भंडारो (गोरखपुर), उत्तर प्रदेश। शाज़िया बानो के हाथों में रंगीन चित्रों और बड़े-बड़े अक्षरों से सजी एक बड़ी सी किताब है। वह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जंगल कौड़िया ब्लॉक के भंडारो गाँव में एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती हैं। 36 साल की शाजिया की क्लास में 11 लड़के और 18 लड़कियां है, जो बड़ी ही दिलचस्पी के साथ कहानी सुनने में व्यस्त है। बच्चों की बड़ी और विस्मयकारी आंखों को देख अंदाजा लगाया जा सकता है वह शाजिया की कहानी में कितना डूबे हुए हैं।
शाज़िया एक चिड़िया की कहानी सुना रही हैं, जो बड़ी चालाकी से एक बिल्ली को मात दे देती है। वह एक बार में एक पेज पलटती है। बीच-बीच में शाज़िया रुक कर बच्चों से पूछती हैं कि कहानी में क्या हो रहा है। और, वे बड़े ही उत्साह के साथ जवाब देते हैं।
उनकी क्लास की दीवारें पोस्टरों से रंगी हुई हैं। ब्लैक बोर्ड पर चाक से लिखा हुआ है- कहानीः- दो चिटियां। यह शायद अगली कहानी है जिसे बच्चों के साथ साझा किया जाएगा।
जुलाई 2021 में समग्र शिक्षा की केंद्र प्रायोजित योजना के तहत लांच की गई निपुण भारत (नेशनल इनिशिएटिव फॉर प्रोफिशिएंसी इन रीडिंग विद अंडरस्टैंडिंग एंड न्यूमेरसी) पहल द्वारा ‘बिग बुक’ की शुरुआत की गई थी। इस पहल का उद्देश्य 2026-27 तक देश के हर बच्चे को फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्युमरेसी (एफएलएन) स्किल से लैस करना है।
दिशानिर्देशों के तहत सरकार ने कक्षा I, II और III पर विशेष ध्यान देते हुए निपुण के लक्ष्य (चित्र देखें) प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मानक के लिए एक मानदंड निर्दिष्ट किया है। अकसर नीरस और उबाऊ दिखने वाली रेगुलर कर्रिकुलम की किताबों के विपरीत जानवरों और पक्षियों की कहानियों से भरी चमचमाती ‘बिग बुक’ बच्चों का ध्यान अपनी ओर खींचने की उम्मीद करती है।
शाजिया की क्लास के 29 छात्रों में से पांच ने निपुण के तहत निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। पाठ्यक्रम 22 सप्ताह लंबा है और इसे अगस्त 2022 में शुरू किया गया था।
बिग बुक के अलावा कविताओं से भरे पोस्टर, बड़े-बड़े अक्षर और एक गणित किट- जिसमें काउंटिंग टाइल्स, आकृतियां, समय देखना सिखाने के लिए एक घड़ी है- भी दिए गए हैं। ये निपुण पहले के अंतर्गत उपलब्ध कराए गए टीचर लर्निंग मटेरियल का हिस्सा हैं और शिक्षकों को इसका इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है।
बानो ने समझाया, ” इस बात का ध्यान रखते हुए कि कोई भी पाठ छूटे नहीं, हर स्कूल अपने हिसाब से आगे बढ़ रहा है। और हर बच्चे को निपुण पहल के तहत पढ़ाते हुए आगे की क्लास में भेजा जाता है।”
शिक्षक ने कहा, “कुछ बच्चे शर्मीले स्वभाव के होते हैं और खुलने में समय लेते हैं। लेकिन थोड़े प्यार और धैर्य के साथ वे सवालों का जवाब देने में सक्षम हो जाते हैं।”
शाज़िया ने बताया कि इस तरह की पहल का मकसद सिर्फ बच्चों को रट कर सीखना नहीं है। इसके बजाय उन्हें व्यवहारिक तौर पर इस काबिल बनाना है कि वे रोजमर्रा के काम खुद से कर सकें। मसलन दुकान पर जाकर खुद से समान खरीदें और पैसों का जोड़ और घटाव कर सकें। दुकानदार को उन्होंने कितने पैसे दिए, कितने का समान उन्होंने खरीदा और कितने पैसे उन्हें वापस मिलेंगे- इस तरह का रोजमर्रा का हिसाब-किताब लगाने में उन्हें सक्षम बनाना ही इस पहल का मकसद है।
अब उनके पास जो इंटरैक्टिव शिक्षण सहायक सामग्री है, वह उन छात्रों को सिखाने में भी मदद करती है जो अभी तक लिख पान में सक्षम नहीं हैं। शाज़िया ने बताया, “मीरा को लिखने में बिल्कुल मजा नहीं आता था। वह अक्सर स्कूल से भी गायब रहती थी। लेकिन छह साल की बच्ची सवालों का मौखिक रूप से जवाब देने में माहिर है। मैं कक्षा में जिन इंटरैक्टिव प्ले मेथड का इस्तेमाल करती हूं, उससे उसे अब क्लास में पहले से कहीं ज्यादा मजा आने लगा है। अब वह हमेशा स्कूल आती है।”
