मेरी दिवंगत माँ अलीगढ़ के विवेकानंद स्कूल में अध्यापिका थी। उन्हें डांस भी आता था और संगीत वाद्ययंत्र भी बहुत ही अच्छे से बजाना जानती थी। बस यहीं से मुझे अध्यापक बनने कि प्रेरणा मिली। इंटर से कविता लिखना और पढ़ने का भी शौक जागा और मुझे सौभाग्य मिला है कि अशोक चक्रधर और वसीम बरेलवी जैसे कवि और शायर के साथ भी मंच साझा करने का मौका मिला।
यूपी सरकार द्वारा सन् 2015 मे 72 हजार वैकेंसी निकाली गई जिसमें मेरा चयन हो गया। हालांकि सरकारी नौकरी से पहले भी में अलीगढ़ के प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती रही हूं। एक बार मैंने इन बच्चों के लिए एक कविता लिखी जो इस प्रकार थी…
आओ हिंदी व्याकरण से तुमको मिलवाते हैं
संज्ञा क्रिया विशेषण सर्वनाम क्या हमको सिखलाते हैं
हिंदी व्याकरण, हिंदी व्याकरण, हिंदी व्याकरण
इस कविता को लोगों ने काफी सराहा और कई मीडिया ने भी जगह दी, तो मुझे हिम्मत मिली कि ऐसे भी बच्चों को पढ़ाया जा सकता है।
एक बार मैंने बच्चों को गणित सिखाने के लिए छोटा से मेला लगाया, जिसमे बच्चों के द्वारा बनाई गई चीजों को स्टॉल मे रखा जैसे बांस के द्वारा बनाई गई चीजें, मिट्टी के खिलौने, भेल पूरी आदि। नकली कैरेंसी मिलती है वो बच्चो में बांटे और फिर बच्चे ही एक दूसरे के स्टॉल पर जा कर सामान खरीदते। ऐसे करके बच्चे अपना सामान बेचते और इससे फायदा, नुकसान, जोड़, घटाना सब कुछ खेल-खेल में सीख लेते। एक दैनिक अखबार ने इस गणित कि एक्टिविटी को अपने नेशनल एडिशन में जगह दी।
मैं गूंज समाजिक जन कल्याण शिक्षा समिति की नेशनल उपाध्यक्ष भी हू। हमारी संस्था ने लगभग एक करोड़ कि किताबें बांटी हैं वो भी ग्रामीण विद्यालयों में, जहां निम्न वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में हम लोग ऐसे काम करते रहते हैं।
मेरे पढ़ाने को काफि पसंद किया जा रहा है, इसलिए मुझे गृह मंत्रालय ने भी सन् 2021 को सम्मानित किया। कमिश्नर अलीगढ़ हो या डीएम सब ने मुझे सम्मानित किया है। मिशन प्रेरणा एक मैगजीन है उत्तर प्रदेश, शिक्षा निभाग कि उसमें भी मुझे जगह दी गई है।
यह स्टोरी गाँव कनेक्शन के इंटर्न दानिश इकबाल ने लिखी है।
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