गाँव के इस सरकारी टीचर का बड़ों को भी क्यों रहता है इंतज़ार?

राजस्थान के फलोदी में मंडला खुर्द गाँव के टीचर हरदेव पालीवाल अपने दम पर बच्चों में पढ़ने की ललक जगा रहे हैं। झोला पुस्तकालय की उनकी तरकीब और पर्यावरण जागरूकता अभियान बेमिसाल है। महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार की तरफ से 2019 में उन्हें सम्मानित भी किया गया है।
TeacherConnection

मंडला खुर्द (फलोदी, राजस्थान)। मंडला खुर्द गाँव में हर सुबह अब स्कूली बच्चों को ही नहीं, गाँव के बड़े बुजुर्गों को भी एक शख़्स का इंतज़ार रहता है।

घर के बाहर टकटकी लगाएं ये इंतज़ार करते हैं हरदेव पालीवाल का, जो यहाँ के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में टीचर हैं। कई साल से वे हर रोज़ स्कूल जाते वक़्त घर से कँधे पर झोला टाँगना नहीं भूलते हैं। ये वही झोला है जिससे गाँव के स्कूली बच्चों और वहाँ के लोगों को कुछ न कुछ ज़रूर मिलता है।

जी हाँ, हरदेव पालीवाल स्कूल जाते समय अपने झोले में किताबें लेकर निकलते हैं और स्कूल के बच्चों के साथ ही गाँव वालों को भी किताबें पढ़ने के लिए देते हैं। उनकी ये चलती फिरती लाइब्रेरी गाँव के लिए बड़े काम की है।

वे गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “मेरे पास महापुरुषों के जीवन से जुड़ी 200 ऐसी छोटी किताबें हैं जो हर किसी के पढ़ने योग्य है, इसे मैं गाँव वालों और स्कूल के विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए देता हूँ” |

हरदेव पालीवाल की सरकारी अध्यापक के रूप में पहली नियुक्ति साल 2012 में अपने ही गाँव मंडला खुर्द के इस विद्यालय में हुई थी। तब यह सिर्फ उच्च प्राथमिक विद्यालय हुआ करता था।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया कि यह स्कूल उनके लिए परिवार की तरह है। खुद उनकी प्राथमिक तक की पढ़ाई इसी स्कूल में हुई है, इसलिए इससे गहरा लगाव है। यही वज़ह है यहाँ की हर छोटी बड़ी समस्या का हल वो खुद निकालने की कोशिश करते हैं। वे कहते हैं,”मैं जब इस विद्यालय में आया था तब यहाँ कुल 92 विद्यार्थी थे, जिनमें 60 छात्राएँ और 32 छात्र थे। आज स्कूल में कुल 425 छात्र छात्रों का एडमिशन है, जिसमें 70 प्रतिशत छात्राएँ हैं ।

अमृता देवी पर्यावरण संस्थान की मदद से स्कूल और उसके आस पास 1 लाख 75 हजार वर्ग फुट जमीन पर करीब एक हज़ार पौधे लगाए जिसमें स्कूल के सहयोगियों के अलावा गाँव के लोगों का पूरा सहयोग मिला।

अमृता देवी पर्यावरण संस्थान की मदद से स्कूल और उसके आस पास 1 लाख 75 हजार वर्ग फुट जमीन पर करीब एक हज़ार पौधे लगाए जिसमें स्कूल के सहयोगियों के अलावा गाँव के लोगों का पूरा सहयोग मिला।

स्कूल में लड़कियों की ज़्यादा सँख्या के सवाल पर वे कहते हैं ” गाँव के नज़दीक दूसरा कोई सरकारी माध्यमिक या उच्च माध्यमिक विद्यालय नहीं होने के कारण प्राथमिक शिक्षा के बाद बच्चियाँ घर बैठ जाती थी। स्कूल नहीं जाने वाली लड़कियों की बढ़ती सँख्या चिंता की बात थी, तो मेरा पहला प्रयास रहा इस विद्यालय को माध्यमिक में करवाना, जो हमारे स्कूल स्टाफ के सामूहिक प्रयास से मार्च 2022 में हुआ।

