दस साल की हिमांशी को खेती के बारे में सब पता है, उन्हें ये भी मालूम है कि रबी, ख़रीफ और जायद में कौन सी फसलों की खेती होती है। अपने इस ख़ास स्कूल में वो हर दिन पढ़ाई के साथ ही कुछ समय खेत में भी बिताती हैं।
हिमांशी ‘द गुड हार्वेस्ट स्कूल’ में छठीं क्लास में पढ़ती हैं। हिमांशी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “मैं पहले जिस स्कूल में जाती थी वहाँ ऐसा माहौल बिल्कुल भी नहीं था, मुझे खेती के बारे में कुछ भी नहीं पता था लेकिन अब कौन सी फसल की कब बुवाई करनी है, मुझे सब पता है।”
उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के पश्चिम गाँव में चलने वाले इस ख़ास स्कूल की शुरूआत की है अनीश और उनकी पत्नी आशिता नाथ ने। साल 2006 से चल रहे इस स्कूल में सिर्फ लड़कियों का एडमिशन होता है। ये स्कूल खासतौर पर उन लड़कियों के लिए है, जो स्कूल नहीं जा पाती हैं या फिर किसी वजह से उनकी पढ़ाई छुट गयी हो, तो उन बच्चियों से जुड़कर उनसे सर्म्पक करते हैं।
आख़िर उन्होंने ये स्कूल क्यों शुरू किया के सवाल पर अनीश गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “हमने सोचा लड़कियाँ अभी गाँव में हैं उनके पास खुद अपना खेत है जो वो खुद देख सकती हैं तो हमें लगा उन्हें खेत से जोड़ सकते हैं जो उनके लिए आगे भी काम आएगा।”
वो आगे कहते हैं, “अक्सर हमने देखा कि जो हसबैण्ड लोग हैं शहर चले जाते हैं और महिलाएँ अपना घर परिवार और खेतों को भी देखती हैं, तो क्यों ना हम उन्हें वहीं खेती करने में सक्षम बनाएँ। अगर उनके पास खेती की अच्छी जानकारी होगी तो लड़कियाँ अपनी खेती भी कर सकती हैं ऐसे आत्मनिर्भर बन सकती हैं।”
वहीं आशिता आशिता टीचिंग बैकग्राउंड से आती हैं और उन्हें 20 साल से टीचिंग का अनुभव है। उन्होंने एनजीओ के साथ भी काम किया है। दोनों का मकसद था कि दूसरों की कैसे मदद करें, अनीश की उम्र 40 साल और आशिता की 42 साल है और उनकी दो बेटियाँ भी हैं।
अशिता गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “गाँव में बच्चियों के पढ़ने के संसाधन कम हैं, इसलिए हम यहीं आकर बस गए। इससे पहले हम लोग दिल्ली में रहते थे।”
अनीश दिल्ली में एडवरटाइजिंग कंपनी में जॉब करते थे, लेकिन उन्हें शुरू से खेती-बाड़ी में रुचि थी, इसलिए सबसे पहले इंटरनेट से जानकारी ली और कई सारी वर्कशॉप में भी सीखने गए। अनीश कहते हैं, “एक सर्वे के अनुसार इंडिया में सिर्फ 2 प्रतिशत युवा खेती करना चाहते हैं। इसलिए हमें खेती से जुड़कर कुछ करना था।”
ऐसा नहीं है कि स्कूल खुलते ही यहाँ पर लड़कियाँ आने लगीं, अनीश कहते हैं, “हमने देखा की बच्चों की माता-पिता को लगता है, कि हमारी बेटियाँ स्कूल चली जाएँगी तो हमारे घर का काम कौन करेगा। हमने कहाँ आप कुछ समय के लिए बच्चियों को स्कूल भेजो अगर आपको लगेगा की कोई फायदा नहीं हैं। तो आप नहीं भेजिएगा। कुछ हफ्तों के लिए हमने बच्चों को बुलाया था, फिर बच्चे आए तो उन्हें खुद यहाँ से जाना नहीं था, उन्होंने अपने पेरेंट्स को स्कूल आने के लिए मनाया। ” उन्होंने आगे कहा।
अमीश और आशिता ने गाँव वालों के बीच में रह कर उनका भरोसा जीता, जिससे उन्हें भरोसा हो सके कि वो भी उनकी तरह ही हैं, गाँव वालों ने काफी साथ भी दिया। गाँव के प्रधान ने भी उनका सहयोग किया, गाँव में जमीन ली खेती भी किया फिर यहाँ स्कूल की शुरूआत की।
राधा गुड हार्वेस्ट स्कूल में पढ़ती थी और अब दूसरे स्कूल में आठवीं में पढ़ रहीं हैं। राधा बताती हैं, “हमें हमारी दोस्त ने बताया था की यहाँ पर बहुत अच्छी पढ़ाई होती है और पहले तो मैं कहीं नहीं पढ़ने जाती थी, लेकिन मेरी दोस्त आ रही थी उसने बताया बहुत अच्छा स्कूल है। फिर हमने यहाँ पर ऐडमिशन कराया ,पहले तो हमें कुछ नहीं आ रहा था तब धीरे धीरे आने लगा जब पढ़ने आने लगी।”
अमीश गाँव कनेक्शन से बताते हैं, ” उन्नाव ज्यादातर नेगेटिव खबरों के लिए जाना जाता हैं, उन्नाव में भी चीजें अच्छी हो सकती हैं उन्नाव खेती के लिए कम जाना जाता हैं इसलिए हम लोगों ने उन्नाव को चुना। यहाँ आकर हम सबके साथ जुड़ कर रहें, जिससे लोग हमसे जुड़ सकें।”
अमीश और आशिता बच्चों के लिए कांटेक्ट तैयार करते हैं, जिससे बच्चों को पढ़ने में मजा आए बोझ ना लगें। वो आगे कहते हैं, ” हमारी फंडिंग ज्यादातर हमारे दोस्तों से हो जाती है। हमारा बजट ज्यादा नहीं होता है, कुछ लोग गाँव से भी मदद करते हैं बाकी अलग-अलग जगह से लोग भेजते हैं।”