मुझे अध्यापक बनने की प्रेरणा अपने दादा जी से मिली थी, क्योंकि वो भी प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे और उसी स्कूल में मेरी भी पढ़ाई हुई थी। बीएड करने बाद साल 2009 में मैंने एक निजी कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया।
साल 2009 से मैंने अपने घर पर भी कोचिंग देना शुरू कर दिया। जहां में बच्चियों के लिए कोई फीस नहीं लेता था और बच्चे भी जो दे सकते थे बस उनसे ही लेता था। यहां पर में बीए के बच्चों को पढ़ाता था। मेरे कोचिंग के बच्चे आपको आज आर्मी में, रेलवे में या स्कूलों में शिक्षक भी मिलेंगे।
यूपी सरकार की तरफ से प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती निकाली गई, जिसमें 2015 में मेरा भी चयन हो गया। मेरी ज्वाइनिंग पीलीभीत के लदपूरा प्राथमिक विद्यालय में हुई। जब मैं इस स्कूल में पहुंचा तब बोर्ड की कमी थी। पहले तो मैंने अपने पैसे से व्हाइट बोर्ड मंगवाया।
ये पहला विद्यालय था पीलीभीत मैं जहां सामुदायिक सहयोग से स्मार्ट कक्षा बनाया गया और जिस दिन इसका उद्घाटन था उसी दिन मेरा ट्रांसफर सीतापुर के प्राथमिक विद्यालय में करने का आदेश आ गया, तो ये सारा कार्यक्रम विदाई समारोह में बदल गया। यहां मुझे सब सीतापुर वाले मास्टर जी के नाम से पुकारते थे।
सीतापुर मेरा गृह जनपद भी है, तो मैंने अक्टूबर 2021 को सहजापुर गाँव के प्राथमिक विद्यालय को ज्वाइन किया। यहां प्रधान जी की सहायता से इस विद्यालय का कायाकल्प करने की कोशिश की। यहां जब हम पढ़ाने लगे तो अभिभावक विद्यालय आने लगे। तब मैंने उनसे कहा कि आप मुझे 2 महीने का समय दें, अगर आपके बच्चों में बदलाव न आए तब आप मेरे पास आइए। ये गाँव थोड़ा खुशहाल है तो देखा कि कई अपने बच्चों का नाम हमारे विद्यालय से कटवा कर प्राइवेट में दाखिला दिलवा रहे थे।
यहां मुझे कुछ ऐसा करना था जिससे अभिभावकों का भरोसा जीत सकूं। तो शुरू से ही मैंने यहां समय निकालकर इन बच्चों को नवोदय स्कूल की छठी कक्षा की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाता था। फिर कहानी सुनाओ ट्रेंड चलाया जिसमें बच्चे भी कहानी सुनाते हैं और मैं भी इन लोगों को कहानी सुनाता हूं।
फिर एक नवाचार अपनाया जिसका नाम रखा मैजिकल बैग। एक बैग रखता हूं, जिसमें मैं जो पाठ पढ़ाता हूँ उससे जुड़े सामान रखता हूँ। जैसे विज्ञान का कोई पाठ पढ़ाता तो पेड़ के पत्ते, फूल, मिट्टी इत्यादि रख लेता। दिलचस्प बात ये है जब बच्चे उस बैग को खोलते हैं तो उन्हें पता चल जाता है आज सर क्या पढ़ाने वाले हैं।
ऐसे ही वर्णमाला सिखाने के लिए लंगड़ी खेल खेलाता और बच्चे वर्णमाला लिखे होने के हिसाब से कूदते। फिर आओ अखबार पढ़ें इसमें हम बच्चों को पुराने अखबार का लेख देते और स्टॉप वाच ऑन कर देते और पढ़ने को कहते। इससे रफ़्तार तो बढ़ी ही, जो शब्द नहीं आता उसपर निशान लगा कर वो मुझसे पूछ भी लेते थे । ये सब बच्चों को बहुत पसंद आने लगा और बच्चे अपने घरों में जाकर अपने मां-बाप को बताते। कुछ दिन बाद बच्चों की संख्या में भी बदलाव हुआ। बच्चे रोज आने लगे। प्राइवेट स्कूल जाने वाले भी अब हमारे यहां दाखिला लेने लगे।
हमारे यहां एक बच्ची हे सोनल वर्मा जो 33 सेकेंड में पूरे उत्तर प्रदेश के जनपदों के नाम बताती है। हमारे यहां के बच्चों से जब आप उनका नाम पूछेंगे तो वो अपना नाम बताएंगे, “मेरा नाम जल है। मैं पीने के काम आता हूं। मेरा रासायनिक सूत्र H2O है। मैं तालाब और नदी में मिलता हूं।” ऐसे ही किसी का नाम क्लोरीन है तो किसी को क्लोरोफिल। तो ऐसे में बच्चे बड़ी जल्दी विज्ञान की समझ विकसित कर लेते हैं।
मुझे डीएम सीतापुर ने आदेश दिया कि आपको चुनाव जागरुकता अभियान चलाना है । इस क्रम में पूरे सीतापुर के स्कूलों में, मैंने मेहंदी प्रतियोगिता, स्लोगन प्रतियोगिता रखी, फिर बाल बूथ सेना बनाई। जिसमें बच्चे अपने मां-बाप से आग्रह करते थे कि वोट डालें। 25 जनवरी 2022 को इस अभियान के लिए मुझे तत्कालीन डीएम की तरफ से सम्मानित किया गया था।
मेरे नए प्रयोगों के कारण मुझे बेसिक शिक्षा विभाग की प्रेरणा पत्रिका में लगातार वर्ष 2021 और 2022 में जगह दी गई। 4 फरवरी 2023 को यूपी के स्कूली शिक्षा के महानिदेशक विजय आनंद जी की तरफ से लखनऊ में मुझे सम्मानित किया गया।
जैसा कि अभिषेक शुक्ला ने गाँव कनेक्शन की इंटर्न दानिश इकबाल से बताया
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