शाज़िया ने कहा, लेकिन कुछ वास्तविक चुनौतियां भी हैं। उनके एक ही क्लासरूम में पहली और दूसरी कक्षा दोनों के छात्र हैं। और कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो उस स्तर से नीचे हैं जिस पर उन्हें होना चाहिए। और अक्सर, उन्हें आगे बढ़ने से पहले फिर से जीरो से शुरू करना पड़ता है। इसका मतलब है कि क्लास में संतुलन बनाए रखने के लिए जब तक वह इन बच्चों को सिखा रही होती हैं , तो बाकी कक्षा को व्यस्त रखना पड़ता है। इसमें काफी मुश्किलें आती हैं।
लेकिन इन संघर्ष और चुनौतियों से शाजिया को कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि उनकी कक्षा में उन्हें मिलने वाला प्यार बेशुमार है।
शाजिया की छह साल की छात्रा अनन्या ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हम शाजिया मैडम से प्यार करते हैं और जब वह छुट्टी पर होती हैं तो हमें अच्छा नहीं लगता है।”
निपुण भारत
सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन (CSF) के सहयोग से उत्तर प्रदेश सरकार निपुण भारत पहल के तहत अपनी प्राथमिक शिक्षा प्रणाली को ऊपर उठाने की कोशिश कर रही है। सीएसएफ एक गैर-लाभकारी संगठन है जो बेहतर स्कूली शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहा है। इसके मुताबिक, भारत में एफएलएन का स्तर काफी कम है।
इस साल 18 जनवरी को जारी एएसईआर 2022 (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) बताती है कि सरकारी या निजी स्कूलों में तीसरी कक्षा के बच्चे जो दूसरी कक्षा में पढ़ सकते हैं, उनका प्रतिशत 27.3 प्रतिशत से घटकर 20.5 प्रतिशत हो गया है, कक्षा V के लिए यह 50.5 प्रतिशत से गिरकर 42.8 प्रतिशत हो गया , 2018 और 2022 के बीच आठवीं कक्षा के लिए यह 73 प्रतिशत से लुढ़ककर 69.6 प्रतिशत पर आ गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, गोरखपुर में कक्षा III-V के 56.9 प्रतिशत बच्चे कक्षा II के स्तर का पाठ नहीं पढ़ सकते थे और 51.1 फीसदी बच्चे घटा के आसान सवाल हल नहीं कर सके।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 एफएलएन स्किल को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है और इसे ‘लर्निंग के लिए तत्काल और आवश्यक शर्त’ बताती है। इसमें कहा गया है कि ‘इस नीति का बाकी हिस्सा हमारे छात्रों के लिए तभी प्रासंगिक होगा जब वह पहले बेसिक लर्निंग की जरूरत (यानी पढ़ना, लिखना और सवालों को हल करना) को हासिल कर लें।
निपुण भारत पहल मिशन प्रेरणा से काफी मिलती-जुलती है, जो प्राथमिक शिक्षा को मजबूत करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2019 में शुरू किया गया एक प्रमुख कार्यक्रम है। मिशन प्रेरणा को समान लक्ष्यों के साथ एक नया इंटरफ़ेस देकर फिर से लॉन्च किया गया है।
जंगल कौड़िया ब्लॉक, जहां शाज़िया पढ़ाती हैं, निपुण भारत के तहत हस्तक्षेपों को लागू करने के लिए चुने गए दो फोकस ब्लॉकों में से एक है।
जंगल कौड़िया प्रखंड के 68 सरकारी स्कूलों में से 43 प्राथमिक हैं, बाकी कंपोजिट हैं। प्रखंड शिक्षा अधिकारी अमितेश कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमें निपुण ब्लॉक तभी कहा जा सकता है जब हमारे सभी 68 स्कूल इस लक्ष्य को हासिल कर लेंगे। ब्लॉक दर ब्लॉक, राज्य के अन्य जिलों के लिए गोरखपुर को एक मॉडल के रूप में पेश करने का विचार है।”
निपुण लक्ष्य पाने के लिए इस ब्लॉक के लिए निर्धारित समय सीमा दिसंबर 2023 है, जबकि पूरे गोरखपुर के लिए यह समय सीमा दिसंबर 2024 है।