84 साल की उम्र में उनके अंदर पढ़ाने का वही जोश और जज्बा है, जो सालों पहले हुआ करता था। बाण बिहारी दास ने ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले के कखरूनी स्कूल में साल 1964 में पहली बार कदम रखा था और कई सालों तक पढ़ाने के बाद 1999 में रिटायर हो गए। इतने सालों के बाद वह आज भी इसी स्कूल से जुड़े हैं और बच्चों को पढ़ा रहे हैं. इसके लिए वह कोई पैसा नहीं लेते हैं। 84 साल की उम्र में उनके अंदर पढ़ाने का वही जोश और जज्बा है, जो सालों पहले हुआ करता था।
पट्टामुंडई ब्लॉक में कखरूनी अपग्रेडेड गवर्नमेंट अपर प्राइमरी स्कूल में शिक्षक बाणबिहारी को लोग प्यार से ‘बाना सर’ कहकर बुलाते हैं। यहां पहली क्लास से लेकर आठवीं क्लास तक के कुल 338 बच्चें पढ़ने के लिए आते हैं।
अनुभवी शिक्षक ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे छात्र बहुत अच्छे हैं। मुझे उन्हें पढ़ाने का मौका मिला उसके लिए मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं।” उन्होंने हंसते हुए कहा, “मैं तभी रुकूंगा, जब मैं थक जाऊंगा। लेकिन फिलहाल तो मेरा इरादा 100 साल का होने तक पढ़ाने का है।” उनके छात्रों के मुताबिक, बाना सर की एनर्जी और उत्साह देखने लायक है।
स्कूल की हेड मिस्ट्रेस रेणुका महापात्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “स्कूल के कई मौजूदा शिक्षक कभी बाना सर के छात्र हुआ करते थे। वे सभी यही बात कहते हैं कि तब से लेकर आज तक उनके पढ़ाने का तरीका ज़रा भी नहीं बदला है।”
अशोक कुमार परिदा पहले बतौर छात्र इस स्कूल में पढ़ने आया करते थे। आज वह यहां एक शिक्षक हैं। उन्होंने कहा, “मैंने इस स्कूल में तब पढ़ाई की जब बाना सर टीचर हुआ करते थे। वह एक दिग्गज हैं और उन्होंने अपने 60 साल के करियर में सैकड़ों छात्रों को पढ़ाया है। 58 साल की परिदा ने गाँव कनेक्शन से कहा, ” अपनी धोती और शर्ट में वह बड़े ही उत्साह के साथ उड़िया साहित्य, अंग्रेजी या गणित पढ़ाते हैं। “
सूर्यमणि दास भी बाना सर के पूर्व छात्र हैं। सूर्यमणि ने कहा, “मैंने 1960 के दशक में इस स्कूल में पढ़ाई की थी और मेरे बेटे अजय ने 1990 के दशक में यहां से अपनी शिक्षा पूरी की। अब मेरा पोता अमिताव भी बाना सर का छात्र है।”
संबलपुर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर कृष्ण चंद्र प्रधान ने कहा कि बाना सर ने उन्हें पढ़ाया था और उनके जैसे कई अन्य लोगों के लिए वह प्रेरणा हैं। कखरौनी गाँव में रहने वाले प्रधान ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं उनके लंबे और सुखी जीवन की कामना करता हूं। वह हमारे गाँव और उसके आस-पास के इलाकों के कई बच्चों को पढ़ाकर दूसरों के लिए एक सकारात्मक उदाहरण स्थापित कर रहे हैं। उन्हें इस काम के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।”
अपने रिटायरमेंट के बाद बाण सर ने फैसला किया कि वे बच्चों को पढ़ाना जारी रखेंगे। यह उनका प्यार था और उनमें ऐसा करने की ऊर्जा और इच्छा थी। वह पूरे प्यार,जोश और जुनून के साथ बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते हैं। वह अपने तीन बेटों और एक बेटी के साथ कखरौनी गाँव में ही रहते हैं।
कखरौनी ग्राम पंचायत के सरपंच रमेश मल्लिक ने कहा, “बाना सर जैसे लोग ही हमें रास्ता दिखाते हैं। मुझे यकीन है कि देश में और भी कई बाना सर होंगे जो बिना स्वार्थ के दूसरों की सेवा कर रहे होंगे। लेकिन उनके बारें में कोई नहीं जानता है। वो भी अनदेखे और अनसुने रह जाते हैं।”
स्कूल के शिक्षक और बाना सर के पूर्व छात्र सुप्रवा नायक ने अपने शिक्षक को ‘अजेय’ कहा। नायक हंसते हुए कहते हैं, “वह अभी भी छात्रों के साथ बड़ी सहजता से जुड़ते हैं और उन्हें अपने साथ जोड़ लेते हैं, उनके सामने मुश्किल सवाल रखते हैं। एक गलत जवाब पर आज भी वैसी ही कड़ी फटकार लगती है।”
केंद्रपाड़ा ऑटोनॉमस कॉलेज में फिजिक्स के लेक्चरर रंजीत दास ने अपने पिता के बारे में बात करते हुए कहा कि उनके पिता (बाना सर) यही मानते है कि गाँव के बच्चों को शिक्षा देना ही उनका काम है। दास ने गाँव कनेक्शन को बताया, “और वह अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करेंगे।”