पश्चिम बंगाल के इस गाँव के स्कूल में बच्चों को भा रही है कृषि की पढ़ाई

बाँकुड़ा ज़िले में पुरंदरपुर हायर सेकेंडरी स्कूल के छात्र-छात्राएँ व्यावसायिक पाठ्यक्रम के रूप में कृषि को चुनते हैं, जिससे उन्हें बेहतर नौकरी मिल सके। इस स्कूल के सात छात्र-छात्राओं ने पश्चिम बंगाल राज्य तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास परिषद द्वारा हाल ही में आयोजित परीक्षा की टॉप 10 मेरिट सूची में जगह बनाई है।
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पुरंदरपुर (बाँकुड़ा), पश्चिम बंगाल। नेहा बनर्जी के लिए खुशी का दिन है, क्योंकि वो पश्चिम बंगाल राज्य तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास परिषद द्वारा प्रस्तावित व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में परीक्षा में प्रथम स्थान पर आई थी।

पश्चिम बंगाल के बाँकुड़ा ज़िले के पुरंदरपुर हायर सेकेंडरी स्कूल की 18 वर्षीय छात्रा नेहा एक दिहाड़ी मज़दूर की बेटी हैं, जिन्होंने स्कूल में कृषि की पढ़ाई की। नेहा जानती हैं कि कृषि की पढ़ाई उनके लिए बेहतर अवसर लेकर आएगी और उन्हें नौकरी मिलेगी, जिससे वो कैंसर से पीड़ित अपने पिता की मदद कर पाएँगी।

नेहा ने स्कूल में व्यावसायिक पाठ्यक्रम के रूप में कृषि को चुना और परीक्षा पास करने के बाद, छात्रा जल्द ही अपने घर से लगभग 60 किलोमीटर दूर कल्याणी के बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए जाएँगी।

पुरंदरपुर गाँव राज्य की राजधानी कोलकाता से लगभग 200 किलोमीटर दूर, पश्चिम बंगाल-झारखंड सीमा के करीब स्थित है। नेहा के पिता सहित गाँव में और उसके आसपास के अधिकांश लोग सीमांत किसान, खेत मज़दूर या मछुआरे हैं, जो कमाई के लिए लगातार संघर्ष करते रहते हैं।

पुरंदरपुर हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ने वाले कई छात्रों और उनके माता-पिता के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं है कि वे पढ़ाई करने में सक्षम हैं। और इस साल पश्चिम बंगाल राज्य तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास परिषद द्वारा आयोजित परीक्षा के परिणामों में स्कूल के सात छात्र-छात्राओं को मेरिट सूची में टॉपर्स में रखा गया है।

हेडमास्टर सौमित्र बनर्जी अपने स्कूल के उन सात छात्र-छात्राओं के प्रदर्शन से फूले नहीं समा रहे, जिनका नाम राज्य की मेरिट सूची में आया है।

“2006 में स्कूल में व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू किए गए थे। इनमें सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि और मोबाइल रिपेयरिंग पाठ्यक्रम शामिल थे, जो उन्हें कक्षा 11 और 12 में पढ़ाए जाते हैं। ये पाठ्यक्रम ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के लिए बहुत उपयोगी रहे हैं,” प्रधानाध्यापक ने गाँव कनेक्शन को बताया।

प्रधानाध्यापक ने बताया कि 1961 में स्थापित इस स्कूल में कक्षा पाँच से बारह तक लगभग 900 छात्र पढ़ते हैं।

श्रोबोनी को भी प्रथम स्थान मिला है और उनके परिवार की भी माली हालत ठीक नहीं है। उनके पिता टेम्पो चालक हैं। दूसरे स्थान पर रहने वाले पल्लब सिंह एक राजमिस्त्री के बेटे हैं। संयुक्त रूप से प्रथम रैंक धारकों और दूसरे रैंक वाले सभी ने कृषि की पढ़ाई की है, और तीनों को कल्याणी में बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय में एडमिशन मिल गया है।

“महामारी के बाद से हमने अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष किया है। मैं अपनी दादी और माता-पिता के साथ एक झोपड़ी में रहता हूँ। स्कूल और हमारे शिक्षकों ने हर संभव तरीके से हमारी मदद की है।” दूसरे स्थान पर रहे पल्लब ने गाँव कनेक्शन को बताया।

विद्यालय के छात्र अपने शिक्षकों के समर्पण से भली-भांति परिचित हैं।

“हेडमास्टर सौमित्र बनर्जी सर ने हमें प्रवेश दिया और प्रवेश संबंधी सभी ख़र्च उठाए और हमने खुद से वादा किया कि हम अच्छा प्रदर्शन करेंगे, ” नेहा ने कहा।

