बाढ़ के समय चार महीनों के लिए नाव से आते हैं इस स्कूल में बच्चे

मिलिए गोरखपुर के एक प्राथमिक विद्यालय के उस टीचर्स से जिनकी तारीफ बच्चे ही नहीं उनके अभिभावक भी करते हैं; तभी तो यहाँ के बच्चे बाढ़ के समय भी नाव से स्कूल आते हैं।
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प्राथमिक विद्यालय गायघाट वैसे तो उत्तर प्रदेश के दूसरे सरकारी स्कूलों की तरह ही है, लेकिन एक चीज है जो इसे दूसरे स्कूलों से अलग बनाती है। जी हाँ, यहाँ विशेष हैं ममता और आराधना मैम, जो बच्चों के साथ उनके अभिभावकों की भी पसंदीदा टीचर हैं।

प्रदेश के गोरखपुर जिले के जंगल कौड़िया ब्लॉक में है प्राथमिक विद्यालय गायघाट। वैसे तो साल भर यहाँ पर सब सही चलता है, लेकिन बरसात के चार महीनों में बाढ़ के चलते यहाँ अलग ही हालात हो जाते हैं।

इस स्कूल में आसपास के गाँवों के बच्चों के साथ ही नदी के पार के बच्चे भी आते हैं, लेकिन दो साल पहले बच्चों के साथ यहाँ के शिक्षकों को भी लगा कि शायद अब इन बच्चों का स्कूल छूट जाएगा।

प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका ममता राय उस दिन के बारे में गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “स्कूल के एकदम पास से रोहिणी नदी बहती है, कई बच्चे नदी के उस पार से आते हैं, वैसे तो साल भर उस पर पीपे का पुल लगा होता है, जिससे होकर बच्चे स्कूल आते हैं।”

कई बार बाढ़ में स्कूल डूब जाता है, नाव से टीचर और बच्चे जाते हैं।

कई बार बाढ़ में स्कूल डूब जाता है, नाव से टीचर और बच्चे जाते हैं।

वो आगे कहती हैं, “लेकिन बाढ़ के चार महीनों में पीपा का पुल हटा दिया जाता है, तब नाव से बच्चे इस पार आते हैं; बच्चों के अभिभावक बच्चों को नाव से स्कूल भेजने में डरते हैं, तब हम लोग वहाँ जाकर उन्हें समझाते हैं।”

“लेकिन दो साल पहले तो नाव भी हट गई, जिससे बच्चे स्कूल ही नहीं आ पा रहे थे; साल 2022 की बात है कई दिन तक जब नाव नहीं लगी तो एसडीएम के पास फोन कर शिकायत की गई, सोचिए कोई बच्चा कई दिन तक स्कूल ही नहीं जा पाएगा तो अभिभावक अपने बच्चों का एडमिशन दूसरे स्कूल में तो करा ही देंगे, बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होगा वो अलग। ” ममता सिंह ने आगे बताया।

एसडीएम की शिकायत के बाद कहीं इनकी बात सुनी गई और पीपे का पुल लगाने वाले ठेकेदार से बात हुई कि वो चार महीनों के लिए नाव की व्यवस्था करेंगे।

लेकिन इनकी मुसीबतें ऐसे ही नहीं कम हो जाती हैं, कई बार तो स्कूल में भी पानी भर जाता है। तब इन्हें कोई दूसरी जगह तलाशनी होती है, जहाँ पर बच्चों को पढ़ाया जा सके, कभी रसोइया के घर तो कभी कहीं और स्कूल लगाना पड़ता है।

पानी तो निकल जाता है, लेकिन बाढ़ की वजह से स्कूल में मिट्टी का मलबा इकट्ठा हो जाता है।

पानी तो निकल जाता है, लेकिन बाढ़ की वजह से स्कूल में मिट्टी का मलबा इकट्ठा हो जाता है।

ममता राय आगे कहती हैं, “कई बार तो लोग कहते हैं कि अगर इतनी परेशानी हो रही है उतने दिन स्कूल क्यों नहीं बंद कर देते हैं; लेकिन हमारा मानना है कि एक दिन भी बंद करेंगे तो नुकसान तो हमारा और बच्चों का ही होगा।”

इस स्कूल में ममता सिंह के साथ तीन सहायक अध्यापक और एक शिक्षामित्र हैं, ऐसे में ये सभी कई बार अलग-अलग टोला बाँट लेते हैं कि कौन कहाँ पर जाकर बच्चों को पढ़ाएगा।

इतना कुछ होने के बाद भी यहाँ इस समय 102 बच्चों का नामांकन है, प्राथमिक विद्यालय की सहायक अध्यापिका आराधना सिंह गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “बच्चों को पढ़ने में बड़ा मजा आता हैं, वह जिस परिवेश से आते हैं, उस परिवेश के बारे में हम सब कुछ जानते हैं, उनके घर-परिवार के बारे में भी जान जाते हैं, तभी तो हम उसी हिसाब से बच्चों को भी पढ़ाते हैं।”

आराधना शायद इसीलिए बच्चों की सबसे पसंदीदा टीचर हैं, क्योंकि उनकी तमाम विशेषताओं में सबसे बड़ी विशेषता है उनका बेहद संवेदनशील होना। वो समय-समय पर गाँव में जाकर अभिभावकों से मिलती रहती हैं और पैरेंट-टीचर मीटिंग में उन्हें स्कूल भी बुलाती रहती हैं।

कविताओं और कहानियों के ज़रिए बच्चों को पढ़ाती हैं, तभी तो कोई बच्चा छुट्टी नहीं लेना चाहता है। वो आगे कहती हैं, “पहले बच्चे स्कूल ही नहीं आना चाहते थे और न ही पढ़ने में रुचि लेते थे, लेकिन जब से हमने तरह-तरह की एक्टिविटी शुरू की तब से बच्चे उसमें हिस्सा भी लेते हैं और स्कूल भी आना चाहते हैं।”

“बच्चे तो अब छुट्टी भी नहीं लेना चाहते हैं और किसी दिन अगर छुट्टी ले भी ली और एक्टिविटी मिस कर दी तो अगले दिन जब आते हैं, तो सबसे पहले यही पूछते हैं कि कल स्कूल में क्या हुआ था। ” आराधना सिंह ने आगे कहा।

यहाँ के शिक्षकों और अभिभावकों का कहना है कि अगर नदी पर छोटा सा भी पुल जाए तो बच्चों को पढ़ाई के लिए ऐसे परेशान नहीं होना पड़ेगा।

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