टीचर्स डायरी: अंग्रेजी माध्यम के एक टीचर ने अर्थशास्त्र को हिंदी में पढ़ाने की चुनौती स्वीकार की

मनीष हिंदवी, जिन्होंने अपने छात्र जीवन के दौरान इंग्लिश मीडियम संस्थानों में पढ़ाई की थी, लेकिन उन्होंने उत्तर प्रदेश के बस्ती में एक कॉलेज में नियुक्त होने पर हिंदी में अर्थशास्त्र पढ़ाने की चुनौती ली। आज वो पढ़ाने के साथ-साथ मनीष सैनिटरी पैड के वितरण और स्वास्थ्य जागरूकता सहित कई सामाजिक काम कर रहे हैं।
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मेरा जन्म 1977 में गोंडा में हुआ था और 1998 में मैंने लाल बहादुर शास्त्री विश्वविद्यालय, गोंडा, से बीए किया था । इसके बाद मैंने साल 2001 में लखनऊ विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में परास्नातक किया।

2002 में अपना यूजीसी-नेट पास करने के बाद, मैं बस्ती उत्तर प्रदेश में शिव हर्ष किसान पीजी कॉलेज में लेक्चरर के रूप में शामिल हुआ। यहीं पर मुझे अपनी सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा।

अब तक मेरी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम के संस्थानों में हुई और यहां मैं एक कॉलेज में था जहां मुझे हिंदी की कक्षाएं लेने के लिए कहा गया।

इस कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे काफी निम्न वर्ग थे जो किताबें भी नहीं खरीद सकते थे। मैंने लाइब्रेरी से और बाहर से हिंदी की पुस्तकें खरीदी और पढ़ना शुरू कर दिया। तो इसी कारण बच्चों के लिए पुरा नोट्स हिंदी में बनवाना पड़ता था।

मैंने महसूस किया कि गाँवों में, यहां तक कि जहां निजी कॉलेज चल रहे हैं, वहां भी इंटरमीडिएट के बाद की शिक्षा छात्रों के लिए एक बड़ी चुनौती है। यह उन छात्रों से बना है जिनके माता-पिता उन्हें शहरों में भेजने का जोखिम नहीं उठा सकते थे।

तभी मैंने फैसला किया कि यहां एक नेशनल सेमिनार करवाना है और वो वक्त चल रहा था रिसेशन का सन 2010 में। तभी मैंने एक रिसेशन पर प्रपोजल बना कर यूजीसी को भेजा। यूजीसी ने प्रपोजल को अप्रुव कर दिया। इस सेमिनार को करवाना ऐसा था कि मानों मेरी बेटिया की शादी हो रही हो, आखिकार ये सेमिनार बहुत हिट रहा और लोगों ने काफी सराहा।

जब मैं बस्ती उत्तर प्रदेश के शिव हर्ष किसान पीजी कॉलेज में पढ़ा रहा था, तब मुझे पता चला कि लखनऊ के विद्यांत कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग में एक पद खाली है। मैंने आवेदन किया और मैं 2015 से वहां काम कर रहा हूं।

मैं बस्ती में जो कर सकता था मैंने किया और यहां तक कि लखनऊ में भी मैं सिर्फ पढ़ाने के अलावा करना चाहता था। मैंने विवेकानंद समता फाउंडेशन शुरू किया। इसका पहला अभियान “विंग्स मूवमेंट” नामक लड़कियों के लिए एक जागरूकता अभियान था जिसमें हमने सैनिटरी पैड वितरित किए। हमने COVID-19 महामारी से पहले भी हाथों की सफाई का अभियान शुरू किया था। जब पहला लॉकडाउन लगा तो हमारे फाउंडेशन ने लखनऊ प्रशासन के साथ मिलकर करीब दस हजार घरों को राशन पहुंचाया।

मुझे अर्थशास्त्र पढ़ाना अच्छा लगता है और जब मेरे पास समय होता है, तो मैं टीवी पर एक अर्थशास्त्र और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में पैनलिस्ट भी बनता हूं।

नोट: मनीष हिंदवी वर्तमान में विद्यांत कॉलेज, लखनऊ विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

जैसे कि मनीष हिंदवी ने गाँव कनेक्शन के इंटर्न दानिश से बताया

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