विज्ञान जैसा विषय अब इससे दूर भागने वाले बच्चों का पसंदीदा बन गया है। दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले सचिन विश्वकर्मा भी उन्हीं बच्चों में से एक हैं। ऐसा हो पाया है उनकी साइंस वाली दीदी यानी उनकी टीचर सारिका घारू की वजह से।
15 साल के सचिन गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “पहले मुझे साइंस में कुछ ज्यादा इन्ट्रेस्ट नहीं था, लेकिन जब से मैम प्रैक्टिकल क्लासेस लेने लगीं हैं, तब से साइंस पढ़ने में बहुत मजा आ रहा है और साथ ही क्लास में हम गाकर साइंस पढ़ते हैं।”
सारिका घारू मध्य प्रदेश के नर्मदापुर के शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, सांडिया पिपरिया में शिक्षिका हैं, आदिवासी क्षेत्र के इस स्कूल में सारिका गीत गाकर बच्चों को विज्ञान पढ़ाती हैं। इंटरनेट की पहुँच से दूर इन गाँवों में विज्ञान जैसे जटिल विषय की शिक्षा देना मुश्किल काम था, लेकिन सारिका ने विज्ञान के गीत गाकर इसे आसान बना दिया।
सारिका गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “मुझे हमेशा से गाना बहुत पसंद रहा है, बचपन से ही मैं गाना गाती थी, मैंने गायन का कोर्स भी किया है और जागरण में भजन भी गाती थी। इसलिए मेरा दिमाग गाने पर जाता, तब मैंने सोचा कि क्यों न गाने के ज़रिए ही बच्चों को पढ़ाया जाए।”
बच्चों को वैसे कोई सबक जल्दी याद नहीं होता, लेकिन गाने के ज़रिए बच्चों को पढ़ाने पर उन्हें झट से याद हो जाता है। सारिका कहती हैं, “मैंने गीतों के जरिए बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और बच्चों को पढाई में मजा आने लगा। फिर क्या था हमारी साइंस की किताबों को हमने गीतों में पिरो दिया।”
बच्चों के साथ गीतों के जरिए ही पढाई की जाती हैं और ऐसे स्कूल का कमजोर से कमजोर बच्चा भी दो से चार लाइन सुना ही देता हैं।
सारिका के स्कूल के बच्चों का सिलेक्शन कई बार राष्ट्रीय विज्ञान प्रतियोगिताओं में हुआ है। सारिका बताती हैं, “हमारे बच्चों को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया, जब मैंने और हमारे बच्चों ने मिलकर मेहनत की तो साल 2014 और 2015 में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और साल 2016 और 2017 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बच्चों को सम्मानित किया।”
नर्मदापुरम की श्रीमती सारिका घारु, इंदौर की श्रीमती चेतना खंबेटे, भोपाल के डॉ. यशपाल सिंह, दतिया के श्री रविकांत मिश्रा और रतलाम की श्रीमती सीमा अग्निहोत्री को महामहिम राष्ट्रपति महोदया श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी द्वारा राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार-2023 से सम्मानित किया गया pic.twitter.com/Yh9yygXFY1
— School Education Department, MP (@schooledump) September 6, 2023
कोविड महामारी में जब पूरी में बच्चों की पढ़ाई ठप हो गई थी, तब सारिका नदी के किनारे बच्चों को इकट्ठा करके गीत के जरिए उन्हें पढ़ा रहीं थीं। यही नहीं टेलीस्कोप के जरिए बच्चों का परिचय दूर आसमान के ग्रह और तारों से करा रहीं थीं। ये सब आदिवासी बच्चों के लिए किसी सपने के पूरे होने जैसा पल था।
सारिका कहती हैं कि जब वो स्कूल में थी तो वहाँ पढ़ाने के तरीकों से अक्सर बोर हो जाती थीं, इसलिए उन्होंने सोच लिया कि वो उन तरीकों से हटकर पढ़ाएँगी। “मैं चाहती हूँ बच्चे जरा भी बोर ना हो और मस्ती के साथ अपनी पढ़ाई करें। साइंस में मेरा इंटरेस्ट बचपन से था, मैं साइंस की अच्छी स्टूडेंट थी। मैंने अपने स्कूल में साइंस मॉडल बनाया था, जिसमें मैं नेशनल लेवल पर फर्स्ट आयी थी, जब मेरा मॉडल नेशनल लेवल पर पसन्द किया गया था तो मैंने सोचा कुछ और अच्छा कर सकती हूँ, तो आगे की पढाई मैंने साइन्स से ही करना सही समझा।” सारिका ने आगे कहा।
सारिका ने खुद के खर्चों से स्कूल में एक लैब तैयार की है, जिसमें बच्चों को विज्ञान के साथ ही खगोल विज्ञान भी पढ़ाया जाता है। सारिका कहती हैं, “मेरे स्कूल में प्रयोगशाला नहीं थी, इसलिए मैंने अपनी माँ के साथ मिलकर डेढ़ लाख रुपये लगाकर लैब तैयार करायी, साथ में ऐस्ट्रो लैब भी बनाई जिसमें टेलीस्कोप भी रखा गया है।”
बच्चों को अब क्लास से ज़्यादा लैब में अच्छा लगता है, लैब को कई तरह के रंगीन चित्रों और लाइट से सजाया गया है। यहाँ पर बच्चों की रिकॉर्ड की गई वीडियो भी चलती रहती है। बच्चों के साथ मिलकर साइंस के वीडियो भी बनाती हैं।
सारिका गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “मैं गाने और कविताएँ भी लिखती हूँ, 2010 में मेरा चुनाव मतदान जागरुकता अभियान की यूथ आइकन रुप में चुना गया था। इसके लिए मैं लगातार अभी तक काम कर रहीं हूँ, फिर राज्य निर्वाचन आयोग ने बॉन्ड एम्बेसडर बनाया, उसके बाद चुनाव आयोग ने भोपाल से चुनाव आयोग का यूथ आइकन बनाया।”
ऐसे में अब सारिका की ज़िम्मेदारियाँ भी बढ़ गईं हैं, चुनाव आयोग के प्रचार-प्रसार के साथ ही वे स्कूल भी संभालती हैं। सारिका बताती हैं, “जिस दिन आयोग के लिए काम करना होता हैं, उस दिन मैं सुबह चार बजे उठकर पहले आयोग के लिए वीडियो बनाती हूँ, उसके बाद फिर स्कूल जाती हूँ।”
सारिका के इस पूरे प्रयास में उनकी माँ ने उनका हमेशा साथ दिया, लेकिन अब जब उन्हें राष्ट्रपति सम्मानित करेंगी तो वो उनके साथ नहीं हैं। सारिका कहती हैं, “जब मुझे पता चला की मुझे राष्ट्रपति से सम्मान मिलने वाला है तो मुझे बहुत खुशी हुई, लेकिन मन में दुख होता है। मेरी माँ ने हमेशा साथ दिया। एक बार मैंने माँ से कहा कि माँ मुझे शादी के लिए मत फोर्स करना तो उन्होंने मुझे फिर कभी नहीं कहा, लेकिन आज इतने अच्छे मौके पर वो मेरे साथ नहीं हैं।”
दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले आयुष सारवान बहुत खुश हैं कि उनकी मैम को अवार्ड मिल रहा है। वो कहते हैं, “जब से हमें पता चला है कि मैम को अवार्ड मिल रहा है, बहुत अच्छा लग रहा है, मैम इतने अच्छे से पढ़ाती हैं तो उन्हें अवार्ड तो मिलना ही था।”