ब्रह्मपुर (गोरखपुर), उत्तर प्रदेश। जब निशा को पहली बार ‘पीरियड’ आए तब वह खेतों में काम कर रही थी। 11 साल की ये बच्ची काफी सहमी हुई थी। “मैंने खून देखा और डर कर घर वापस आ गई। जब मैंने अपनी बड़ी बहन से पूछा कि यह क्या है, तो उसने मुझे कुछ नहीं बताया। उसने मुझे एक कपड़े का टुकड़ा दिया और कहा कि अब आगे से जब भी ऐसा होगा तो मुझे कपड़े का इस्तेमाल करना है। उसने मुझे कुछ भी नहीं समझाया था, “निशा ने याद करते हुए गाँव कनेक्शन को बताया।
निशा के लिए यह एक डरावना अनुभव था। उसे नहीं पता था कि उसके शरीर में क्या हो रहा है। युवावस्था में शरीर में आने वाले बदलावों के बारे में किसी ने उससे बात नहीं की थी।
अगले दिन डरी-सहमी निशा अपने स्कूल पहुंची। वह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के ब्रह्मपुर अपर प्राइमरी स्कूल में पढ़ती थी। वहां उसकी टीचर श्रृंगिका राव को जब उसके बारे में पता चला तो उन्होंने निशा से बात की और उसे बताया कि प्यूबर्टी के दौरान मैंस्ट्रुअल और शारीरिक बदलाव एक आम बात है। इसमें डरने जैसी कोई बात नहीं है। उन्होंने बच्ची को सैनिटरी पैड भी दिया और उसे इस्तेमाल करने का तरीका भी बताया।
राव ने गाँव कनेक्शन से कहा, “यहां ज्यादातर लड़कियां सैनिटरी पैड की जगह कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। उन्हें यह भी नहीं पता था कि खुद को कैसे साफ रखना है और पीरियड के दौरान इस्तेमाल किए जा रहे कपड़े को बार-बार बदलना कितना जरूरी है।” राव इस स्कूल के छठी, सातवीं और आठवीं क्लास के बच्चों को पढ़ाती हैं।
शिक्षिका ने आगे कहा, “मैं उन्हें बताती हूं कि अगर वे इस दौरान अपनी सफाई का ध्यान नहीं रखेंगी तो उन्हें किस तरह का इंफेक्शन हो सकता हैं और कैसे यह गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। मैं उन्हें यह भी बताती हूं कि कपड़े को कैसे धोना चाहिए और उसे कैसे साफ रखना चाहिए।”
श्रृंगिका राव को स्कूल की छात्राओं के लिए ‘एक्सक्लूसिव’ क्लास लेते हुए तीन साल हो गए हैं। लड़कों को क्लास वर्क देकर, राव छठी, सातवीं और आठवीं क्लास की लड़कियों को दूसरे कमरे में ले जाती है, जहां वह उन्हें प्यूबर्टी, मेन्स्ट्रुअल हाइजीन, और गुड टच व बैड टच के बारे में बताती है। ये ऐसे विषय हैं जिन पर अक्सर ग्रामीण इलाकों में दबी आवाज़ में बात की जाती है। राव गाँव की लड़कियों को इस दिशा में शिक्षित करने की कोशिश कर रही हैं।
श्रृंगिका ने कहा, “मैं उनसे उसी तरह से बात करने की कोशिश करती हूं जैसे मैं अपनी बेटी के साथ इस मसले पर चर्चा करती हूं।”
फरवरी 2020 में जब राव को ब्रह्मपुर सरकारी स्कूल में नियुक्त किया गया, तो उन्होंने महसूस किया कि मैनस्ट्रुअल हेल्थ के बारे में लड़कियों को काफी कम जानकारी है।
राव ने कहा, “मैंने उन्हें नीम के पत्तों को पानी में उबालकर एक घोल बनाना सिखाया और उनसे खुद को और अपने मासिक धर्म के कपड़े को इससे साफ करने को कहा।”
उन्होंने कहा, “मैं उन्हें बैड और गुड टच के बारे में भी बताती हूं। जब वे लड़कों के करीब हों तो उन्हें किस तरह से सचेत रहना चाहिए। मेरी मां भी एक टीचर हैं और हमारे बीच कभी इस तरह की मुश्किलें नहीं आईं थीं। मैं अपनी बेटी के साथ बेहिचक इस विषय पर बात करती हूं। उससे खुलकर सेक्स के बारे में बात करती हूं ताकि वह समझ सके कि उसके हार्मोनल बदलाव क्या हैं और उसे इस पर क्या प्रतिक्रिया देनी है।”
