गाँव मित्र की मदद से मलकानगिरी में फिर स्कूल जाने लगे घर बैठे आदिवासी बच्चे

ओडिशा के मलकानगिरी के दूर दराज के गाँवों में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव आ रहा है। इसके पीछे हाथ है गाँव मित्रों का, जिनकी कोशिशों से प्रवासी मज़दूरों के बच्चे फिर से स्कूल जाने लगे हैं। कोविड महामारी के दौरान काफ़ी बच्चों का स्कूल छूट गया था। कम्युनिटी वॉलिंटियर द्वारा चल रहे इन केंद्रों पर अलग से कक्षाएँ चलती हैं, जिससे बच्चे एक बार फिर स्कूल जाने को तैयार हो जाएँ।
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गुप्ता मांझी ढुंगियापुट उच्च प्राथमिक विद्यालय में आठवीं कक्षा में थे, जब मार्च 2020 में कोविड लॉकडाउन हुआ। उनके पिता, जो पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में एक मज़दूर के रूप में काम करते थे, ओड़िशा के मलकानगिरी के ढुंगियापुट गाँव लौट आए। गाँव में कोई काम नहीं था और डोरा समुदाय का परिवार पैसों की तंगी से जूझ रहा था।

परिवार का हाथ बँटाने के लिए 13 साल का गुप्ता खेतिहर मज़दूर बन गया और दो साल बाद जब फरवरी, 2022 में उसका स्कूल खुला तो वो पढ़ाई नहीं करना चाहता था।

“मुझे स्कूल जाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि मुझे अपने परिवार की मदद के लिए कमाने की ज़रूरत थी। लॉकडाउन के समय ही मैं काम खोजने आंध्र प्रदेश भी चला गया था।” 15 साल के गुप्ता ने गाँव कनेक्शन को बताया।

लेकिन एक बार फिर गुप्ता स्कूल वापस आ गया है और बीच में छूट गई पढ़ाई को फिर से शुरू कर दिया है। ढुंगियापुट गाँव के सामुदायिक शिक्षा केंद्र की गाँव मित्र गीता प्रधानी को शुक्रिया, जिनके प्रयासों से गुप्ता की तरह, कई गाँव के बच्चे जो महामारी के दौरान स्कूल से बाहर हो गए थे, अब अपनी पढ़ाई कर रहे हैं।

एक साल पहले मल्कानगिरी के मैथिली प्रखंड के तहत आने वाले 45 गाँवों में 15 शिक्षण केंद्र स्थापित किए गए थे। वे जून 2022 में सेंटर फॉर यूथ एंड सोशल डेवलपमेंट (सीवाईएसडी ) के परियोजना समाधान के सहयोग से स्थापित किए गए थे, जो एक गैर-लाभकारी संस्था है और ओड़िशा में पिछड़े समुदायों के सामाजिक और शैक्षिक उत्थान के लिए काम करती है।

शिक्षकों को संबंधित समुदायों से चुना गया और गाँव मित्र के रूप में नामित किया गया, जिसका अर्थ है गाँव के दोस्त, जोकि घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करते हैं। गीता प्रधानी को ढुंगियापुट गाँव में शिक्षा केंद्र के ग्राम मित्र के रूप में चुना गया था।

“गुप्ता को केंद्र तक लाने के लिए कुछ दिनों तक काफी समझाना पड़ा। पहले हफ्ते तो मैं गाँव में जाकर ढूँढती और इसे यहाँ लेकर आती, लेकिन एक समय बाद वो खुद से यहाँ आने लगा।” प्रधानी ने गाँव कनेक्शन को मुस्कुराते हुए बताया।

ये शिक्षण केंद्र स्कूल छोड़कर घर बैठे बच्चों को शिक्षा के साथ महामारी में पीछे छोड़े गए सीखने के अंतर को पाटने का दूसरा मौका दे रहे हैं। 15 शिक्षण केंद्रों में लगभग 1238 छात्र-छात्राएँ हैं। ये औपचारिक स्कूल नहीं हैं, बल्कि सामुदायिक हॉल या आंगनवाड़ी केंद्रों या यहाँ तक कि गाँव मित्र के घरों में भी केंद्र चलाए जाते हैं। वे नियमित पाठ्यक्रमों की मुफ्त कोचिंग देते हैं।

“मैं स्कूल जाने से डरता था क्योंकि मैं वह सब भूल गया था जो मैंने वहाँ सीखा था। लेकिन, 15-20 दिनों के लिए केंद्र के क्लास में जाने के बाद, मुझमें स्कूल लौटने के लिए आत्मविश्वास महसूस हुआ। मैं इस साल मार्च में वार्षिक परीक्षा में शामिल हुआ और मुझे नौवीं कक्षा में पदोन्नत कर दिया गया।” गुप्ता ने कहा।

गुप्ता माँझी ने आगे कहा, “अब, मुझे पढ़ाई करना अच्छा लगता है और मैं एक शिक्षक बनना चाहता हूँ और संगीत भी सीखना चाहता हूं। गीता मैम के आभारी हैं कि उन्होंने मुझे और मेरे जैसे दूसरे बच्चों में रुचि ली और मदद की।”

मलकानगिरी में विकास के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता परशुराम प्रधान ने गाँव कनेक्शन को बताया, “गुप्ता जैसे कई बच्चे हैं, जिन्होंने कोविड-प्रेरित लॉकडाउन के दौरान अपने माता-पिता के रिवर्स माइग्रेशन के बाद प्रवासी मजदूरों के रूप में काम किया।”

“लौटने वाले प्रवासियों के कई बच्चे स्कूलों में दाखिला नहीं ले सके क्योंकि उनके पास जन्म प्रमाण पत्र और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज नहीं थे। गाँव मित्र ने उन्हें संबंधित अधिकारियों से उनके दस्तावेज़ प्राप्त करने में मदद की, और यह सुनिश्चित किया कि बच्चों का स्कूलों में नामांकन हो।” परशुराम प्रधान ने कहा।

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 63 मिलियन बाल प्रवासी हैं। COVID-19 के प्रकोप से पहले ही प्रवासी बच्चों और प्रवासी मजदूरों के बच्चों की शैक्षिक स्थिति चरमरा गई थी।

यूनेस्को ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2019 के अनुसार, प्रवासी ग्रामीण परिवारों में पले-बढ़े युवाओं में से 28 प्रतिशत की पहचान निरक्षर या अधूरी प्राथमिक शिक्षा के रूप में की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि मौसमी प्रवासी परिवारों के 40 फीसदी बच्चों के स्कूल जाने के बजाय काम पर जाने की संभावना है।

ओड़शा में मल्कानगिरी शैक्षिक रूप से पिछड़े जिलों में से एक है, जिसकी साक्षरता दर 72.87 प्रतिशत की राज्य दर के मुकाबले 50 प्रतिशत से कम है, जैसा कि 2011 की जनगणना में दर्ज किया गया था।

कोविड महामारी ने प्रवासी श्रमिकों के परिवारों के लिए इसे और भी बदतर बना दिया क्योंकि उनके बच्चे कई मामलों में पीछे रह गए और उन्हें शिक्षा की धारा में वापस आने में मुश्किल हो रही थी।

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