काला छाता, एलईडी टीवी और बिना बैग के स्कूल- बिलासपुर में एक प्राइमरी सरकारी टीचर ने चलाई बदलाव की एक मुहिम

छत्तीसगढ़ के धनरस गाँव के एक प्राथमिक सरकारी स्कूल के कक्षा 1 से 5 तक के 90 बच्चों को दीप्ति दीक्षित अकेले संभालती हैं। यह कोई आसान काम नहीं है। लेकिन दीप्ति न सिर्फ ग्रामीण बच्चों नए तरीकों के साथ पढ़ा रही हैं बल्कि स्थानीय महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण भी दे रही हैं। दीप्ति का मकसद शिक्षा और संसाधनों के मामले में सरकारी स्कूल को प्राइवेट स्कूलों के बराबर लेकर आना है।
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11 साल की चंद्रज्योति छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में कोटा ब्लॉक के धनरस गाँव के सरकारी स्कूल ‘शासकीय प्राथमिकशाला’ में कक्षा पांच की छात्रा हैं। उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ ‘जॉनी जॉनी यस पापा’ गाना शुरू किया। उनकी आवाज से अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह कितनी खुश हैं।

चंद्रज्योति ने गाँव कनेक्शन को बताया, “यह सीखना बहुत ही मजेदार था।” और हो भी क्यों न! उनकी मुलाकात ‘जॉनी’ से स्कूल के स्मार्ट टीवी पर जो हुई थी। स्कूल में टीवी का आइडिया उनकी शिक्षिका दीप्ति दीक्षित का था।

यह पहली बार नहीं है जब दीप्ति अपने छात्रों को नए तरीकों से सिखाने की पहल कर रही हैं। दीक्षित इससे पहले धनरस गाँव में अपने घर से 25 किलोमीटर दूर इसी ब्लॉक में खरगैनी के एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाती थीं।

इस साल 19 सितंबर को उन्होंने अपने दो साल के बच्चे की देखभाल करने के लिए अपने घर के पास के इस स्कूल में ट्रांसफर करा लिया था।

पिछले तीन महीनों में उन्होंने मिडिल स्कूल (मिडिल स्कूल प्राथमिक स्कूल के परिसर में ही है) में महिलाओं को सिलाई सिखाने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया और इसके साथ ही एक मुस्कान पुस्तकालय, एक टॉय कॉर्नर और एक एलईडी टीवी भी लगाई है। टीवी के जरिए बच्चों को कविताएं, वर्णमाला के अक्षर, गणित और विज्ञान विषय को पढ़ाया जा रहा है। स्कूल में मुख्य रूप से आदिवासी और अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) समुदायों के बच्चे आते हैं। खास बात ये है कि स्कूल में ये सारी सुविधाएं सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से मुहैया कराई गई हैं।

36 वर्षीय शिक्षिका ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए ऐसे लोगों से संपर्क किया जो स्कूल को अपनी मदद देने के लिए तैयार थे।

जब दीक्षित धनरस गाँव के सरकारी प्राथमिकशाला में पहुंची तो उन्हें वहां कक्षा 1 से 5 तक के 90 बच्चों की जिम्मेदारी अकेले संभालनी थी। उन्होंने कहा, मैं समझ गई थी कि मुझे मल्टीटास्क करना है। मुझे हर कक्षा के बच्चों को पर्याप्त समय देना था और छात्रों को सिखाना भी था। इस काम में हेडमास्टर देवब्रत मिश्रा से उन्हें मदद तो मिलती, लेकिन क्लस्टर हेड होने की वजह से वह भी ज्यादा समय नहीं दे पा रहे थे। उनके ऊपर भी लगभग 12-15 स्कूलों के प्रबंधन की जिम्मेदारी थी।

बच्चों को पढ़ाई में व्यस्त रखना

लगभग 13 सालों से टीचिंग के व्यवसाय से जुड़ी दीक्षित ने कहा, पढ़ाना मेरे अंतर्मन के साथ जुड़ा हुआ है और मैं हार मानना नहीं चाहती थी। वह आगे कहती हैं, “शुरुआत से ही मैं समुदाय को बेहतर तरीके से शिक्षा देना चाहती थी और इसे टिकाऊ बनाने के लिए समुदाय की मदद के साथ आगे बढ़ना चाहती थी।”