अपर प्राइमरी स्कूल की लड़कियों ने कहा, “उनके क्लास के लड़के अक्सर पूछते रहते हैं कि वे ‘एक्सक्लुसिव’ क्लास में आखिर करती क्या हैं।”
सातवीं क्लास में पढ़ने वाली चौदह साल की अंजलि पहले इस बारे में बात करने में काफी शर्माती थी। लेकिन राव ने अंजलि को यह विश्वास दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि मासिक धर्म पर चर्चा करने में कोई शर्म नहीं है।
अंजलि ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमारी मैम ने कहा कि हमें इसके बारे में बात करने से नहीं शर्माना चाहिए। इस पर अधिक खुलकर चर्चा करनी चाहिए। मुझे नहीं पता क्यों, लेकिन मैं थोड़ी शर्माती हूं।” अंजलि को अब पता है कि उन खास दिनों में अपने को कैसे साफ रखना है।
उसने कहा, “मैं नीम के पानी को उबाल कर एक साफ बोतल में भरकर रखती हूं। पीरियड के दौरान खुद को साफ करने के लिए इसका इस्तेमाल करती हूं। इसके अलावा, अब मुझे यह भी पता है कि सैनिटरी पैड को एक दिन में तीन से चार बार बदलना कितना जरूरी है।”
राव ने लड़कियों की माँओं को भी इसमें शामिल करने के लिए मासिक धर्म स्वास्थ्य जागरूकता अभियान चलाया हुआ है।
सविता गिरी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैंने पांचवी क्लास तक पढ़ाई की है। लेकिन हमें स्कूल में कभी भी इन चीजों के बारे में नहीं पढ़ाया गया था। नतीजा यह हुआ कि पीरियड्स आने पर हमें अपने शरीर को संभालना नहीं आता था।” उनकी दो बेटियां, संजना और चांदनी, क्रमशः सातवीं और आठवीं कक्षा में पढ़ती हैं। उन्होंने आगे कहा, ” सफाई न रखने के कारण मुझे एक बार इंफेक्शन हुआ था, तब मुझे डॉक्टर को दिखाना पड़ा था।”
सविता खुश है कि अब चीजें अलग हैं। वह कहती है, “दरअसल यह काफी अच्छा है कि उन्हें कम उम्र में इसके बारे में सिखाया जा रहा है। जब तक इसके बारे में बात नहीं की जाएगी, तो वे कैसे सीख पाएंगी। ” सविता को अपनी छोटी बेटी के साथ इस बारे में बात करने से कोई परहेज नहीं है, जिसे अभी तक पीरियड आने शुरू नहीं हुए है।
ब्रह्मपुर में मेंस्ट्रुअल हेल्थ को लेकर जागरूकता फैलाने के राव के प्रयासों को ‘आशा’ कार्यकर्ता सुमन चौधरी की भी मदद मिली हुई है।
सुमन ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं घर-घर जाकर महिलाओं को पीरियड के दौरान गंदे कपड़ों के बजाय पैड का इस्तेमाल करने की सलाह देती हूं। मैं उन्हें यह भी बताती हूं कि इससे कैसे सर्वाइकल कैंसर का खतरा हो सकता है। बदलाव लाने में समय लगता है, खासकर तब, जब कई लोग सैनिटरी पैड खरीद पाने में सक्षम न हों” आशा कार्यकर्ता ने स्वीकार किया कि राव की ‘स्पेशल क्लास’ गाँव में महिलाओं के बीच मेंस्ट्रुअल हेल्थ के बारे में जागरूकता में लाने में मददगार साबित हो रही है।
राव के इन प्रयासों के चलते सरकारी स्कूल में छात्रों की संख्या काफी बढ़ गई है। उन्होंने कहा, “जब मैं पहली बार स्कूल में आई थी तो यहां मुश्किल से 20 छात्र उपस्थित थे। अब बच्चों की संख्या 70 हो गई है।”
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