कोलकाता की एमबीए ग्रेजुएट ने अपने घर से 2200 किमी दूर स्पीति घाटी में क्यों शुरू की लाइब्रेरी

पश्चिम बंगाल की 37 वर्षीय रुचि धोना ने हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले के लोगों में पढ़ने की आदत डालने के लिए अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ दी। उन्होंने देश के इस सुदूर कोने में पुस्तक क्रांति लाने के लिए एक निःशुल्क कम्युनिटी लाइब्रेरी - 'लेट्स ओपन ए बुक' की शुरुआत की है।
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बारिश के बाद सूरज अभी-अभी निकला था और रुचि धोना अपनी छोटी सी लाइब्रेरी की दीवारों पर पेंटिंग बना रही थी, जहाँ नई किताबें अलमारियों में रखी जानी थीं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “इसके बाद मैं और भी किताबें व्यवस्थित करुँगी जो हमें मिली हैं।”

धोना लेट्स ओपन ए बुक की फाउंडर (संस्थापक) हैं, जिसके सहयोग से हिमाचल प्रदेश के सर्द रेगिस्तानी जिले लाहौल और स्पीति के सब डिवीजन मुख्यालय काजा में बच्चों के लिए एक कम्युनिटी लाइब्रेरी खोली गई है,ये तिब्बत बॉर्डर से कुछ ही दूर पर है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 11,980 फीट है।

कम्युनिटी लाइब्रेरी में हिंदी, अंग्रेजी और तिब्बती भाषा में 2,500 से अधिक किताबें हैं। यहाँ बच्चों के साथ ही बड़ों की पसंद की भी किताबें हैं। छोटे बच्चों के लिए कपड़े की किताबें, लिफ्ट-द-फ्लैप किताबें, संगीतमय किताबें आदि हैं जबकि बड़े बच्चों के लिए रहस्य और रोमांचक किताबें हैं। 37 वर्षीय धोना ने हंसते हुए कहा, “जब मैं बड़ी हुई तो मुझे नैन्सी ड्रू सीरीज़ बहुत पसंद आई।”

लेट्स ओपन ए बुक देश के पिछड़े क्षेत्र में एक अनूठी कम्युनिटी लाइब्रेरी पहल है जहाँ बच्चों के लिए शैक्षिक सुविधाएँ और सीखने के अवसर सीमित हैं।

धोना खुद पश्चिम बंगाल के कोलकाता से हैं और 2017 में पहली बार स्पीति आई थीं। उन्होंने हाल ही में अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ी थी। “मैं यहाँ के कुछ सरकारी स्कूलों में गई और वहाँ कहानी की किताबों की कमी मेरे दिमाग में घर कर गई। मैंने फैसला किया कि मैं घाटी में वापस जाकर वहाँ के बच्चों के लिए एक लाइब्रेरी शुरू करुँगी। ” उन्होंने बताया।

उन्होंने सरकारी स्कूलों के साथ काम करना शुरू किया और 2021 में एक मुफ्त कम्युनिटी लाइब्रेरी परियोजना की शुरुआत की। धोना घाटी लौट आईं और वहाँ के बच्चों के लिए ‘लेट्स ओपन ए बुक’ की स्थापना की।

किराये की जगह में खुली इस लाइब्रेरी में हर दिन बच्चे आते हैं जो अपनी पसंद की किताबें लेते हैं, कालीन और दरी पर बैठते हैं और बिना कोई फीस दिए यहाँ किताबें पढ़ते हैं।

क्राउडफंडिंग के साथ-साथ देश भर के लोगों के दान से धोना को लाइब्रेरी बनाने में मदद मिली है। “कूलस्कूल और तूलिका जैसे प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता भी हैं जो हमें भारी छूट पर किताबें बेचते हैं। हम एक विश लिस्ट बनाते हैं और लोग वहाँ से हमें लाइब्रेरी के लिए किताबें भेजते हैं, ”उन्होंने कहा।

साल भर खुली रहने वाली लाइब्रेरी की देखभाल के लिए दो लाइब्रेरियन बारी-बारी से काम करते हैं। धोना ने कहा, किताबें सिर्फ अलमारियों पर नहीं रहतीं। उनके आसपास कई गतिविधियाँ और परियोजनाएँ बनाई गई हैं और इन्हें काफी सफलता मिली है।

“हमने 100-किताबों की एक चुनौती शुरू की जिसमें हमने बच्चों को पुस्तकालय में कई तरह की किताबों से परिचित कराया और उन्हें आकर उन्हें पढ़ने के लिए कहा। जो कोई भी 100 किताबें पढ़ेगा उसे विनर घोषित किया जाएगा और पुरस्कार के रूप में एक बैग मिलेगा,” उन्होंने उत्साहित होकर बताया।

ऐसे कुछ सौ लोग हैं जो धोना की पहल का समर्थन करते हैं और उनमें से कुछ वालंटियर के रूप में ऑनलाइन काम करते हैं जो रिकॉर्ड बनाए रखने और सोशल मीडिया को संभालने में उनकी मदद करते हैं।

“ये लोग लाइब्रेरी के लिए जो काम करते हैं वह सराहनीय है और मेरे लिए बहुत बड़ा सहारा है। हम मिलकर लाइब्रेरी के लिए योजनाएँ बनाते हैं। मेरे बहुत सारे दोस्त, सहकर्मी, ऑफिस के सीनियर्स मेरी इस मुहिम में मेरे साथ हैं,” धोना ने कहा।

धोना खुद किताबों प्रेमी हैं और यह उनके दादा थे, जिन्होंने उन्हें बचपन में पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया था। उन्होंने कोलकाता के सेंट जेवियर्स से ग्रेजुएशन करने के बाद दिल्ली से एमबीए किया। उन्होंने कहा, “मेरे लिए यह अपनी ज़िंदगी जीने के तरीकों को कंट्रोल करने का तरीका था।”

धोना को लगता है कि कम्युनिटी लाइब्रेरी चलाने के अलावा वह कुछ भी नहीं कर पाएँगी क्योंकि इससे उसे बेहद खुशी होती है और संतुष्टि मिलती है।

धोना ने कहा, “कहानियों से मिलने वाली खुशी और बच्चों का लाइब्रेरी में बार-बार आने का उत्साह ही था जिसने इस लाइब्रेरी को बनाने का विचार पैदा किया और इसके अलावा मैं इस प्लेनेट पर कुछ और नहीं करूंगी।”

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