आज आपने नाश्ते में क्या खाया? कुछ ऐसे आसान सवालों से एक टीचर ने बच्चों को फिर से स्कूल से जोड़ दिया

कोविड-19 महामारी के कारण, स्कूल 18 महीने तक बंद रहे। स्कूल शिक्षकों के लिए बच्चों को दोबारा उनकी क्लास में लाना एक बड़ी चुनौती थी। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक शिक्षिका ने बड़ी होशियारी से अपनी पाठ योजनाओं का इस्तेमाल किया और स्कूल से दूर भाग रहे छात्रों को फिर स्कूल तक लाने में कामयाब रहीं।
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चरगांवा (गोरखपुर), उत्तर प्रदेश। सितंबर, 2021 में, जब कोविड रोकने के लिए बड़े पैमाने पर लगाए गए प्रतिबंधों में ढील दी गई और 18 महीने के बाद स्कूल फिर से खोले गए, तो उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक प्राइमरी स्कूल की टीचर गीता सिंह को अपने सामने एक बड़ी चुनौती का अहसास हुआ।

“छात्र बिना कोई रिस्पांस दिए क्लास में बैठे रहते थे। वे बमुश्किल ही किसी सवाल का जवाब देते थे।” प्राथमिक विद्यालय चरगाँवा की 46 वर्षीय प्रधानाध्यापिका ने गाँव कनेक्शन को बताया। वह आगे कहती हैं, “ऐसा लग रहा था मानो उनका बाहरी दुनिया से संपर्क टूट गया हो… महामारी ने ज़ाहिर तौर पर उन्हें बहुत परेशान कर दिया था।”

लेकिन महज़ दो साल बाद, गोरखपुर की गलियों में बना ये प्राइमरी स्कूल उदास सन्नाटे से चहकती कक्षाओं में बदल गया है। यहाँ अब छात्र गीत गाते हैं और कविताएँ सुनाते हैं। क्विज़ और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं।

गीता सिंह के मुताबिक, इसका श्रेय जुलाई 2021 में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए निपुण (कक्षा एक से तीन तक के छात्रों में मूलभूत साक्षरता और नंबरों को समझने के कौशल को मज़बूत करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी योजना) कार्यक्रम के तहत तैयार की गई पाठ योजनाओं को जाता है। यह कार्यक्रम प्रारंभिक शिक्षा और बुनियादी स्तर पर पढ़ने, लिखने और अंकगणित में दक्षता को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।

प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका ने बताया, “कार्यक्रम विशेष रूप से उन तरीकों के बारे में विस्तार से बताता है जिनसे शिक्षण को अधिक कुशल बनाया जा सकता है और छात्रों के साथ जुड़ाव में भी मदद मिल सकती है।” उन्होंने कहा कि यह उन छात्रों के लिए काम आया जो इतने लंबे समय से स्कूल से दूर थे।

शर्मीलेपन से बाहर निकालना

उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग ने राज्य के प्राइमरी स्कूलों को दी जाने वाली टीचर्स गाइड (शिक्षक की मार्गदर्शिकाएँ) में वस्तुनिष्ठ और व्यक्तिपरक प्रश्नों के इस्तेमाल की मज़बूती के साथ सिफारिश की है।

दो टीचर्स गाईड्स- आधारशिला (बुनियादी शिक्षा) और ध्यानकर्षण (ध्यानपूर्वक सीखना) शिक्षकों की मदद करते हैं।

उन्होंने कहा, “हम बच्चों से दो तरह के सवाल पूछते हैं। ‘वस्तुनिष्ठ’ प्रश्न उन्हें कक्षा में बोलने में मदद करते हैं, क्योंकि उत्तर आमतौर पर एक या दो शब्दों से अधिक नहीं होते हैं और इसलिए वो सवाल उन्हें डराते नहीं है। ‘व्यक्तिपरक’ प्रश्न छात्रों को लंबे डिस्कशन और कक्षा वार्तालापों में खुद को अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।”

उन्होंने कलश जयसवाल और प्रियांशु की ओर इशारा किया। इन बच्चों को हाल ही में कक्षा तीन में पदोन्नत किया गया था। गीता सिंह ने कहा कि जब वे कक्षा एक में महामारी के बाद स्कूल आए तो इन बच्चों की संख्या काफी कम थी।

शिक्षिका ने कहा, “उन्हें स्कूल में बनाए रखना एक मुश्किल काम था, क्योंकि वे घर वापस भागने का कोई मौका नहीं चूकते थे। बच्चे आपस में घुलमिल नहीं रहे थे। वे पूरे दिन मास्क पहने रहते थे, तब भी जब उन्हें इसकी ज़रूरत नहीं थी। इन बच्चों में एक डर बैठा हुआ था।”

