कोरकू जनजाति के बच्चों के लिए क्यों ख़ास है हुनर की पाठशाला

मध्य प्रदेश के खंडवा ज़िले में कोरकू आदिवासी समुदाय मुख्य रूप से प्रवासी मज़दूर हैं। इनके बच्चों के पास पढ़ने के लिए कोई साधन नहीं है। लेकिन एक स्कूल ने ऐसा कर दिखाया है कि अब वहाँ के सैकड़ों बच्चे न सिर्फ स्कूल आने लगे हैं बल्कि दूसरों को सीख़ भी दे रहे हैं।
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हर दिन अपनी दादी के साथ बकरी चराने जाने वाली सात साल की सविता रास्ते में एक जगह पर थोड़ी देर के लिए रुक जाती।

सविता मध्य प्रदेश के खंडवा ज़िले के मेहलू गाँव से हैं और वो हमेशा अपनी दादी को भी रुकने के लिए कहती हैं, क्योंकि कुछ दूर पर बच्चों का एक समूह नाचते-गाते, खेलते और पढ़ाई करते दिखता है ।

उन बच्चों की शिक्षिका ज्योति धुर्वे ने देखा कि बाकी बच्चे क्या कर रहे हैं, इसमें सविता की गहरी दिलचस्पी है। एक दिन वो उसके पास आईं और पूछा कि वह स्कूल क्यों नहीं जाती। सविता ने जवाब दिया, “मैंने छोड़ दिया क्योंकि मुझे डर था कि मास्टर जी मुझे मारेंगे।”

धुर्वे ने सविता से पूछा कि क्या वह दूसरे बच्चों के साथ भी जुड़ना चाहेंगी, बस फिर क्या था, जल्द ही सविता उन बच्चों के समूह में शामिल हो गईँ। “मैं हर दिन आऊँगी। यह बहुत मजेदार लग रहा है और मैं भी पढ़ना चाहती हूँ। ” उसने टीचर से कहा।

उस छोटी लड़की को यह नहीं पता था कि जिन बच्चों को वह इतनी हसरत से देखती है, वे खंडवा ज़िले के खालवा ब्लॉक के 14 गाँवों के लिए हुनर की पाठशाला नाम के सामुदायिक शिक्षण केंद्र के हैं। यह ‘मुश्त समाज सेवा समिति’ नाम के एक गैर-लाभकारी संस्था द्वारा चलाया जाता है जो कोरकू आदिवासी जनजाति के लिए काम करती है।

“सविता कोरकू समुदाय से है। उसके माता-पिता प्रवासी मज़दूर हैं। हालाँकि, उसे मेहलू गाँव के एक सरकारी स्कूल में दाखिला दिया गया था, लेकिन उसने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। ” मुश्त समाज सेवा समिति की निदेशक प्रमिला चौहान ने गाँव कनेक्शन को बताया। इसके बाद सविता को कक्षा दो में हुनर की पाठशाला में ले जाया गया।

चौहान ने को बताया, “हमने 2014 में हुनर की पाठशाला शुरू की थी। तब से हम सविता जैसे 4,000 बच्चों को वापस पढ़ने सीखने में लाने में कामयाब रहे हैं, जिन्होंने स्कूल छोड़ दिया था।”

मुश्त समाज सेवा समिति की स्थापना तौसीफ शाह ने की थी। “हमने कोरकू समुदाय के बेरोज़गार युवाओं को कौशल प्रदान करने और उन्हें रोज़गार ख़ोजने में मदद करने के लिए 2013 में संगठन शुरू किया था। यह योजना के अनुसार नहीं हुआ क्योंकि तब हमारे पास योजना को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त फंड नहीं था। ” शाह ने गाँव कनेक्शन को बताया। शाह और उनके दोस्तों ने कई वर्षों तक कोरकू समुदाय के बीच काम किया और उन्हें एहसास हुआ कि कोरकू आदिवासियों के बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ ख़ास नहीं किया गया है।

शाह ने कहा, “शिक्षा की कमी उनकी सबसे बड़ी बाधा थी, इसलिए हमने कुछ करने का फैसला किया।” इसलिए, अगले वर्ष, 2014 में, उन्होंने समुदाय को सीखने की यात्रा शुरू करने में मदद करने के लिए हुनर पाठशाला की स्थापना की।

पाठशाला में कक्षा एक से पाँच तक के बच्चे हैं जिनकी उम्र छह से 14 वर्ष के बीच है। “हमने उन्हें पहले अपनी भाषा में पढ़ना और लिखना सिखाया। हमने उन्हें सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित किया, जो उन्होंने पहले कभी नहीं किया था। ‘ ‘उन्होंने कहा।

खालवा ब्लॉक के हुनर की पाठशाला में 14 गाँवों के 600 बच्चे हैं। बीस सामुदायिक शिक्षक उन्हें पढ़ाते हैं। शाह ने कहा, “हम इन 600 बच्चों को 12वीं कक्षा पूरी करने तक तैयार करेंगे और उनका सहयोग करेंगे।”

कोरकू आदिवासी समुदाय से आने वाले चौहान ने कहा कि समुदाय में शिक्षा लगभग न के बराबर है। उन्होंने कहा, “क्योंकि उनके माता-पिता अक्सर काम की तलाश में चले जाते हैं, इसलिए बच्चे नियमित शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।” “कुछ बच्चे जो स्कूल जारी रखते हैं वे मिड डे मील या उन्हें दिए जाने वाले यूनिफार्म के लिए ऐसा करते हैं। शिक्षा बिल्कुल भी प्राथमिकता नहीं है, ”उन्होंने आगे कहा।

समिति अपने बच्चों के साथ-साथ समुदाय के वयस्कों को भी पढ़ना-लिखना सिखाने का प्रयास कर रही है। चौहान ने बताया, “हम उनके घरों में जाते हैं, उनसे उनकी भाषा में शिक्षा के महत्व के बारे में बात करते हैं। उनसे विज्ञान और गणित के बारे में भी जानते हैं जिससे उनके कठिन जीवन का बोझ कम हो सकता है।”

चौहान ने कहा, बच्चों को बड़े सपने देखने के लिए मनाना मुश्किल है। “कोरकू बच्चों की कोई महत्वाकांक्षा या सपने नहीं हैं। वे केवल मेहनत मज़दूरी के बारे में जानते हैं जो उनके माता-पिता घर चलाने के लिए करते हैं। इसके अलावा और कुछ नही।” उन्होंने आगे कहा। लेकिन, हुनर की पाशाला में बच्चों को धीरे-धीरे सपने देखने और बड़े सोचने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है और बताया जा रहा है कि अगर वे ठान लें तो उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है।

चौहान ने खुद कई साल बंधुआ मज़दूर के रूप में बिताए हैं, जबकि शाह कभी बाइक मैकेनिक थे। दोनों को गूँज और स्पंदन जैसे सामाजिक संगठनों में काम करने का अवसर मिला, जिसे वे कोरकू आदिवासी समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने के अपने मिशन में ला रहे हैं।

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