स्कूल में ग्रामीण बच्चों को पढ़ाने के लिए दीक्षित सिर्फ एलईडी टीवी का इस्तेमाल नहीं करती हैं। उनके पास एक काला छाता भी है, जिस पर अक्षर और नंबर लिखे हैं। इससे वह बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं। छतरी पर बनी हर एक आकृति की ओर इशारा करते हुए वह उनसे इसे पहचानने के लिए कहती हैं। वह ‘बैगलेस एजुकेशन’ लाना चाहती हैं।

उन्होंने कहा “हमारे पास एक बस्ता विहीन कार्यक्रम है। यहां हम बच्चों को सिखाने के लिए खेल के तरीकों पर निर्भर हैं। यह बच्चों को व्यस्त रखता है और उन्हें सुधारात्मक तरीके से अपने विषयों को समझने में मदद करता है।” उनके छात्र शनिवार को बिना बैग के स्कूल आते हैं और उस दिन वे सिर्फ नाटक, कविता आदि से सीखते हैं।

और बदले में उन्हें स्कूल के बच्चों का ढेर सारा प्यार मिलता है।

ख़ुशी ने कहा, “मुझे अच्छा नहीं लगता जब दीप्ति मैडम छुट्टी पर चली जाती हैं। वह हमारे साथ बहुत सारे खेल खेलती है। मेरा पसंदीदा चिड़िया (बैडमिंटन) खेल है।” उसके माता-पिता भी इस सबसे काफी खुश हैं।

दीक्षित स्कूल में बच्चों को सिखाने और उन्हें पढ़ाने के तरीके में थोड़ा बदलाव लाना चाहती थीं। जब उन्होंने उसके लिए प्रयास करना शुरू किया तो पाया कि बहुत सारे लोग उनकी मदद करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने समझाते हुए कहा, “जब मैं योगदान मांगने के लिए बाहर निकली, तो मुझे एहसास हुआ कि लोग मदद करने के लिए तैयार हैं। बस जरूरत अपनी सोच, अपने आइडिया को उनके सामने बेहतर ढंग से रखने की है। मेरा मकसद एक बार में एक बड़ी राशि इकट्ठा करने की बजाय लगातार छोटा योगदान लेना था।”

उन्हें सबसे पहली डोनेशन अपने एक दोस्त से मिली, जिसने एक हजार रुपये का योगदान दिया था। उन्होंने कहा कि उनके ससुर एक रिटायर्ड टीचर हैं। उनसे उन्हें काफी समर्थन मिला है।

अपने छात्रों की माँ को भी अपने साथ जोड़ना

दीक्षित ने धनरस में महिला को अपने साथ जोड़ना शुरू कर दिया था।

उन्होंने बताया, “मैं उनसे पंचायत कार्यालय में मिली थी। तब वे अपना राशन लेने के लिए वहां आईं हुईं थीं। मैंने उनसे पूछा कि क्या वे सिलाई सीखना चाहती हैं। मेरे लिए यह काम आसान था क्योंकि वे मेरे ही गाँव की महिलाएं थीं।”

विचार यह था कि स्कूल में ही महिलाओं को सिलाई का प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि वह स्कूल में अपने बच्चों की गतिविधियों के बारे में जान सकें। जिन महिलाओं ने चार महीने के नि:शुल्क कोर्स में भाग लिया था, वो दोपहर 2 बजे से 4 बजे के बीच हर रोज दो घंटे के प्रशिक्षण के लिए स्कूल में होती थीं। इससे उन्हें अपने बच्चों की परफॉर्मेंस को लेकर बात करने के लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही उन्होंने इस बात पर होने वाली चर्चा में भी भाग लेना शुरु कर दिया कि बच्चों को सुधारने में कैसे मदद की जा सकती है।

दिल्ली में रहने वाले राम चंद विरवानी ने स्कूल को चार सिलाई मशीनें डोनेट कीं और साथ ही ट्रेनर के मासिक वेतन की जिम्मेदारी भी ली जो औरतों को सिलाई और कढ़ाई सिखाने के लिए स्कूल में नियुक्त की गईं थीं। 71 साल के विरवानी भारत के संसद भवन, राज्यसभा से सेवानिवृत्त निदेशक हैं।