18 महीने के अंतराल के बाद स्कूल वापस आने से बच्चे बेचैन हो गए थे। उन्होंने याद करते हुए कहा, “वे कक्षा में सवालों के जवाब नहीं देते थे, बल्कि उनमें से कई ने अपने सहपाठियों से बात भी नहीं की।”

लेकिन जिन वस्तुनिष्ठ सवालों के लिए सिर्फ उनकी थोड़ी सी प्रतिक्रिया की ज़रूरत थी और बस यह योजना काम कर गई।

उन्होंने बताया, “आपने नाश्ते में क्या खाया’, ‘आपको कौन सा कार्टून सबसे ज्यादा पसंद है’, ‘आपका पसंदीदा फल कौन सा है’, जैसे सवालों ने उन्हें सहज बनाने में मदद की। इससे कक्षा में मुझे उनकी उपस्थिति बनाए रखने में मदद मिली।”

अक्सर स्कूल से भाग जाने वाले कलश जयसवाल ने बताया कि वह महामारी के दौरान घर पर बहुत ऊब गया था। वह क्या करें और क्या न करें से काफी परेशान था।

जायसवाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मुझे घर पर हर समय डाँटा जाता था… लगातार याद दिलाया जाता था कि मास्क पहनना चाहिए या खाने से पहले हाथ धोना चाहिए। मम्मी और पापा हमें सुरक्षित रखना चाहते थे लेकिन मैं कुछ न करने के कारण ऊब गया था। मैं ज़्यादातर समय अपने कमरे में रहता था और टीवी देखता था और फोन पर गेम खेलता था।”

जब डेढ़ साल बाद शैक्षणिक संस्थान फिर से खुले तो उन्हें घर के अंदर रहने और शो देखने और गेम खेलने की दिनचर्या को छोड़ना पड़ा और स्कूल लौटना पड़ा।

उसने बताया, “मैं स्कूल नहीं आना चाहता था। मुझे घर पर रहना अच्छा लगता था, लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे जाने के लिए मज़बूर किया। मैं हर दिन बहाने सोचता था। लेकिन, मैंने क्लास में दोस्त बनाए और कुछ समय बाद मुझे स्कूल आना अच्छा लगने लगा।”

एक बार जब वस्तुनिष्ठ सवाल अपने मकसद में कामयाब होने लगे, तो गीता सिंह ने व्यक्तिपरक प्रश्नों की ओर कदम बढ़ाया। इसमें बच्चों को लंबे-लंबे जवाब देने की ज़रूरत थी। यहाँ एक शब्द से काम नहीं चलने वाला था। अब उन्हें पूरे वाक्यों में बोलना था और चीजों का अधिक विस्तार से बताना था।

कल्पनाओं की उड़ान

जैसा कि पाठ योजनाओं द्वारा निर्देशित है, व्यक्तिपरक प्रश्नों का मकसद छात्रों की वर्णनात्मक और कल्पनाशील क्षमताओं को बढ़ाना है।

गीता सिंह मुस्कुराईं, “जब मैं उनसे किसी मंदिर या किसी मेले या पिकनिक की यात्रा के बारे में पूछती थी, तो वे उत्साहित हो जाते थे।” उनसे काफी सोच-समझकर सवाल पूछे जाते थे। उन्होंने कहा, “उन्हें पाठ्यक्रम से जुड़ी किसी चीज़ के बारे में बात करने की कोशिश करने के बजाय उनके निजी जीवन और रुचियों के बारे में बताने के लिए कहा जाता था।”

कक्षा में ‘सवाल-जवाब’ सत्र धीरे-धीरे गति पकड़ते गए और जब भी कोई छात्र किसी सवाल का बिना रुके और हिचके जवाब देता, तो दूसरों को उसकी सराहना करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।

शिक्षक ने गर्व से कहा, “ये समूह गतिविधियाँ काफी सरल हैं। छात्रों को कक्षा में खुलकर बोलने और सहभागी बनाने के लिए काफी काम में आईं। आज कलश और प्रियांशु अपनी कक्षा में सबसे बातूनी छात्र हैं।”

प्रियांशु ने कहा, “मुझे अब स्कूल आना पसंद है और छुट्टियों में स्कूल की बहुत याद आती है। मेरे स्कूल में एक स्मार्ट क्लास बन रही है और जल्द ही हमें एक बड़े से टीवी पर अपने पसंदीदा कार्टून देखने को मिलेंगे।”

प्राथमिक विद्यालय चरगाँवा में कक्षा तीन में पढ़ने वाले आर्यन की 32 वर्षीय माँ खुशबू निगम को इससे काफी राहत मिली है। उन्होंने कहा, “कोरोना एक अंधकारमय समय था। मुझे आर्यन की चिंता थी। वह मेधावी है लेकिन वह इतने लंबे समय से घर पर बैठे रहने के बाद, पढ़ाई करना भूलता जा रहा था। हमने उसे सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाया और वहाँ शिक्षा की गुणवत्ता देखकर हमें काफी हैरानी हुई है।”

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