जन सहयोग से बदली झारखंड के आदिवासी गाँव के इस स्कूल की तस्वीर

झारखंड के टाँगराईन गाँव के आदिवासी, स्थानीय अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षकों की मदद से गाँव के अपने स्कूल को बेहतर बनाने में जुटे हैं। उनकी इस कोशिश से स्कूल में आज हर तरह की आधुनिक सुविधाएँ हैं।
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टाँगराईन (पूर्वी सिंहभूम) झारखंड। कहा जाता है कि एक बच्चे को पालने के लिए एक गाँव की ज़रूरत होती है और तंगरेन गाँव इस कहावत को सच कर रहा है। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के पोटका ब्लॉक का ये गाँव अपने दम पर वहाँ के उत्क्रमित मध्य विद्यालय को नया रूप दे दिया है।

पड़ोसी राज्य ओड़िशा के मयूरभंज ज़िले की सीमा से सटे गाँव में रहने वाले 200 आदिवासी परिवारों के बच्चों के पास यही एक स्कूल है जिस पर उन्हें बेहद गर्व है।

“यह स्काउट गाइड यूनिट वाला झारखंड का पहला सरकारी मध्य विद्यालय है। कुल मिलाकर 20 लड़कियों सहित 42 छात्र स्काउट एंड गाइड के सदस्य हैं, जिसे 2018 में शुरू किया गया था।” स्कूल के प्रभारी प्रधानाध्यापक अरबिंद कुमार तिवारी ने बड़े गर्व के साथ गाँव कनेक्शन को बताया।

लेकिन कोविड महामारी के बाद चीजें पहले जैसी नहीं रहीं। जब लॉकडाउन के बाद स्कूल फिर से खुला, तो कई बच्चे स्कूल नहीं आए। प्रधानाध्यापक ने कहा कि स्कूल छोड़ कर घर बैठने वालों की सँख्या अधिक थी। वे कहते हैं,”यह एक आदिवासी क्षेत्र है और गाँव के बच्चों को स्कूल वापस लाना बड़ी चुनौती थी, हमने इसके लिए एक योजना बना कर गाँव के लोगों को जोड़ा, जिससे काफी मदद मिली।”

स्कूल ने क्लास को ट्रेन के डिब्बों की तरह बनाने के लिए उन्हें रंगने का काम शुरू किया जिससे छात्र बहुत खुश हुए। स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए हर एक क्लास में एक कूड़ा रखने का डिब्बा रखा गया है।

यही नहीं बाँस और पुआल की छप्पर वाला एक खूबसूरत पुस्तकालय बनाया गया है, जिसे मिट्टी के घड़ों से सजाया गया है। बाहर एक गार्डेन है, जिसमें सब्ज़ी भी उगाई जाती है।

“स्कूल की क्लास और उसकी दीवारें ऐसी हैं कि बच्चे जिधर भी देखें, हर समय कुछ न कुछ सीखते रहें। उन्हें अपनी पाठ्य पुस्तकें खोलने की भी ज़रूरत नहीं है। “स्कूल के शिक्षकों में से एक अमल कुमार दीक्षित ने गाँव कनेक्शन को बताया।

प्रेरक विचार, मानचित्र, बिरसा मुंडा जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरें बनाई गईं हैं, जिन्हें स्कूल की हर एक दीवार पर देखा जा सकता है।

दीक्षित ने कहा, “जिन छात्रों की पढ़ाई में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी, वे स्कूल आने के लिए तैयार रहते थे क्योंकि स्कूल में उन्हें खेल के कई विकल्प दिए जाते थे।” तीरंदाजी, तैराकी, शतरंज जैसे खेलों के अलावा कई तरह के खेल छात्र यहाँ खेल सकते हैं।

हर क्षेत्र में बढ़िया कर रहे हैं बच्चे

विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष और तंगरेन के निवासी मंगल मांझी ने कहा, “स्कूल में सभी छात्र अच्छा कर रहे हैं और सफल होना चाहते हैं। ” उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “गाँव के जनप्रतिनिधियों और उद्योगपतियों ने छात्रों को बेहतर शिक्षा और सुविधाएँ देने के लिए कदम बढ़ाया है।”

गाँव के पूर्व मुखिया राजा राम मुंडा ने अपनी पंचायत क्षेत्र विकास निधि से एक विधानसभा मंच प्रदान किया है, और तंगरेन के कई निवासियों ने स्कूल परिसर को बढ़ाने के लिए अपनी ज़मीन दान दी है।

स्थानीय निवासी घासी राम ने स्कूल की ज़रूरत के लिए सब्ज़ी उगाने का इंतज़ाम कर दिया है। इसके लिए उन्होंने पास की अपनी ज़मीन दान करने का फ़ैसला किया है। जमशेदपुर की एक गैर-लाभकारी संस्था की मदद से एक पुराने हैंडपंप को पानी इकट्ठा करने में अब इस्तेमाल किया जा रहा है। कई सामाजिक संगठन स्कूल में यूनिफार्म उपलब्ध करने, फ़ीस और दूसरी गतिविधियों में मदद करने के लिए आगे आए हैं।

इस बीच, बेंगलुरु की एक गैर-लाभकारी संस्था स्कूल में तीन और कक्षाओं और शौचालयों के निर्माण में लगी है। स्कूल में 119 लड़कियों सहित 263 छात्र हैं और सभी में छह शिक्षक हैं, जो किंडरगार्टन से कक्षा आठ तक की कक्षाओं को पढ़ाते हैं।

प्रधानाध्यापक ने कहा कि स्कूल को 2019 और 2023 में जिला स्तर पर स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

निजी स्कूल से सरकारी स्कूल तक

स्कूल ने ऐसी प्रतिष्ठा बनाई है कि कई छात्रों ने इस गाँव के सरकारी स्कूल में शामिल होने के लिए निजी स्कूलों को छोड़ने का फैसला किया।

लोकेश मंडल, जो अभी आठवीं कक्षा में हैं ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं ओड़िशा के मयूरभंज ज़िले के स्वामी विवेकानंद शिक्षा आश्रम में पढ़ रहा था, जब मैंने इस स्कूल के बारे में सुना तब इस गाँव के स्कूल में पढ़ने का फैसला किया। स्कूल का स्काउट्स और गाइड्स शिविर मुझे पसंद हैं।”

स्कूल की सभी कक्षाओं में ऑडियो सिस्टम हैं, और छात्रों के उपयोग के लिए सात कंप्यूटर हैं। माता-पिता से जुड़ने और स्कूल में क्या हो रहा है, इसकी जानकारी रखने के लिए एक फेसबुक अकाउंट भी बनाया गया है।

चंदना मंडल, जो बंगाली भाषा की टीचर हैं ने बताया, “आदिवासी बच्चों को बांग्ला, भूमिज और संथाली भाषा सिखाने के लिए विशेष कक्षाएँ आयोजित की जा रही थीं, लेकिन महामारी के दौरान इन्हें बंद कर दिया गया था, अब इसे फिर से शुरू किया जाएगा।”

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