उन्होंने कहा, “मैं समाज की महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती थी। लेकिन एंटरप्रेन्योरशिप से जुड़े ज्यादातर आइडियाज मसलन अचार, पापड़ आदि बनाने के लिए मार्केटिंग की जरूरत थी। उस चुनौती से उबरने के लिए, मैंने सिलाई प्रशिक्षण के बारे में सोचा जो ग्रामीण महिलाओं को अपनी आजीविका कमाने में मदद कर सकता है।”

विरवानी ने हाल ही में दीप्ति के स्कूल के लिए एक कंप्यूटर-ट्रेनर के वेतन की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर ले ली है। इस योजना पर भी काम चल रहा है।

धनरस की रहने वाली सोनाक्षी यादव पहले से सिलाई करना जानती थीं। उन्हें ट्रेनर बनाया गया। वह अब अपने सिलाई बिजनेस से हर महीने 3,000 रुपये कमा रही हैं और 20 अन्य महिलाओं को सिलाई सिखाकर 2,000 रुपये की कमाई अलग से कर लेती हैं। सिलाई सीख रही महिलाओं से उम्मीद की जा रही है कि वे अपना खुद का सिलाई का व्यवसाय शुरू करेंगी।

यादव ने गाँव कनेक्शन को बताया, ” इस योजना में शामिल होने के बाद मैंने अतिरिक्त पैसा कमाया और मुझे दूसरी महिलाओं के साथ जुड़ने का भी मौका मिला। मुझे यहां आना अच्छा लगता है। मेरे दोनों बेटे इसी स्कूल में पढ़ते हैं। मैं लगातार टीचर के संपर्क में रहती हूं और मुझे पता रहता है कि उनकी पढ़ाई कैसी चल रही है। ” फिलहाल वह जो पैसा कमा रही हैं उससे अपने दोनों बेटों, आयुष और पीयूष के जीवन को बेहतर बनाने के लिए खर्च करती है। आयुष कक्षा तीन और पीयूष पांचवीं क्लास में पढ़ता है।

उन्होंने कहा, “मैंने दीप्ति मैडम से कहा था कि मैं सिलाई सिखा सकती हूँ। इस काम के लिए मुझे बस दो घंटे देने होते हैं।”

श्री अरबिंदो सोसाइटी, नई दिल्ली की ओर से दीप्ति दीक्षित को 2018 में शिक्षा के क्षेत्र में सामुदायिक सहयोग की पहल के लिए शिक्षा में शून्य निवेश नवचार पुरस्कार दिया गया। उन्हें पंचायत, जिला, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके काम के लिए भी पहचाना गया है। उन्होंने 2022 में सीएम शिक्षा गौरव अलंकरण पुरस्कार जीता है। वह अपने अनुकरणीय कार्य के लिए एक ऑनलाइन शिक्षक प्रशिक्षण मंच चॉकलिट ऐप के तहत देश भर में चुने गए दस शिक्षकों में से एक थीं।

दीक्षित की कार्यप्रणाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के साथ अच्छी तरह से फिट बैठती है, जो किताबों से मिलने वाली शिक्षा के अलावा व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति की रचनात्मक क्षमता के विकास पर जोर देती है। बस्ता विहिन कार्यक्रम, जिसे दीक्षित अपने स्कूल में लागू कर रही हैं, राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक हिस्सा है।

दीक्षित ने अपनी योजनाओं और आकांक्षाओं में समुदाय को शामिल किया और इससे उन्हें आगे बढ़ने में काफी मदद मिली है।

उन्होंने कहा, “मेरी महत्वाकांक्षा अपने इस सफर में ज्यादा ये ज्यादा लोगों को शामिल करने की है। मैं चाहती हूं कि मेरे स्कूल में एक प्राइवेट स्कूल की तरह सभी सुविधाएं हों। बहुत सारी सह-पाठयक्रम गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने के लिए सरकार के पास पर्याप्त धन नहीं है, लेकिन समुदाय इसमें मदद कर सकता है।”

प्राइमरी टीचर ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा, अक्सर, बच्चों से बात करने और उन्हें कहानियां सुनाने के लिए किसी बड़े-बुजुर्ग को आमंत्रित किया जाता है। यह कोई भी हो सकता है। लेकिन आखिर में मकसद एक ही है- बच्चों को अनुभवों से रू-ब-रू कराना और बातचीत में शामिल करना।

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