सभी बच्चों की निगाहें सामने रखी मेज पर टिकी हैं। वहां कहानियां सुनाने के लिए एक छोटे से मंच का मॉडल बना है। बच्चे काफी खुश हैं, उन्हें पता है कि जल्द ही यह मंच कठपुतलियां से सजीव हो जाएगा और कहानी सुनाकर उनका मनोरंजन करेगा।
चौंकिएगा नहीं, यह तस्वीर किसी मेले या बाजार की नहीं है, बल्कि मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के दौलतपुर गाँव के एक प्राथमिक विद्यालय की है, जहां बच्चे सांसे रोककर शो शुरु होने का इंतजार कर रहे हैं। जैसे ही उनकी टीचर विमलवाणी दुबे आती हैं, बच्चे जोर से ताली बजाकर उनका स्वागत करते हैं।
दुबे एक सरकारी शिक्षक हैं और 1998 से पढ़ा रही हैं। दो साल पहले उनका ट्रांसफर दौलतपुर के सरकारी प्राइमरी स्कूल में हुआ था। उसी दौरान उन्हें एक ट्रेनिंग प्रोग्राम में जाने का अवसर मिला। तब दुबे ने जाना कि बच्चों को किताबों से रटाने के अलावा भी कई और तरीकों से पढ़ाया जा सकता है। दूबे आज जिस तरह से बच्चों को पढ़ा रही हैं, उससे उनके छात्रों में काफी बदलाव देखने को मिला है। छात्र अब स्कूल से छुट्टी मारने के बहाने ढूंढते नजर नहीं आते, बल्कि स्कूल आना उनकी पहली प्राथमिकता बन गया है। उनका एक YouTube चैनल भी है।
शिक्षिका ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैंने सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र की ओर से उदयपुर में आयोजित 15 दिनों के एक ट्रेनिंग प्रोग्राम में हिस्सा लिया था। वहां हमने जाना कि छोटे बच्चों को सीखने में व्यस्त रखने के लिए कठपुतलियों का इस्तेमाल कैसे किया जाता है।”
दुबे ने कार्यशाला में चार अलग-अलग तरह की कठपुतलियां बनाना सीखा। उन्होंने कहा, “मैंने वहां छड़ी कठपुतली, उंगली कठपुतली, दस्ताने कठपुतली और छाया कठपुतली बनाना सीखा। मैं पहले तीन तरह की कठपुतलियों का इस्तेमाल करती हूं। और बच्चों को ये काफी पसंद आता है। इन सभी कठपुतलियों को बेकार की चीजों से बनाया जाता है, जिसके लिए ज्यादा खर्च करने की जरूरत भी नहीं होती।”
दुबे मुस्कुराते हुए बताती हैं, “हम कठपुतलियों से बच्चों को नंबर, पर्यावरण, विज्ञान और कई अन्य विषयों के बारे में सिखाते हैं। वो ज्यादा ध्यान से सीखते हैं और कठपुतलियों द्वारा बताई गई बातों को याद रखते हैं।”
आबिद खान एक दिहाड़ी मजदूर हैं। उनकी बेटी हमशीरा इसी स्कूल में दुबे की क्लास में पढ़ती हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे तीन बच्चे हैं जिनमें से सिर्फ एक मिस दुबे की कक्षा में पढ़ता है। जब मेरी बेटी घर आती है और उस दिन स्कूल में सीखी हुई बातों को दोहराती है, तो हमें काफी अच्छा लगता है। मेरे दो बच्चे किसी दूसरे स्कूल में जाते हैं। जब मैं उसके बोलने और समझाने के तरीके की तुलना अपने अन्य दो बच्चों से करता हूं तो अंतर साफ नजर आता है।”
शिक्षा विभाग के ब्लॉक संसाधन केंद्र के एक अधिकारी बंशीलाल चौहान ने भी उनके पढ़ाने के तरीके की प्रशंसा की।
उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “दुबे बच्चों के सीखने और याद करने की क्षमता में सुधार के लिए नई तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं। विभाग के अन्य शिक्षक भी उनसे सीख रहे हैं और उनके शिक्षण के तरीकों को अपना रहे हैं।”
51 साल की शिक्षिका ने कहा कि उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाली सरकारी शिक्षिका होने पर गर्व है। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “यह मेरे लिए बहुत गर्व की बात है कि मैं एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका हूं और मुझे वंचित घरों से आने वाले बच्चों को पढ़ाने का अवसर मिल रहा है।”
उन्होंने याद करते हुए बताया, “एक शिक्षक के तौर पर मैंने हमेशा ग्रामीण क्षेत्रों में काम किया है। 1998 से 2008 तक मैं सीतामऊ गांव में था। 2008 में, जब मैं भलौर के प्राइमरी स्कूल से जुड़ी, तो मुझे राज्य सरकार की तरफ से आयोजित एक ट्रेनिंग वर्कशॉप में भाग लेने का अवसर मिला। तब मैंने जाना कि बच्चों को खेल-खेल में मनोरंजक तरीके से किस तरह से क्लास में सिखाया और पढ़ाया जा सकता है।”