पल्लब ने कहा, “अगर शिक्षकों ने हमारी मदद नहीं की होती, तो शायद हम स्कूल भी नहीं जाते।” पल्लब और नेहा करीब 5 किलोमीटर दूर बिकना गाँव में रहते हैं, जबकि श्राेबोनी स्कूल से करीब 6 किलोमीटर दूर केशिया कुल गाँव में रहती हैं।

कृषि, एक लोकप्रिय व्यवसाय

पुरंदरपुर स्कूल में कृषि एक लोकप्रिय व्यावसायिक पाठ्यक्रम है। अमित पारुई स्कूल में कृषि पढ़ाते हैं। “पुरंदरपुर गाँव राज्य की राजधानी कोलकाता से लगभग 200 किलोमीटर दूर, पश्चिम बंगाल-झारखंड सीमा के करीब स्थित है, ”शिक्षक ने बताया, जिनकी उम्र लगभग 30 वर्ष के बीच है।

प्रीति चट्टोराज, डोना सिंह और आकाश लो, जो ग्यारहवीं कक्षा में हैं और कृषि की पढ़ाई कर रहे हैं, ने कहा कि उनके शिक्षक ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया है।

हम सीखते हैं कि उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए और पौधों की देखभाल कैसे की जाए। कृषि में हमारी रुचि बढ़ रही है। आकाश लो ने गाँव कनेक्शन को बताया, अब हम जानते हैं कि आधुनिक बागवानी विज्ञान का उपयोग करके जाबा (हिबिस्कस) के पेड़ पर तीन रंग के फूल कैसे उगाए जा सकते हैं।

स्कूल में व्यावसायिक कृषि पढ़ाने वाले अमित पारुई के अनुसार, वह एक शिक्षक के रूप में प्रति माह 13,700 रुपये कमाते हैं, जिसमें से वह 5,000 रुपये घर के किराए के रूप में देते हैं। उनका अपना घर 67 किलोमीटर दूर गढ़बेटा में है।

पारुई के लिए, उनका वेतन कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसके बारे में वह अक्सर सोचते हैं। “मैं अपने छात्रों और उनके अभिभावकों से मिलने वाले सम्मान की कोई कीमत नहीं लगा सकता। जब मेरे पूर्व छात्रों को अच्छी नौकरियाँ मिलीं और वे अच्छा कर रहे हैं, तो यह सबसे अच्छा इनाम है जिसका मैं सपना देख सकता हूँ। ” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।

महामारी के दौरान पुरंदरपुर हायर सेकंडरी के शिक्षकों ने काफी मेहनत की, जिससे किसी बच्चे का स्कूल न छूट जाए। दसवीं कक्षा की छात्रा अनन्या कुंडू याद करती हैं, “उन्होंने हमारे घरों में मुलाकात की, स्टडी मटेरियल और क्वेश्चन पेपर दिए और हमारे माता-पिता से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि हम पढ़ाई जारी रखें।”

गोयरा गाँव के एक छात्र के माता-पिता निर्मल मंडल ने कहा कि शिक्षक हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं। “इसने हमारे बच्चों को महामारी के दौरान पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया, ”उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।

स्कूल के अंदर और बाहर बच्चों की मदद करना

बाँकुड़ा सदर ईस्ट सर्कल के स्थानीय स्कूल निरीक्षक सजल महतो ने गाँव कनेक्शन को बताया, “स्थानीय और जिला स्कूल प्रशासन को पुरंदरपुर स्कूल के शिक्षकों द्वारा किए गए काम पर गर्व है।” उन्होंने कहा कि एक ही स्कूल में इतने सारे शिक्षकों को इतनी स्वेच्छा से कर्तव्य से आगे जाना दुर्लभ है।

पश्चिम बंगाल राज्य तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास परिषद द्वारा आयोजित परीक्षा के परिणामों में स्कूल के सात छात्रों को मेरिट सूची में टॉपर्स में रखा गया है।

“एक छात्रा, सौमिता कोटाल, जो 11वीं कक्षा में है, ने हाल ही में एक सड़क दुर्घटना में अपने पिता को खो दिया। शिक्षक उसकी मदद के लिए आगे आए हैं और यह जिम्मेदारी लेने का वादा किया है कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करे, ”उन्होंने कहा।

महतो के अनुसार, व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से आने वाले छात्रों ने स्वागत किया क्योंकि मुख्यधारा की शिक्षा महँगी थी और व्यावसायिक शिक्षा ने उन्हें पास होने पर नौकरी के लिए तैयार कर दिया।

“वे सभी अपने परिवार की मदद करने के लिए जल्द से जल्द नौकरी पाना चाहते हैं। और, यही कारण है कि हम व्यावसायिक पाठ्यक्रम के छात्रों से प्रवेश, पंजीकरण या परीक्षा के लिए कोई शुल्क नहीं लेते हैं। स्कूल के शिक्षक उन्हें कोई भी स्टेशनरी उपलब्ध कराते हैं जिसकी उन्हें ज़रूरत हो सकती है। ” स्कूल निरीक्षक ने कहा।

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