सामूहिक प्रयास से बदली स्कूल की तस्वीर

वे कहते हैं, “हाल ही में मुख्यमंत्री जनसुनवाई के दौरान हमने एक आदेश से इसे उच्च माध्यमिक भी करवा लिया है। दूसरा प्रयास स्कूल के संसाधन को सुधारना रहा। जिसमें लड़कियों के लिए अलग से शौचालय बनवाना, स्कूल भवन को सुधारना, रंगाई पुताई और पीने के लिए शुद्ध पानी था। इनके पूरा होने से गाँव के लोगों पर बड़ा असर हुआ और अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया।”

सकारात्मक सोच और मेहनत के दम पर स्कूल का अब छोटा मोटा काम खुद यहाँ का स्टाफ ही मिलकर कर देता है।

“स्कूल में कोई दरवाज़ा नहीं था, आवारा जानवर स्कूल के अंदर आकर पेड़ पौधों को नुकसान पहुँचा देते थे, तब मैंने 26 जनवरी 2019 को गणतंत्र दिवस के मौके पर अभिभावकों के सामने ही स्कूल स्टाफ से आग्रह किया, कि क्यों न हम अपने एक माह की सैलरी गेट बनवाने के लिए स्कूल के कोष में जमा करवा दें। स्कूल स्टाफ ने मेरी बात मानी और हमने तीन लाख ग्यारह हजार रुपए जमा कर स्कूल का गेट बनवा दिया है।” हरदेव पालीवाल ने गाँव कनेक्शन से कहा।

हरदेव पालीवाल इको ब्रिक्स को लेकर काम कर रहे हैं। इसके लिए वे अपने स्कूल के विद्यार्थियों को बेकार खाली प्लास्टिक की बोतलें देते हैं और उसमें अपने घर में फैले प्लास्टिक के कचरे को भरकर लाने का कहते हैं।

हरदेव पालीवाल इको ब्रिक्स को लेकर काम कर रहे हैं। इसके लिए वे अपने स्कूल के विद्यार्थियों को बेकार खाली प्लास्टिक की बोतलें देते हैं और उसमें अपने घर में फैले प्लास्टिक के कचरे को भरकर लाने का कहते हैं।

वे कहते हैं कि कोरोनाकाल में अमृता देवी पर्यावरण संस्थान की मदद से स्कूल और उसके आस पास 1 लाख 75 हजार वर्ग फुट जमीन पर करीब एक हज़ार पौधे लगाए जिसमें स्कूल के सहयोगियों के अलावा गाँव के लोगों का पूरा सहयोग मिला।

इन दिनों हरदेव पालीवाल इको ब्रिक्स (पर्यावरण संरक्षण के लिए एक बेहतरीन उपाय है, इसमें प्लास्टिक की बोतलों में प्लास्टिक का कचरा भरकर ईंटों की जगह इस्तेमाल किया जाता है) को लेकर काम कर रहे हैं। इसके लिए वे अपने स्कूल के विद्यार्थियों को बेकार खाली प्लास्टिक की बोतलें देते हैं और उसमें अपने घर में फैले प्लास्टिक के कचरे को भरकर लाने का कहते हैं। जो बच्चा ज़्यादा बोतल लेकर आता है उन्हें वे ईनाम देकर प्रार्थना सभा में सबके सामने सम्मानित करते हैं।

पश्चिम राजस्थान के जिस ज़िले में यह स्कूल पड़ता है वहाँ पीने के पानी का बड़ा संकट है। स्कूल में विद्यार्थी और शिक्षक साल भर शुद्ध पानी पी सके इसके लिए स्कूल में साल 2018 में ग्राम पंचायत की मदद से 5 हज़ार लीटर क्षमता वाला एक टांके का निर्माण करवाया गया है।

स्कूल के एक अन्य शिक्षक दिनेश प्रजापत कहते हैं,”इस टांके में स्कूल की छत से बहकर आने वाला बारिश का पानी पाइप की मदद से सीधे चला जाता है। बीच में एक फिल्टर भी लगाया है ताकि पानी के साथ कचरे या पत्तों को अलग किया जा सके। इस पानी का इस्तेमाल हम पूरे साल पीने के लिए करते हैं।”

Recent Posts



More Posts

popular Posts