकीन मैंने चुराई थी। मैं सन्न रह गया।

उस बच्चे के साहस से और सच बोलने की बात ने मेरी आत्मा तक को हिला दिया था। कक्षा 6 में पढ़ने वाला वह प्यारा सा बच्चा। मैं उसके नीचे बराबर तक झुका। मैंने उसकी आँखों में झाँकने की कोशिश की जिनमें पश्चाताप के आंसू भरे थे। मैंने उसे गले से लगा लिया। वह फूट फूट कर रोने लगा। मैंने उससे कहा नहीं बेटा रोते नहीं। इसके बाद मेरे नेत्र सजल हो उठे। मैं बालक का सरल हृदय देखकर खुद के आँसू नहीं रोक सका।

कुछ देर तक हम दोनों कोई शब्द नहीं बोल सके। मैंने उसकी पीठ थपथपाई और उसकी आँखों में आँखे डालकर कहा कोई बात नहीं। गलती होना बड़ी बात नहीं है लेकिन गलती को सुधारने के लिए स्वीकार करना आप जैसे बहादुर बच्चे ही कर सकते हैं। अगले दिन विद्यालय खुला वह बच्चा रोज स्कूल आता मैं उसमें बहुत सुधार होते देख रहा था। एक शिक्षक होने के नाते मैं उन अध्यापिका के पास गया और उन्हे घटना बताई। वह बोली अब उस बच्चे से कुछ मत कहना मेरा उद्देश्य पूरा हुआ। मैं अपने विद्यालय वापस चला आया। अब मैं नैतिक शिक्षा का हर पाठ कई गुना अधिक उत्साह के साथ पढ़ाता था।

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