खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाने और कचरे से चीजें बनाना सिखाने वाली एक टीचर

श्रीनगर के एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका रूही सुल्ताना का कहना है कि अपने छात्रों को मनोरंजक तरीके से पढ़ाने और बेकार की चीजों से शिल्प बनाना सिखाने के साथ-साथ वह उनके लिए सुखद यादें भी बना रही हैं। आर्ट एंड क्राफ्ट टीचर सुल्ताना को उनके कामों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
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श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर। श्रीनगर के सरकारी मिडिल स्कूल तैलबाल में पढ़ाने वाली रूही सुल्ताना को आज भी अपने बचपन के वो दिन याद हैं जब उन्हें स्कूल में बिल्कुल भी मजा नहीं आता था। 52 साल की सुल्ताना ने अपनी यादें गाँव कनेक्शन के साथ साझा करते हुए कहा,” दरअसल उन दिनों हमें जो कुछ भी सिखाया या पढ़ाया जाता था, उसे आसान या मनोरंजक नहीं बनाया गया था।”

सुल्ताना एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं। बच्चों को पढ़ाते हुए वह हर संभव कोशिश करती है कि उनके सीखने का अनुभव मनोरंजक तो हो ही साथ ही वो उससे कोई सीख भी हासिल करें। वह किंडरगार्टन से लेकर पांचवीं कक्षा तक के छात्रों को कला, शिल्प और कम्युनिकेशन स्किल सिखाती हैं।

स्कूल में आपको खूब चहल-पहल है। दरअसल यह स्कूल दो मंजिला इमारत की उस विरासत का हिस्सा है, जो कभी पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला का घर हुआ करता था। स्कूल को सिर्फ एक कमरा वॉशरूम के साथ किराए पर दिया गया है। स्कूल में पढ़ने वाले 25 छात्र, तीन शिक्षकों और एक सहायक को उसी कमरे को साझा करना होता है।

सुल्ताना के शिक्षा देने के इस नजरिए ने उन्हें कई पुरस्कार भी दिलाए हैं। इनमें से एक 2020 में दिया गया सर्वश्रेष्ठ शिक्षक राष्ट्रीय पुरस्कार और 2019 में मिला ‘नेशनल अवार्ड इन जीरो इन्वेस्टमेंट इन एजुकेशन” है

सुल्ताना के शिक्षा देने के इस नजरिए ने उन्हें कई पुरस्कार भी दिलाए हैं। इनमें से एक 2020 में दिया गया सर्वश्रेष्ठ शिक्षक राष्ट्रीय पुरस्कार और 2019 में मिला ‘नेशनल अवार्ड इन जीरो इन्वेस्टमेंट इन एजुकेशन” है

सुल्ताना अपने छात्रों को व्यस्त रखने के लिए नए तरीके से पढ़ाने की तकनीक में विश्वास रखती है। मध्यम आकार के जिस कमरे में वह फर्श पर बैठकर बच्चों को पढ़ाती हैं। वह उसके छात्रों से भरा हुआ है, दो लकड़ी की खिड़कियां हैं जिनके हल्की रोशनी कमरे में झांकती नजर आती है। दीवारें चार्ट में ढकी हुई हैं और छत से लटका हुआ एक बर्डहाउस कमरे को खूबसूरती से भर दे रहा है। सुल्ताना की मदद से बच्चों के नन्हें हाथों से बनी विंड चाइम्स भी यहां लटकी हुई है। कमरे में हर जगह रंग भरे हैं। सुल्ताना अपना जादू चलाने और उनके लिए कुछ मजेदार बनाने के लिए बच्चों से उनकी फेंकी हुई बोतल के ढक्कन, छोटे डिब्बों और चमकदार कागज के कूड़े को इक्ट्ठा करने के लिए कहती है। बच्चों यहां से वहां भागते हुए अपनी टीचर को यब सामान लाकर दे रहे हैं। इनमें कुछ फलों के छिलके और बीज भी हैं।

पांचवी क्लास में पढ़ने वाले बशारत ने गाँव कनेक्शन को बताया, “एक दिन, रूही मैम ने हमें कागज पर बरसात का दिन बनाने के लिए कहा। बारिश की बूंदों के लिए उन्होंने हमें संतरे के बीज का इस्तेमाल करने के लिए कहा। हम सब हैरान थे कि कैसे उन्होंने बेकार पड़े संतरे के बीजों को सुंदर चीज़ में बदल दिया। अब जब भी मुझे घर में कोई बेकार चीज मिलती है, तो मैं उसे लाकर रूही मैम को गिफ्ट कर देता हूं, क्योंकि वह उनसे अद्भुत चीजें बना सकती हैं।”

सुल्ताना ने कहा, “मैं इन बच्चों के लिए वह शख्स बनना चाहती हूं, जो उनके सीखने की प्रक्रिया को मजेदार बना रहा है। मेरा मानना है कि अगर वे चीजों को खुशी-खुशी करना या बनाना सीख रहे हैं तो उन्हें जीवन भर याद रख सकते हैं। जब हम खुद को खुश करना चाहते हैं तो हमेशा बचपन की पुरानी यादों के झरोखे में झांकने लग जाते हैं। इसलिए मैं अपने छात्रों को बचपन की कुछ ऐसी यादें बनाने में मदद कर रही हूं जो हमेशा उनके साथ रहेंगी।” उन्होंने मुस्कुराते हुए आगे कहा, “मुझे आशा है कि वे अपनी यात्रा में मुझे और मेरे प्रयासों को याद रखेंगे।”

