जोधपुर में दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली 15 साल की ऐमन बहुत खुश है, उसकी मैम को राष्ट्रपति के हाथों सम्मान जो मिलना है। वो कहती हैं, “स्कूल में शीला मैम के आ जाने से रौनक आ गई स्कूल के किसी भी बच्चे से आप मैम के बारे में पूछो तो सभी यही कहेंगे हमारी मैम बहुत अच्छी हैं तभी तो इतना सम्मान मिल रहा है।”
“हमारी मैम के आने से हम एक्स्ट्रा चीज़ों में पार्टिसिपेट कर पा रहे हैं, मैम बच्चों को नेशनल लेवल तक ले जाती हैं, प्रतियोगिता में भी ले जाती हैं, मुझे साइंस बहुत पसंद है इसलिए मैम मुझे साइंस प्रोजेक्ट के लिए विज्ञान मेला में ले कर गई , उसमें मैं फर्स्ट आई थी। ऐमन ने आगे कहा।
राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक श्याम सदन विद्यालय की प्रधानाचार्या शीला आसोपा के लिए लेकिन इस मुकाम तक पहुँचना आसान नहीं था। वे गाँव कनेक्शन को बताती हैं, “साल 2016 में मेरा ट्रांसफर उच्च माध्यमिक विद्यालय थोब में हुआ। जब मैं स्कूल में आयी तो देखा स्कूल की बिल्डिंग बिल्कुल जर्जर थी। लगता था कि बारिश में कभी भी गिर सकती है।”
वो आगे कहती हैं, “स्कूल के 450 बच्चों की जान जोखिम में डालकर नहीं पढ़ा सकती थी, मैंने जनसमुदाय और सरकारी मदद से स्कूल के 11 कमरों की मरम्मत करायी।”
“जब तक स्कूल तैयार नहीं हो गया तब तक मुझे नींद नहीं आती थी, लोगों की मदद से स्कूल तो बन गया, लेकिन अब मेरे सामने समस्या थी कि लड़कियों को स्कूल कैसे बुलाया जाए, क्योंकि लड़कियों की संख्या बहुत कम थी, “शीला ने आगे बताया।”
लेकिन शीला कहाँ शांत बैठने वाली थी, घर-घर जाकर अभिभावकों को समझाया, तब कहीं जाकर लड़कियों का नामांकन बढ़ने लगा। शीला उस समय को याद करती हैं, “स्कूल में बच्चियों की संख्या बढ़ी तो पढ़ाई के साथ ही उनको खेल के लिए प्रोत्साहित किया। पहले यहाँ की कोई बच्ची स्कूल से बाहर नहीं खेलने गई थी, जब मौका मिला तो कई बच्चियों ने पूरे ज़िले में नाम किया। आज उनमें से कई बच्चियाँ फिजिकल टीचर भी हैं।”
साल 2017 में शीला का ट्रांसफर थोब स्कूल से धवा स्कूल में हो गया। जहाँ पर उन्होंने बालिका जागरूकता पर काम किया, जिसके लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज हुआ। इसके बाद उन्होंने एक साथ 50 हज़ार बच्चों को हाथ धोने का प्रशिक्षण दिया।
इसके बाद शीला का ट्रांसफर बावड़ी स्कूल में हो गया, जहाँ पर पानी की बहुत किल्लत थी, उन्होंने पानी से जुड़े कई नवाचार किए। शीला बताती हैं, “मैंने इको रेन वाटर हार्वेस्टिंग पैनल पर काम किया, जिसके बाद स्कूल को वाटर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। साथ ही एक लाख रुपये की धन राशि भी दी गयी थी जल शक्ति मंत्रालय से मुझे वाटर हीरो का सम्मान मिला था।”
शीला आगे कहती हैं , “स्कूल में स्पेशल चाइल्ड के लिए दिव्यांग केंद्र जो जर्जर हो चुका था, उसके लिए भी मैंने काम किया और जर्जर हो चुके केन्द्र को एकदम स्मार्ट चाइल्ड केंद्र में बदल दिया। यहाँ अब पूरे ब्लॉक के बच्चे आते हैं।”
इसके बाद शीला का ट्रांसफर राजकीय बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, श्याम सदन में हो गया। बच्चियाँ टीन शेड के नीचे पढ़ाई करती थीं, शीला के प्रयास से उस स्कूल में स्मार्ट क्लास जैसी सुविधाएँ हैं। शीला आसोपा जिस स्कूल में नियुक्त हुईं, वहाँ पर अपनी छाप छोड़ गईं।
अपने पुराने स्कूलों को याद करके शीला बताती हैं, “आज मेरे पढ़ाए बच्चे अच्छे पदों पर हैं, जब भी मुझे मिलते हैं, तो कहते है मैम आप न हमारी प्रेरणा हैं वो सुन कर मुझे इतनी ख़ुशी मिलती है कि बच्चों ने मुझे अपने प्रेरणा स्त्रोत माना है।”
उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ भी मुहिम छेड़ रखी है। वो कहती हैं, “मैंने उन बच्चियों के लिए भी काफ़ी काम किया है, जिनका बाल विवाह हो जाता था। ऐसी ही एक देवी नाम की लड़की है, जिसकी शादी कम उम्र मे हो गयी थी। पढाई छोड़ कर घर बैठ गई थी, मैंने उसे दोबारा समझाया स्कूल से जोड़ा आज वो न केवल पढाई में अच्छा कर रही हैं, लुप्त होती कला में राष्ट्र स्तर पर अपनी कला का प्रदर्शन भी किया।”
शीला ने देवी को रावण हत्था बजाना सिखाया जिससे आज वो राष्ट्रीय स्तर पर परचम लहरा रही हैँ।
राष्ट्रपति के हाथों सम्मान मिलने पर शीला कहती हैं, “ये सम्मान मैंने अपने बच्चों को समर्पित किया है , इससे मेरी ज़िम्मेदारी और बढ़ गयी है। मुझे और ज़्यादा काम करने का हौसला मिला और कम्युनिटी और बच्चो के लिए और बेहतर करने का प्रयास करूँगी, मेरे लिए ये मोटिवेशन का काम करेगा। अभी मैं जिस स्कूल राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय में पढ़ा रही हूँ, यहाँ आये मुझे सिर्फ 10 महीने हुए हैं, इससे पहले मैंने जितने भी स्कूल में अपनी सेवा दी है उस के लिए मुझे ये सम्मान मिलने वाला है।”