तितली बोली हट बदमाश, हट बदमाश हट बदमाश
मेरा घर है पास घर है पास, तिलती उड़ी उड़ ना सकी…..
जब हम के कालापीपल प्रखंड के भानयाखेड़ी गाँव में स्थित प्राथमिक विद्यालय में पहुँचे तो खूबसूरत सी आवाज़ में ये गीत कानों को सुकून दे रहे थे। जैसे और नज़दीक पहुँचे तो देखा कि विद्यालय के शिक्षक चंदर सिंह परमार कक्षा में बच्चों का गोल घेरा बनाकर गीत के धुन के साथ घूम रहे हैं।
सरकारी विद्यालय की कक्षा में इस तरह के दृश्य शायद कम ही देखने को मिलते हैं। चंदर सिंह परमार बताते हैं, “गीत गाकर पढ़ाना तो मेरा रोज़ का काम है। मैं देखता हूँ कि बच्चे कक्षा में लगातार बैठकर उबने या सोने लगते हैं तब मैं गीत के माध्यम से पढ़ाना शुरू करता हूँ और फिर पूरा क्लास झूमने लगता है”
चंदर सिंह परमार शायद इसलिए बच्चों के सबसे चहेते शिक्षक हैं क्योंकि उनकी तमाम विशेषताओं में सबसे बड़ी विशेषता है उनका बेहद संवेदनशील होना। कक्षा 3 के छात्र सुमित मीना मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं, मगर उनके साथ भेदभाव ना करके उनमें सुधार लाने का पूरा श्रेय भी चंदर सिंह परमार को ही जाता है।
वो बताते हैं, “सुमित की हालत ऐसी थी कि किसी भी सरकारी या प्राइवेट स्कूल में उनका नामांकन नहीं लिया जा रहा था, सिर्फ इसलिए कि वो बाकी बच्चों से अलग है। ये कहा जाता था कि उसके साथ रहकर बाकी बच्चे भी वैसे हो जाएँगे।
चंदर सिंह ने ना सिर्फ सुमित का दाखिला अपने विद्यालय में कराया, बल्कि इस बात को भी सुनिश्चित किया कि कोई भी बच्चा उसे परेशान ना करे। आज सुमित सभी टीचर्स का फेवरेट स्टूडेंट है।
चंदर बताते हैं, “सुबह उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद सबसे पहले मैं पाठ योजना को देखता हूँ कि आज मुझे क्या पढ़ाना है और ऐसा क्या किया जाए कि बच्चों को कुछ अलग मिले?”
चंदर ने गीतों के ज़रिये बच्चों के बीच समा ही कुछ ऐसा बांधा है कि बच्चे उनके स्कूल पहुँचने से पहले ही आकर उनका इंतज़ार करते हैं। वो आगे बताते हैं, “बच्चों को स्कूल आने में मज़ा आता है और इसलिए वे तत्तपर रहते हैं। हमें आज तक किसी बच्चे को घर से बुलाकर नहीं लाना पड़ा। प्रार्थनासभा के बाद मिशन अंकुर के तहत गतिविधि आधारित शिक्षा देने का काम शुरू होता है।”
चंदर के गीतों की चर्चा दूर के गाँवों तक है। आलम यह है कि इस सत्र में 15 नए बच्चों का नामांकन हुआ है। चंदर बच्चों से खिलौने बनवाने के साथ-साथ छोटी-छोटी मिट्टी की गोलियाँ भी बनवाते हैं ताकि वे मानसिक रूप से परिपक्व बनें।
बच्चों से पढ़ाई करवाने का चंदर का अपना अनोखा अंदाज़ है। वो बताते हैं कि मैं बच्चों को कहता हूँ, “बेटा आपको पढ़ना नहीं है। मैं आपको पढ़ने के लिए नहीं बुला रहा हूँ। केवल गतिविधि खेलने बुला रहा हूं।” इस हिसाब से सभी तैयार हो जाते हैं।
चंदर कहते हैं, “मिशन अंकुर के आने के बाद से बच्चे गतिविधि के साथ जुड़ गए हैं। बच्चों के पाठ्यक्रम इसमें पहले से निर्धारित हैं। पहले एक ही बार में बच्चों को वर्ण सिखाया जाता था और अब कई महीनों में हम बच्चों को वर्ण सिखाते हैं, इससे उनकी पकड़ मज़बूत होती है। बच्चे रचन विद्या से बाहर निकल रहे हैं।”
चंदर यह सुनिश्चित करते हैं कि हर बच्चे को बराबर मौका मिले। इसलिए वो कक्षा में रोटेशन सिस्टम के ज़रिये बच्चों को बिठाते हैं, ताकि आज जो बच्चा आखरी पंक्ति में बैठा है कल वो पहली पंक्ति में बैठेगा।
विद्यालय में बच्चे लगातार आएँ इसके लिए चंदर ने बच्चों के बीच यह कहकर चॉकलेट बांटना शुरू किया कि जो बच्चा रोज़ विद्यालय आएगा उसे चॉकलेट मिलेगा और इस तरह से बच्चे नियमित आने लगे।
देश को आज चंदर जैसे शिक्षकों की बेहद ज़रूरत है ताकि स्कूल आने से पहले बच्चों के अंदर डर और झिझक ना हो। गीत के ज़रिये पढ़ाने की अदभुत शैली चंदर को अन्य शिक्षकों से अलग करती है।