जब हम प्राइमरी क्लास में पढ़ रहे थे तो नवोदय विद्यालय में जाने की इच्छा हुई लेकिन गाँव में अच्छे स्कूल ना होने के कारण बहुत अच्छी तैयारी नहीं कर पाई थी। जब हमने क्लास 5 पास किया उस वक्त हमारी उम्र 10 वर्ष थी और बचपन में बहुत बीमार रहा करती थी। इसलिए मैं बहुत कमजोर थी 10 वर्ष की उम्र में हमारा वजन मात्र 20 किलोग्राम था। बीमारी और कमजोरी के कारण भी अक्सर पढ़ाई से वंचित रह जाती थी।
कक्षा पांच पास करने के बाद हमें पता चला कि हमारे गाँव से करीब 2 किलोमीटर दूर एक टीचर श्रीकृष्ण दीक्षित हैं जो नवोदय विद्यालय के बच्चों को तैयार करते हैं ताकि वो प्रवेश ले सके। हमने अपने पापा को टीचर्स के पास भेजा उन्होंने कहा कि अपनी बच्ची को यहां लेकर आओ एक दिन वो हमारे यहां पढ़ें और उसके 3 दिन बाद हम टेस्ट लेंगे अगर 70% नंबर आए तब हम उसे नवोदय विद्यालय के लिए तैयार करेंगे और उस वक्त नवोदय के टेस्ट के लिए मात्र वक्त 37 दिन शेष बचे थे।
हम गुरु जी के वहां पहुंचे और देखा है की एक छप्पर के नीचे गुरुजी अपनी क्लास चला रहे हैं। उन्होंने मुझे करीब 4 घंटे ट्यूशन दिया और मोटिवेशन क्लास ली और उनके बताए गए टिप्स के अनुसार हमने 3 दिन रात दिन जाकर तैयारी की और 3 दिन बाद जब हमारा टेस्ट हुआ तो हमारे नंबर 70% ही आए।
पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया
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गुरु जी की क्विज टेक्निक हमें बहुत अच्छी लगती थी वो बच्चों की दो टीमें बनाकर जिसमें 10-10 बच्चे होते थे और प्रश्नोत्तरी करवाते थे जिसकी 1 घंटे क क्लास चलती थी जिससे बच्चों में प्रतिस्पर्धा बढ़ती थी प्रतिदिन हम बच्चे नए-नए और कठिन से कठिन प्रश्न ढूंढ कर लाते थे और एक दूसरे टीम से पूछते थे।
यह हम सबके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ। क्विज के समय जो रोमांच रहता था वो मुझे आज भी याद है और हम सब बच्चे खेल-खेल में ढेर सारे प्रश्न याद कर लेते थे।
प्रतिवर्ष नवोदय विद्यालय से एक छात्र को एनआईटी दिल्ली भेजा जाता है जिसमें हमारा सिलेक्शन हुआ गुरुजी नवोदय के टेस्ट के एक दिन पहले हम सभी छात्रों का टेस्ट लिया, जिसमें हमारे नंबर 93% आए यह सब कुछ अनोखे छप्पर वाले गुरु जी के ही प्रयासों का ही असर था हमारी गुरुजी कभी किसी भी सब्जेक्ट में कोई एक सवाल बता कर चार सवाल घर से लगा कर आना ऐसा नहीं करते थे।
वह हमेशा हर एक सवाल को बताते थे 4 घंटे की उनकी क्लास कब बीत गई इस चीज का एहसास हम सभी छात्रों को कभी नहीं हुआ पढ़ाते वक्त ना तो वह डांटते और ना ही किसी बच्चे को कभी भी मारा। आज हम नवोदय विद्यालय से कक्षा 11 की छात्रा हैं लेकिन गुरु जी के साथ उनकी क्लास में बिताए दिनों को आज भी याद करके मन खुश हो जाता है।
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