लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। सर्दी की अलसाई दोपहर में जब हर कोई धूप की ताक में अपने घर की छत और दरवाजों के सामने बैठा था, उसी समय एक छोटे से घर से सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि, सां की गूंज सुनाई दे रही रही थी, यही नहीं धूप में बैठा हर कोई इस अलंकार की धुन में खो रहा था, ये घर है 62 वर्षीय संगीत गुरु कामिनी मिश्रा का।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के विराम खंड में एक दो कमरों के मकान में रहती हैं, संगीत गुरु कामिनी मिश्रा, हर दिन कई छोटे-बड़े बच्चे और कुछ महिलाएं इनसे संगीत सीखने आती हैं। यही नहीं सात समंदर दूर अमेरिका में इनकी एक शिष्या रहती हैं जो हर रात इनसे ऑनलाइन संगीत सीखती हैं।
लेकिन आप ये भी कह सकते हैं 62 साल की कामिनी मिश्रा की कहानी इतनी अनोखी क्यों है, दूसरे भी तो कई ऐसे ही संगीत गुरु होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने उस उम्र में आकर संगीत सीखा, जिस उम्र में अमूमन लोग रिटायर हो जाते हैं। कामिनी मिश्रा ने 51 साल की उम्र में कॉलेज में एडमिशन लिया और 53 साल की उम्र में संगीत में मास्टर्स की डिग्री हासिल की।
कामिनी मिश्रा से उनकी इस संगीत यात्रा के बारे पूछने पर अपने घर में दो छोटी बच्चियों को अलंकार का रियाज कराते हुए, कामिनी मिश्रा अतीत में चली जाती हैं और कहती हैं, “मेरा बचपन भी दूसरी लड़कियों की तरह ही बीता था, मैं बिल्कुल अल्हड़ थी, मेरी माँ अक्सर कहा करती थी कि मेरी दीदी तो कहीं भी गुजारा कर लेंगी, लेकिन मेरा क्या होगा।”
बचपन को याद करते हुए वो बताती हैं, “क्योंकि हम नौकरों का काम छोड़ कर उनके साथ खेलते थे, लेकिन कब से क्या हो जाए किसे पता होता है। बारहवीं की परीक्षा दी थी तभी मेरी मां गुजर गई, हम सात भाई-बहन थे। उसके बाद मेरे बड़े भाई-बहन की शादी हो गई। उसके बाद मुझसे चार छोटे भाई-बहन थे, जिनकी पूरी जिम्मेदारी मुझ पर आ गई, 17-18 साल की उम्र में बड़े हो गए।”
कामिनी की इस संगीत यात्रा में उनके ननिहाल पक्ष का काफी योगदान रहा, जबकि उनके पिता को लड़कियों का गाना पसंद नहीं था। “क्योंकि मेरे ननिहाल पक्ष में लोग संगीत को जानते समझते थे, वहीं से हम पर भी इसका असर पड़ा, लेकिन मेरे घर में गीत-संगीत को अच्छा नहीं माना जाता था, मेरे पिता जी को यही लगता था कि शादी-ब्याह में ही लड़कियों को गाना चाहिए, “कामिनी ने आगे बताया।
कामिनी मिश्रा सातवीं कक्षा से ही स्टेज पर गाने लगी थी, 12वीं तक एक विषय की तरह संगीत की पढ़ाई भी की। लेकिन माँ के जाने के बाद छोटे भाई-बहनों को देखते हुए सब पीछे छूटता गया। उसके बाद ग्रेजुएशन करने के बाद 1985 में शादी हो गई।
शादी के बाद जिंदगी में आए बदलाव पर कामिनी मिश्रा बताती हैं, “शादी भी ऐसे परिवार में हुई जिनका गीत-संगीत से दूर-दूर तक वास्ता नहीं था, संयुक्त परिवार था घर का काम करते हुए जिंदगी बीत गई, अपने कोई बच्चे नहीं हुए, लेकिन उसमें एडजस्ट हो गए।”
लेकिन कामिनी को साल 2003 में पता चला कि उनके पति को किडनी की बीमारी है। आंखों में आंसू लिए भर्राई आवाज में कामिनी उस दौर को याद करते हुए कहती हैं, “साल 2007 में मेरे पति भी मुझे छोड़कर चले गए, तब मेरी उम्र 48 रही होगी। तब मेरे बाबू जी ससुराल आए और कहा कि अब मैं अपनी बेटी को वापस ले आए।”
अपने मायके लौटने के बाद उनकी जिंदगी दूसरी पारी शुरू हुई जब उनकी दीदी उन्हें गुरु माँ सरोज पांडेय के पास ले गईं, उस दौर को याद करते हुए वो कहती हैं, “तब भी मुझे लगता था कि अब जिंदगी में कुछ बचा ही नहीं, तब गुरु जी ने कहा कि तुम तो बहुत अच्छा गाती हो, मैंने उनसे कहा कि वो तो बहुत साल पहले की बात है।”
“उन्होंने कहा कि कोई भूलता नहीं है, तुम्हें फिर गाना चाहिए, उन्होंने मेरा एडमिशन कराया, वहीं मैं सीखती रही, वहां से प्रभाकर किया। उम्र 50 साल के करीब हो रही थी, एक बार ये भी सोचा कि नौकरी करना शुरू कर दूं, “उन्होंने आगे बताया।
