मुझे आज भी याद है वो नन्हीं सी बच्ची जो रोज विद्यालय आती थी। आंधी चल रही हो या बारिश हो रही हो या फिर कड़ाके की ठंड हो, लेकिन प्रतिदिन विद्यालय समय पर पहुंच जाती थी। कभी-कभी उस बच्ची के डर में मैं जल्दी-जल्दी तैयार हो कि विद्यालय की तरफ मैं दौड़ पड़ता था और देखता था कि वो बच्ची हमसे पहले विद्यालय आकर स्कूल के बाहर बैठी है।
जब शुरू-शुरू में हम शिक्षक बने तो हमारे गाँव केशवपुर के प्राथमिक विद्यालय मुझे पढ़ाने का असर मिला। गाँव के बाहर करीब 1 किलोमीटर पर प्राथमिक विद्यालय था और हमारे गाँव की ही 3 वर्षीय बच्ची पंछी देवी प्रतिदिन विद्यालय आती थी। उसके दो भाई बहन और भी पढ़ते थे लेकिन वो हफ्ते में एक दो दिन छुट्टी कर देते थे लेकिन वो छोटी बच्ची रोज विद्यालय आती थी।
जब विद्यालय में उस छोटी बच्ची पंछी के बड़े भाई और बहन को वजीफा दिया जाता तो वह भी आकर लाइन में खड़ी हो जाती और वजीफा लेने की जिद करने लगती, तब हम उसके हाथ में भी पैसे देते थे।
विद्यालय के जब सभी बच्चों को विद्यालय की तरफ से ड्रेस दी जाती तो वो बच्ची भी ड्रेस लेने के लिए बार-बार मेरे पास आती क्योंकि उस बच्ची का अभी विद्यालय में नामांकन नहीं हुआ था इसलिए हमने अलग से टेलर को बुलवाया और उस बच्ची की भी ड्रेस ली और हमेशा उसके लिए अपने पैसों से ड्रेस बनवाते थे।
पंछी ने हमारे विद्यालय में कक्षा पांच तक कि पढ़ाई की है और पांचवीं की पढ़ाई के दौरान उसके बड़े भाई बहन नानी के वहां चले जाते तो कई दिनों तक विद्यालय नहीं आते थे लेकिन पढ़ाई छोड़ कर एक बार भी पंछी देवी किसी रिश्तेदार के यहां नहीं गई।
पंछी ने इंटरमीडिएट क्लास तक पढ़ाई की है और फिलहाल शादीशुदा जिंदगी जी रही है।
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