बच्चों को कार्टून शो और कविताओं के जरिए पढ़ाने वाली एक टीचर

जागृति मिश्रा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका हैं। वह पहली बार स्कूल आने वाले बच्चों को पढ़ाती हैं। बच्चे अपनी कक्षा में सहज हो और खुश रहें, इसके लिए वह सभी को एक साथ बैठने और खुलकर बातचीत करने में मदद करती हैं।
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गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)। प्रियांश कुमार अगर एक बार बोलना शुरू कर दें तो उसे चुप कराना मुश्किल हो जाता है। उसे हर उस व्यक्ति से बात करना पसंद है जो उसके साथ खड़ा हो। उनके दोस्त अभिषेक वर्मा ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, “मैं जानता हूँ यह सबसे बातूनी लड़का है।” अभिषेक और प्रियांश उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में प्राथमिक विद्यालय नगर क्षेत्र के छात्र हैं। और बेहद प्यार भरी नज़रों से देख रही उनकी टीचर का नाम है जागृति मिश्रा।

42 वर्षीय शिक्षिका ने गाँव कनेक्शन को बताया, “आपको यकीन नहीं होगा कि यह वही लड़का है जिसने कभी एक शब्द भी बोलने से इनकार कर दिया था।”

उन्होंने कहा, “लेकिन मुझे पता था कि उससे किस तरह से बुलवाया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं अपने छात्रों को पहले कविता याद करवाती हूँ और फिर उन्हें कक्षा में जोर-जोर से सुनाने के लिए कहती हूँ। उन्हें यह पसंद है और यह अभ्यास उन्हें सार्वजनिक रूप से बोलने के डर को दूर करने में भी मदद करता है।”

जागृति मिश्रा की क्लास में कुल 46 छात्र-छात्राएँ हैं। उन्होंने कहा कि वह इन तरकीबों का इस्तेमाल अपने छात्रों को कक्षाओं में खुश रहने और अच्छी तरह से सीखने में मदद करने के लिए करती हैं। जागृति मिश्रा साल 2008 से स्कूल में शिक्षा मित्र के रूप में काम कर रही हैं। शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को अपने छात्रों के साथ बेहतर ढंग से जुड़ने में मदद करने के लिए स्कूलों को शिक्षा मित्र प्रदान किए हैं। उन्होंने कहा, ” शिक्षकों से पाठ योजनाओं के जरिए छात्रों को सक्रिय बनाने के लिए कहा जाता हैं। तब मुझे एहसास हुआ है कि यह बच्चों को उनके दायरे से बाहर निकालने और सीखने की प्रक्रिया का आनंद लेने का सबसे अच्छा तरीका है।”

मिश्रा ने जिन पाठ योजनाओं के बारे में बात की, वे केंद्र सरकार की ‘निपुण’ पहल के हिस्से के रूप में तैयार की गई हैं, जो कक्षा एक से तीन तक के छात्रों में मूलभूत साक्षरता और नंबरों को समझने के कौशल को मजबूत करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी योजना है।

पाठ योजनाएँ बताती हैं कि स्कूल में जिन बच्चों ने नया दाखिला लिया है, उन्हें कैसे सहज बनाया जाए। कविता सुनाना, कहानी सुनाना, सवाल-जवाब और समूह चर्चा जैसी इंटरैक्टिव गतिविधियों के जरिए इन्हें कैसे किया जाए, इसके बारे में मार्गदर्शिकाएँ और बहुत से खास टिप्स दिए जाते हैं।

निपुण जिसका मतलब है- नेशनल इनिशिएटिव फॉर प्रोफिशिएंसी इन रीडिंग विद अंडरस्टैंडिंग एंड न्युमरेसी। यह केंद्र सरकार की ‘ बेहतर समझ और संख्यात्मक ज्ञान के साथ पढ़ाई में प्रवीणता के लिये राष्ट्रीय पहल’ योजना का संक्षिप्त रूप है। निपुण पहल के उद्देश्यों के अनुसार, स्कूली शिक्षा प्रणाली के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता 2026-27 तक प्राथमिक स्तर पर अक्षरों को पहचानने और संख्याओं को समझने के साथ-साथ बच्चों को पढ़ने के काबिल बनाना है।

‘टीवी पर कार्टून छात्रों को घर जैसा महसूस कराने में मदद करते हैं’

