एक दिन क्लास चल रही थी, अचानक एक अचानक एक बच्ची के माता-पिता आए और बोले, ‘तुम यहाँ पढ़ने आती हो या फिर टीवी देखने?’, उन्हें लगा की बच्चे टीवी देख रहें हैं तो पढ़ाई कब होती होगी?
तब उस सरकारी स्कूल की टीचर प्रीति श्रीवास्तव ने उन्हें समझाया कि स्मार्ट क्लास में बच्चों को टीवी के ज़रिए भी पढ़ाया जाता है। “लेकिन अभिवावक कहाँ मानने वाले थे, उन्हें समझने में ये काफ़ी समय लग गया,” उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के कम्पोजिट विद्यालय रन्नो, बक्सा, की प्रधानाध्यापिका प्रीति श्रीवास्तव ने गाँव कनेक्शन से बताया।
उनके पढ़ाने के बेहतर और नए तरीकों की वजह से उन्हें राज्य शिक्षक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
प्रीति श्रीवास्तव आगे कहती हैं, “हम जो काम करते हैं, वह अवॉर्ड के लिए नहीं करते, मगर जिन तकलीफों और संघर्षों को पार करके हम कुछ अच्छा कर पाते हैं, उसके लिए जब हमें अवॉर्ड मिलता है, तो अच्छा लगता है और एनर्जी मिलती है। यह हमारे काम की सराहना है।”

प्रीति ने एक मुहिम शुरू की थी जिसमें उन्होंने उन बच्चियों को शिक्षा से जोड़ा, जो इससे वंचित थीं। यही नहीं, उन्होंने अपनी सैलरी से भी कई बच्चियों को पढ़ाया, जिनके पास पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। कई जगहों पर बच्चियों को पढ़ाई से दूर करके उनकी शादी की बात की जाती थी, उन्हें प्रीति ने समझाया और जागरूक किया।
दुनिया के बारे में बताने के लिए, प्रीति ने स्कूल में प्रोजेक्टर लगाए। इसके बारे में बताते हुए वह कहती हैं, “वहाँ लोग अपनी बच्चियों को टीवी देखने तक नहीं देते, ना ही उनके घर में टीवी है। स्कूल में बच्चों के लिए मैंने प्रोजेक्टर लगाए और आज यहाँ प्रोजेक्टर और स्मार्ट टीवी दोनों हैं, जिनसे बच्चे पढ़ते हैं।”
अब तो अभिभावकों को भी समझ में आने लगा कि जो हो रहा है, उनके बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए हो रहा है, तभी तो अब वो भी साथ देने लगे हैं। शगुफ्ता बनो की माँ रूबीना बानो गाँव कनेक्शन से कहती हैं, “मेरे तीन बच्चे यहाँ पढ़ रहे हैं और इसी साल मैंने दो बच्चों का नामांकन कराया है। स्कूल में बहुत अच्छी पढ़ाई होती है। अगर बच्चे स्कूल नहीं जाते तो प्रीती मैम आकर पूछती हैं कि वे आज स्कूल क्यों नहीं आए। बच्चे भी घर में उनके बारे में बात करते रहते हैं।”

कोविड के समय उन्होंने एक टीम बनाई थी, जिसमें शिक्षक मिलकर बच्चों के लिए एजुकेशनल कंटेंट बना रहे थे। यह प्रक्रिया आज भी जारी है, ताकि डिजिटल माध्यम को अपनाकर बच्चों तक शिक्षा पहुँचाई जा सके। इस प्रयास से आज उनके साथ दस हज़ार से ज्यादा शिक्षक जुड़े हुए हैं। फेसबुक लाइव के माध्यम से उन्होंने बच्चों को नि:शुल्क समर कैंप भी दिया।
उन्हें 2021 में मिशन शक्ति अवॉर्ड भी मिला। तब उन्हें पता भी नहीं था कि वह इसके लिए चुनी गई हैं। प्रीति उस दिन को याद करते हुए कहती हैं, “मुझे पता नहीं था। एक दिन पहले मुझे फोन आया कि आपका सिलेक्शन हुआ है और आपको जाना है। वहाँ मुझे सम्मानित किया गया। जब मैं वापस आई तो बच्चे भी बहुत खुश हुए।”
यूट्यूब के माध्यम से प्रीति महिलाओं की कहानियों को आगे ले आईं, उन्हें प्रोत्साहित किया और उनकी कहानियाँ बच्चों तक पहुँचाईं ताकि वे उनसे सीख सकें।
बच्चे बिना संकोच अपनी बातें रखते हैं। प्रीति आगे कहती हैं, “इस गाँव में लोग शिक्षा और अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत नहीं हैं। किसी तरह अपना पेट पाल लेते हैं। इन्हीं सबको दूर करने के लिए हम गाँव में बैठकें करते हैं, सेनेटरी पैड बांटते हैं बच्चियों को और साथ ही ‘चिट्ठी आई है’ नाम से एक इनोवेशन किया है, जिसमें बच्चे अपने मन की बातें लिखकर डाल सकते हैं, जिसकी जानकारी मेरे पास रहती है। बिना किसी को बताए हम उनकी मदद करते हैं।”

कम्पोजिट विद्यालय में अभी करीब 130 बच्चे हैं, 8 शिक्षक हैं और उनमें 60 प्रतिशत लड़कियाँ और 40 प्रतिशत लड़के हैं, ये कक्षा एक से 8वीं तक है। पहले स्कूल में केवल 25 बच्चे आते थे, पर जब से प्रीति आई हैं, 2013 के बाद से स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ गई है। कई विरोधों को सहने के बाद आज प्रीति बच्चों के साथ इस मुकाम तक पहुँची हैं। जहाँ कभी लोग उनके पक्ष में नहीं थे और उनका विरोध करते थे, आज उन्हीं के समर्थन से वे यहाँ तक पहुँच पाई हैं।
प्रीती जब भदोई से इस स्कूल में पहली बार आईं, तो उन्होंने कहा, “जब मैंने स्कूल की यह अवस्था देखी तो मैंने पापा से कहा कि स्कूल की हालत बहुत खराब है। यहाँ डेस्क और बेंच तक नहीं हैं। टीचर ऊपर बैठते हैं और बच्चे नीचे बैठते हैं। ये सुनकर पापा ने कहा -’अच्छे को सब अच्छा कर सकते हैं, लेकिन जो खराब को अच्छा कर दे, उसका काम बोलता है।”
शीतल गौतम, पाँचवी कक्षा में पढ़ने वाली शीतल गौतम कहती हैं, “प्रीति मैम अच्छा पढ़ाती हैं और हमें हिंदी व इंग्लिश सिखाती हैं। वह हमें टीवी में कार्टून दिखाकर पढ़ाई को समझाती हैं और मुझे बुक्स व कार्टून दोनों से पढ़ना पसंद है।”