सुल्ताना अपना जादू चलाने और उनके लिए कुछ मजेदार बनाने के लिए बच्चों से उनकी फेंकी हुई बोतल के ढक्कन, छोटे डिब्बों और चमकदार कागज के कूड़े को इकट्ठा करने के लिए कहती है।

सुल्ताना अपना जादू चलाने और उनके लिए कुछ मजेदार बनाने के लिए बच्चों से उनकी फेंकी हुई बोतल के ढक्कन, छोटे डिब्बों और चमकदार कागज के कूड़े को इकट्ठा करने के लिए कहती है।

दूसरी कक्षा के छात्र बासित ने गाँव कनेक्शन को बताया, “एक दिन रूही मैम ने हमें एक दूसरे को एक फलों के नाम से बुलाने के लिए कहा। उस दिन मेरा नाम टमाटर रखा गया था।” बासित को पहले फलों के नाम याद रखने में काफी मुश्किल होती थी। लेकिन अब और नहीं। वह आगे कहता है, “बाद में इसी तरह से उन्होंने हमें रंगों के नाम और सप्ताह के दिनों को याद करना सिखाया। रूही मैम सीखने को इतना मजेदार बना देती हैं कि हम उन्हें कभी भूलते नहीं है।”

सुल्ताना का पढ़ाने का यह तरीका माता-पिता पर किसी तरह का कोई बोझ नहीं डालता है। उनके बहुत से बच्चों की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है, उन्होंने कहा, “मैं बच्चों को उन चीजों के जरिए सिखाती हूं जो एक तरह से कचरा है। स्कूल के कई बच्चे ऐसे हैं जिनके लिए कुछ भी खरीद पाना मुश्किल होता है। यह पूरी तरह से जीरो इन्वेस्टमेंट एजुकेशन है जहां मेरा ध्यान संज्ञानात्मक विकास पर है।”

कुछ बच्चों ने डिस्पोजेबल प्लेटों से फेस मास्क बनाएं हैं तो कुछ ने मकई की भूसी को वॉल हैंगिंग में बदल दिया। पास ही बैठे कुछ बच्चे पूरी तन्मयता से अपनी जीभ बाहर निकालकर आम की गुठलियों में रंग भरने में लगे हैं।

सुल्ताना ने कहा, ये गतिविधियां मोटर स्किल के लिए अच्छी हैं। वह बताती हैं, “ मुझे याद है कि एक दिन जब मैंने बच्चों को मोतियों से माला बनाने के लिए सुई और धागे दिए तो उनमें से एक को काम करने में परेशानी हो रही थी। मैंने महसूस किया कि उस बच्चे की नजर कमजोर है और मैंने उसके माता-पिता को इसके बारे में सचेत कर दिया।”

सुल्ताना के शिक्षा देने के इस नजरिए ने उन्हें कई पुरस्कार भी दिलाए हैं। इनमें से एक 2020 में दिया गया सर्वश्रेष्ठ शिक्षक राष्ट्रीय पुरस्कार और 2019 में मिला ‘नेशनल अवार्ड इन जीरो इन्वेस्टमेंट इन एजुकेशन” है। इसके अलावा उन्हें 2021 में शिक्षा के क्षेत्र में पथ-प्रदर्शक कार्य के लिए मिर्ची पावर्ड महिला पुरस्कार भी दिया गया था। 2022 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला अचीवर्स अवार्ड से भी उन्हें नवाजा जा चुका है।

सुल्ताना ने कहा कि सिखाने के उनके तरीके और दृष्टिकोण को उनके छात्रों के माता-पिता और शिक्षा क्षेत्र में जुड़े लोगों ने काफी सराहा है। वह कहती है, “प्रतिक्रिया अच्छी है, और कई अन्य स्कूल अपने छात्रों के साथ ऐसा ही कर रहे हैं। इस पद्धति में किसी तरह के निवेश की जरूरत नहीं है, लेकिन नतीजे बहुत सारे और सकारात्मक हैं।”

शाहीन के दोनों बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते हैं। एक किंडरगार्टन में और दूसरी सेकेंड क्लास में। उन्होंने सुल्ताना की तारीफ करते हुए गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे बच्चे स्कूल का मजा ले रहे हैं और अच्छी पढ़ाई कर रहे हैं। उनके लिए स्कूल यूनिफॉर्म और किताबों से लेकर मिड-डे मील तक सब कुछ फ्री है। हमें उनकी पढ़ाई पर एक पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ता है। मैं इन शिक्षिकाओं की हमेशा आभारी रहूंगी

गाँव कनेक्शन ने गुलाम हुसैन लोन, जोनल शिक्षा अधिकारी, गुलाब बाग, श्रीनगर से संपर्क करने की कई बार कोशिश की, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

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