जागृति मिश्रा के सात साल के छात्र जिगर कुमार से जब स्कूल के बारे में बात की जाती है तो वह उत्साह से भर जाता है। वह बड़े ही नाटकीय अंदाज में बताता है कि जब स्कूल की छुट्टी होती है तो उसे अपनी क्लास की बहुत याद आती है।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं स्कूल में टीवी पर कार्टून देखता हूँ। मेरे दोस्त भी हैं। और जागृति मैडम सबसे अच्छी कहानियाँ सुनाती हैं।”

मिश्रा ने कहा, सरकारी प्राइमरी स्कूल में तकनीक ने छात्रों को स्कूल में बनाए रखने में काफी मदद की है।

उन्होंने बताया, “एक चैरिटेबल ग्रुप ने हमें एक टेलीविज़न दान में दिया है। मेरी कक्षा में वे छात्र हैं जो पहली बार स्कूल आए हैं और टेलीविज़न पर कार्टून उन्हें सहज बनाने और उन्हें क्लास में मन लगाने में काफी मदद करते हैं।”

एक अन्य छात्रा अंकिता गौड़ ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मुझे टीवी पर छोटा भीम देखना बहुत पसंद है। मुझे इसे घर पर छोटी फोन स्क्रीन पर देखना पड़ता है, लेकिन यहाँ स्कूल में, अपने दोस्तों के साथ टीवी की बड़ी स्क्रीन पर इसे देखना बहुत मज़ेदार है।” इतना ही नहीं, वह अपनी कविताओं को भी बड़े मज़ेदार ढंग से सुनाती है। अपनी पसंदीदा कविता को ज़ोर से सुनाने के लिए अपनी सीट से उठती है। उसकी कविता यह इस बारे में है कि कैसे ‘अच्छे बच्चे’ जल्दी उठते हैं, अपने दांत ब्रश करते हैं, नहाते हैं और फिर पढ़ाई करने के लिए बैठ जाते हैं।

“हुआ सवेरा चिड़िया बोली

बच्चों ने तब आँखें खोलीं

अच्छे बच्चे मंजन करते

मंजन करके कुल्ला करते

कुल्ला करके मुँह को धोते

मुँह को धोकर रोज़ नहाते

रोज़ नहा कर पढ़ने जाते।”

जैसे ही कविता ख़त्म हुई, जिगर कुमार एकाएक बोल पड़ा, “मैं अपने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, जिला मजिस्ट्रेट और कई देशों और राज्यों की राजधानियों के नाम जानता हूँ।” उसने बड़े ही उत्साह के साथ बताया, “मैं अक्सर अपने अन्य दोस्तों और रिश्तेदारों से ये सवाल पूछता हूँ। लेकिन उन्हें जवाब नहीं पता होता है।”

अनौपचारिक बातचीत दूरियों को पाटने में मदद करती है

छात्रों को डांटने-डपटने की बजाय, मिश्रा अपने छात्रों से प्यार से बात करने में विश्वास करती हैं। वह मुस्कुराई, “हम इस बारे में बात करते हैं कि हमारे जीवन में क्या चल रहा है, हमारे परिवार, हमने उस दिन क्या किया, आदि।” उनका मानना है कि अगर कक्षा में किसी को सिखाना और पढ़ाना है तो उन्हें घर जैसा महसूस कराना ज़रूरी है।

मिश्रा ने कहा, “हम फर्श पर एक घेरे में बैठते हैं और बातचीत करते हैं। इस तरह हम सभी एक ही स्तर पर हैं। बच्चों को लगता है कि मैं उनका ही एक हिस्सा हूँ, न कि कोई बड़ी शख्सियत जिससे उन्हें डरना चाहिए।”

शिक्षिका ने कहा, बातचीत, पाठ और कहानी सुनाने के सत्र से बच्चों का आत्मविश्वास और बातचीत करने का प्रवाह बढ़ता है, जो समय बीतने के साथ-साथ अधिक से अधिक मुखर होते जाते हैं।

प्रियांश को अब बात करना पसंद हैं। उसकी चाची अपने भतीजे की प्रगति से खुश हैं।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “प्रियांश अपने टीचर के कारण अच्छा कर रहा है। वह धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलता है और मेरा मानना है कि यह काफी अच्छा है।” वह आगे कहती हैं, “हममें से जो लोग अपने बच्चों के लिए महंगे निजी स्कूल का खर्च नहीं उठा सकते, उनके लिए अंग्रेजी सामाजिक-आर्थिक बाधाओं से बाहर निकलने का रास्ता हो सकती है। अंग्रेजी हमारे बच्चों के लिए एक पूरी नई दुनिया खोल सकती है। और, मैं प्रियांश के लिए बहुत खुश हूँ, जिसे स्कूल जाना बहुत पसंद है।”

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