मेरे पास स्कूल जाने का साधन मेरी साइकिल है। मैं अपने गाँव रजवापुर से लगभग 15 किलोमीटर दूर उमरिया तक साइकिल से पढ़ाने जाता हूं। वैसे तो एक कच्चा रास्ता भी विद्यालय जाने के लिए है जिससे दूरी केवल 10 किलोमीटर ही रह जाती है लेकिन बारिश में यह रास्ते बंद हो जाते हैं। मैंने 1991 से पढ़ाना शुरू किया था।
मैं इस बात से काफी चिंतित रहता था कि बच्चे बीच में स्कूल क्यों छोड़ देते हैं। सच में यह कितना अजीब सा लगता है कि अगर कोई बच्चा फीस की वजह से स्कूल छोड़ दे। मुझे याद है कि जब मैंने एक बच्चे की कुछ फीस भी भरी थी। और तो और बहुत से बच्चे दो दो साल बाद तक फीस भर सके लेकिन मैंने कभी उन्हे स्कूल छोड़ने नहीं दिया।
मेरे स्कूल में आसपास के गाँव के बच्चे पढ़ने आया करते हैं। मुझे इस बात का पता चला कि बहुत से बच्चों के घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब है। मैं किसी को आर्थिक मदद तो नहीं कर सकता लेकिन उन्हे फीस की वजह से पढ़ाई छोड़ने से जरूर रोक सकता हूं।
पिछले दिनों मेरी एक छात्रा की पढ़ाई को लेकर मुझे संदेह हुआ। मुझे यह लग रहा था कि यह फीस की वजह से विद्यालय छोड़ सकती है। मुझे आसपास से पता चला कि उसके पिता दुर्घटना में घायल हो गए हैं इसकी वजह से वह फीस फिलहाल नहीं दे पायेंगे।
मैं छुट्टी होते ही उसके घर पहुंच गया। मैंने उसके घर बात की। घर वाले वास्तव में उसकी पढ़ाई बंद कर देना चाहते थे। मैंने उसके घर वालों को समझाया। फीस की वजह से विद्यालय छोड़ देना कभी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।
जैसे तैसे उसके घर वाले राजी हुए और उस बेटी को और पढ़ाई के लिए मौका मिल गया। मैंने अपने शिक्षक जीवन में ऐसे बच्चों की मदद करके हमेशा बहुत सकून पाया है। यह बात भी सत्य है कि हमारा वेतन उन्ही बच्चों की फीस से निकलता है।
मैंने महज 50 रुपये पारिश्रमिक पर पढ़ाना शुरू किया था। मैं अपने विद्यालय और छात्र बच्चों के लिए पूरी तरीके से समर्पित हूं। मेरे पास खुद का बहुत संघर्ष रहा है फिर भी एक शिक्षक होने के नाते मेरे लिए हर बच्चे की शिक्षा सबसे अनिवार्य है।
स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद बहुत से बच्चों ने फीस जमा की यानी वह कई साल फीस ही नहीं भर सके। मैं जिस बच्चे की फीस या फ़ार्म फीस भर देता हूं तो मैं यह कभी नहीं सोचता कि मेरे पैसे वापस मिलेंगे कि नहीं। मैं इसे अपना कर्तव्य समझता हूं।
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