कहते हैं ना अगर आप जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं तो सहारा भी मिल ही जाता है, ऐसे में उनके जीवन सहारा बन कर शिखा आईं। वो बताती हैं, “मेरे साथ एक लड़की थी शिखा जो मेरे साथ प्रभाकर कर रही थी, उसने मुझसे कहा कि दीदी चलिए लखनऊ से भातखंडे (भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय) में एडमिशन कराते हैं। बिना तैयारी के एडमिशन नहीं होता है, शिखा ने मेरी तैयारी करवाई, एडमिशन हो गया, लेकिन एक रोड एक्सीडेंट में शिखा दुनिया छोड़कर चली गई, एक बार फिर मुझे लगा कि मैं अकेले हो गई हूं। लेकिन मेरी गुरू मुझसे हमेशा कहती रहती कि तुम्हें आगे जाना है।”
इसी दौरान कामिनी का अपनी छोटी बहन यामिनी पांडेय के साथ मुंबई एक संगीत के रियलिटी में शो जाना हुआ। इसके लिए उन्होंने अपनी परीक्षा भी छोड़ दी। वो बताती हैं, “एग्जाम छोड़कर मैं और मेरी छोटी बहन मुंबई गए, लेकिन आगे नहीं बढ़ पाए और वापस लखनऊ लौट आए, उस दौरान बहुत दुख हुआ कि हममें कहां कमी रह गई थी। परीक्षा भी छोड़ दी थी, लेकिन वहां भी बहुत सीखा।”
लेकिन कामिनी ने दूसरे साल फिर भातखंडे में एडमिशन लिया और वीसी से बात करके हॉस्टल लिया, वहां बैठकर लिखती रहती, क्योंकि कलम पकड़े बहुत साल हो गए थे। इस तरह एक साल निकल गया, इसी तरह दोनों साल पास हो गए।
51 साल में एडमिशन लिया, साल 2013 में मास्टर किया तब मेरी उम्र 53 साल थी, उस समय उनके साथ पढ़ने वाले लोग 18-20 साल के थे। वो कहती हैं, “उनके साथ कदम मिलाकर चलना बहुत मुश्किल था, लेकिन धीरे-धीरे सब घुलमिल गए।” जीवन के 50 साल मैंने ऐसे ही बिता दिए थे, जो भी कुछ मिला वो पिछले 10-12 सालों में मिला, अब लोग मुझे मेरे नाम से जानते हैं। अब मुझे खुशी मिलती है। इसलिए मैंने बच्चों को सिखाना शुरू किया, “उन्होंने आगे कहा।
इस दौरान उनके साथ उनकी छोटी बहन यामिनी पांडेय का पूरा साथ रहा। वो कहती हैं, “अगर वो न होती तो मैं यहां तक न पहुंच पाती। भातखंडे से पास होने के बाद हमने रेडियो में ऑडिशन दिया, वहां सेलेक्शन हो गया। इसके बाद कई महोत्सव में भी गाने का मौका मिलता रहा, लेकिन इस दौरान मैंने सीखना नहीं छोड़ा।”
शिष्या के बाद शुरू हुई गुरु की पारी
डिग्री हासिल करने के बाद उनके संगीत गुरु की पारी शुरू हुई। वो कहती हैं, “पढ़ने के बाद जब पढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ, क्योंकि मुझे नौकरी नहीं करनी थी, तब मेरी गुरू माँ ने मुझसे कहा कि तुम अब पढ़ाना शुरू करो और अगर किसी को बिना पैसे के भी पढ़ाना हो तो वहीं से शुरुआत करो।”
बस वहीं से उनकी शुरुआत हुई, बगल में एक बच्चा था उसी को सिखाने की शुरुआत की, इसके लिए वो खुद भी रात में पढ़ती थी कि मुझे उन्हें क्या सिखाना है, बस उन्हें सिखाते-सिखाते 8-9 साल बीत गए।
उनसे सीखने बहुत सी सी ऐसी महिलाएं भी आती हैं जिनके बेटे बहु बाहर चले गए हैं, लेकिन वो सीखना चाहती हैं। क्योंकि संगीत आध्यात्म का ही रूप है तो उन्हें भी अच्छा लगता है। महिलाएं ज्यादातर भजन, गजल और लोकगीत ही सीखती हैं।
इसके साथ ही बच्चों का फार्म भी भरवाती हैं, उनके एंट्रेंस की तैयारी करवाती हैं। वो कहती हैं, “पिछले 8-9 साल में 30 बच्चों को डिग्री तो दिलवाई ही होगी। अभी इस समय 6 छोटी लड़कियां और 7 महिलाएं सीखने आती हैं।”
पांचवी में पढ़ने वाली मानस्वी पिछले एक साल से कामिनी मिश्रा से संगीत सीख रही हैं, मानस्वी बताती हैं, “मैम से सीखना मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैम के बारे में मेरी नानी ने बताया था कि पड़ोस में एक आंटी रहती हैं, वो तुम्हें सीखा सकती हैं, एक बार जाकर देखो कि कैसा लगता है। मुझे बहुत अच्छा लगा ये बहुत फ्रेंडली हैं, वो अच्छे सिखाती हैं।
ऐसे ही बहुत सारे बच्चे उनसे हर दिन सीखने आते हैं, आखिर में कामिनी बस इतना कहती हैं, “अगर ये संगीत न होता तो हम भी टूट गए होते। आज इसी के बदौलत हम यहां तक पहुंचे हैं।”