इन वजहों से छुट्टियों में भी बच्चे अपने टीचर से मिलने स्कूल आ जाते हैं

भारत सिंह वर्मा उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में मॉडर्न स्कूल रोहिनिया बीसपुर में शिक्षक हैं, त्यौहारों का सीजन आते ही उनके स्कूल के बच्चों के चेहरे पर एक चमक आ जाती है। वजह है उनके टीचर भरत सिंह वर्मा।
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भारत सिंह वर्मा अपने स्कूल में अकेले शिक्षक हैं लेकिन उनकी ख्वाहिश हमेशा सभी बच्चों को पढ़ाई के साथ खुश रखने की रहती है। पोलियो के कारण चलने में परेशानी के बावजूद अपने बच्चों के लिए स्कूल को सभी सुविधाओं से लैस कर रखा है, तभी तो वे बच्चों के सबसे चहेते हैं।

कक्षा पाँच के छात्र रोहित गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “सर के साथ पढ़ाई करने में बहुत मजा आता हैं सर हमें छुट्टियों मे भी पढ़ाते हैं और नयी-नयी चीजें सिखाते हैं।

रोहित के पिता सुदेश तो तारीफ करते नहीं थकते, गाँव कनेक्शन से कहा, “सर बच्चों पर बहुत मेहनत करते हैं मैं रोहित का एडमिशन प्राइवेट स्कूल में करवाना चाहता था, लेकिन यहाँ पढ़ाई अच्छी हो रहीं है इसलिए मैंने रोहित का एडमिशन और कहीं नहीं कराया।”

खास बात ये है अगर कोई बच्चा स्कूल नहीं आता है तो वो उसे लेने घर तक चले जाते हैं।

भारत सिंह गाँव कनेक्शन से बताते हैं, हमारे स्कूल में बच्चों के लिए सारी सुविधाएँ हैं, इलेक्ट्रानिक्स पैर्टन कम्प्यूटर, टीवी, टैबलेट के माध्यम से पढ़ाया जाता है। स्कूल में बच्चों की संख्या ज़्यादा हैं, और मैं अकेला टीचर हूँ, इसलिए मुझे काफी ज़्यादा बच्चों पर ध्यान देना होता हैं।”

भारत बच्चों के स्कूल ना आने पर उनको फोन करते हैं, फोन का रिस्पान्स नहीं मिलता हैं तो उनके घर जाते हैं पता करते हैं बच्चा स्कूल नहीं आया, तो कहा गया ? बच्चों के माता पिता को समझाते हैं की बच्चा स्कूल नहीं आया कोई बात नहीं लेकिन बच्चा कहा हैं, इसकी जानकारी आपको होनी चाहिए।

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भारत कहते हैं, “स्कूल में हर दिन नया करते हैं बच्चों को वो सभी चीजें सिखाने की कोशिश करता हूँ जिससे उन्हें नयी चीजें सिखने को मिले, बच्चों के लिए स्कूल में माइक शो भी किया जाता है जिससे बच्चे बिना किसी झिझक के अपनी बातें कहते हैं, हर दिन असेम्बली में बच्चे कविताऐं सुनाते हैं अपनी बात रखते हैं।

भारत गाँव कनेक्शन को बताते हैं, ” साल 2015 में जब स्कूल ज्वाइन किया था, तब ना तो बच्चे थे और ना ही स्कूल में कोई बाउन्ड्री थी, स्कूल में दरवाजे भी नहीं थे। स्कूल में जानवर बांधे जाते थे ,फिर मैंने गाँव वालों से बात करके उन्हें प्यार से समझा बुझाकर ग्राम प्रधान की मदद से पैसों का इंतजाम किया और सब ठीक कराया। “

“मैंने घर घर जाकर लोगों से बात की उन्हें समझाया अपने बच्चों का एडमिशन कराये स्कूल भेजें, जो अभी आप काम कर रहें हैं, क्या आप चाहते हैं आपके बच्चे भी यही करें ? फिर धीरे धीरे स्कूल में एडमिशन बढनें लगा और आज 338 बच्चे यहाँ पढ़ते हैं।”

भारत बताते हैं, पहले गाँव में महिलाएँ ज़्यादा बाहर नहीं निकलती थी, अब तो बच्चों के लिए स्कूल आती हैं बात करती हैं। काफी चीजों में बदलाव आया है।

स्कूल में एक टीचर होने के कारण क्लास के अच्छे बच्चे को क्लास का मॉनिटर बना दिया जाता है जो क्लास में अपने टीचर भारत की मदद करते हैं। भारत टैब में सब्जेक्ट खोल कर माइक लगा देते हैं जिससे बच्चे शान्ति से पढ़ाई करते हैं। वे माइक से भी सवाल करते हैं। तब तक भारत दूसरी क्लास को पढ़ाते हैं।

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भारत कहते हैं, “स्कूल में हम सारे त्यौहार मिल जुल कर मनाते हैं, रक्षा बंधन, जन्माष्टमी, होली, दीपावली या ईद सभी एक साथ मनाते हैं। बच्चे स्कूल की तरफ से बाहर घूमने भी जाते हैं।”

भारत भावुक होकर बताते हैं, “जब शुरुआत में मैं स्कूल आया था तब हमारे एसएमसी (विद्यालय प्रबन्धन समिति ) के अध्यक्ष शिव कुमार वर्मा ने हमारा बहुत साथ दिया,स्कूल की सारी व्यवस्था हमारे साथ मिलकर सम्भाला था आज स्कूल जिस स्थान पर है उसमें उनका भी बड़ा सहयोग है।

भारत का मानना है की स्कूल में ज़्यादा छुट्टी होने से बच्चों का कनेक्शन टीचर से टूटने लगता है, इसलिए वे कोशिश करते हैं स्कूल में छुट्टी कम से कम हो। जब लगातार 3 दिन से ज़्यादा छुट्टी होती है, तब भी बच्चों को क्लास के लिए तो नहीं लेकिन बच्चों को कुछ समय के लिए स्कूल जरुर बुलाते हैं।

12 साल के शिवम गाँव कनेक्शन को बताते हैं, हमारे स्कूल में सारी सुविधाएँ हैं हम अच्छे से पढ़ाई करते हैं हम नवोदय की तैयारी भी कर रहें हैं उम्मीद हैं हम कर लेंगे।

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