घाटी के बच्चों में क्यों बढ़ रहा है फुटबॉल का जुनून

फुटबॉल के अभ्यास के लिए बचपन में 23 किलोमीटर दूर मैदान तक चलकर जाने वाला शख़्स, अब जम्मू और कश्मीर में माराडोना और मेसी तैयार कर रहा है। गांदरबल में इस सरकारी स्कूल टीचर के फुटबॉल प्रेम ने बच्चों और युवाओं को जीवन का नया 'गोल'दे दिया है।
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गांदरबल, जम्मू और कश्मीर

गांदरबल में गोगजीगुंड गाँव के मुज़ामिल महमूद के लिए फुटबॉल ही अब सब कुछ है। यहाँ के प्राइमरी स्कूल में बच्चों को फुटबॉल के गुर सिखाने से ज़्यादा उन्हें किसी चीज से प्यार नहीं है। वे यहाँ स्कूल टीचर के अलावा बच्चों के फुटबॉल कोच भी हैं।

42 साल के मुज़ामिल के पास एशियन फुटबॉल कॉन्फ़ेडरेशन से कोच का लाइसेंस भी है,जो किसी भी राष्ट्रीय टूर्नामेंट के लिए कोच की मान्यता देता है। लेकिन उनका पहला प्यार स्कूल के बच्चों को बेहतर फुटबॉल खिलाड़ी बनाना है। बच्चों में इस खेल का जुनून बनाए रखने के लिए मुज़ामिल ने गांदरबल में फुटबॉल क्लब की स्थापना तक कर दी है।

मुज़ामिल चाहते हैं उनके बचपन में जिन अवसरों और सहयोग की कमी रही, वे सब अब फुटबॉल खेलने वालों को उनके ज़रिए मिल सके।

फुटबॉल सीखने वाले बच्चों की मदद के लिए दोस्तों से उधार पैसे लेने में कोई संकोच नहीं करते हैं।

फुटबॉल सीखने वाले बच्चों की मदद के लिए दोस्तों से उधार पैसे लेने में कोई संकोच नहीं करते हैं।

“मैं घँटों मैदान में फुटबॉल का अभ्यास करता था, लेकिन कोई ज़्यादा ध्यान नहीं देता था,क्योंकि उन दिनों फुटबॉल में करियर बनाने की बात कोई नहीं सुनना चाहता था। मुझे कोई सिखाने वाला नहीं था।” मुज़ामिल अपने गुज़रे दिन याद करते हुए कहते हैं।

बच्चों को शिद्दत से इस खेल की बारीकियाँ बताने और अभ्यास पर उनके ज़ोर के पीछे एक बड़ी वजह यही है।

“मैं 23 किलोमीटर दूर चलकर श्रीनगर के फुटबॉल मैदान जाता था, ताकि नज़रों से दूर फुटबॉल की प्रेक्टिस (अभ्यास) कर सकूँ। मेरे गाँव में उन दिनों कोई मेरी तरह बताने या सिखाने वाला नहीं था।” फुटबॉल कोच ने कहा।

“गांदरबल के फुटबॉल क्लब में दो उम्र वर्ग के बच्चों को ट्रेनिंग दे रहा हूँ, जिनमें 12 और 16 उम्र तक के छात्रों के दो ग्रुप हैं। ये सभी स्कूल खुलने से पहले या उसके बंद होने के बाद आते हैं।” वे कहते हैं यहाँ सैकड़ों बच्चे फुटबॉल की ट्रेनिंग के साथ खेल का आनंद भी लेते हैं।

मुज़ामिल चाहते हैं उनके बचपन में जिन अवसरों और सहयोग की कमी रही, वे सब अब फुटबॉल खेलने वालों को उनके ज़रिए मिल सके।

मुज़ामिल चाहते हैं उनके बचपन में जिन अवसरों और सहयोग की कमी रही, वे सब अब फुटबॉल खेलने वालों को उनके ज़रिए मिल सके।

“मैं किस्मतवाला हूँ मुझे मुज़ामिल सर जैसे कोच मिले हैं, ऐसे वक़्त में जब लड़के बड़े होते ही ग़लत रास्ते पर चल देते हैं वे हमें यहाँ कड़ी मेहनत से बेहतर माहौल में हमारा भविष्य बना रहे हैं।” गांदरबल में फुटबॉल क्लब के 16 साल के खिलाड़ी फ़ाज़िल युसूफ ने गाँव कनेक्शन को बताया।

वे कहते हैं, “मैं दो साल से यहाँ ट्रेनिंग ले रहा हूँ, मुझे दूसरे राज्यों में भी खेलने का मौका मिला है इसे बड़ी बात मानता हूँ।”

टीचर से फुटबॉल कोच तक का सफ़र

बतौर अँग्रेजी टीचर साल 2002 में मुज़ामिल जब गांदरबल के सरकारी प्राइमरी स्कूल में नियुक्त हुए, तो कम लोगों को ही उनके दूसरे हुनर की भी ख़बर थी। लेकिन फुटबॉल के प्रति उनका प्रेम और जुनून ही कुछ ऐसा है कि उन्होंने बच्चों को पढ़ाई के साथ इस खेल से भी जोड़ दिया। 2007 में जम्मू और कश्मीर में फुटबॉल को बढ़ावा देने के लिए उन्हें बेस्ट कोच का अवार्ड दिया गया।

मुज़ामिल की ख़ुशी तब और बढ़ गई जब चार साल बाद 2011 में उन्हें ब्राज़ील जाने का मौका मिला। ये मुमकिन हुआ अर्जेंटीना के फुटबॉल कोच जुआन मार्कोस ट्रोइया के कारण। जो 2006 से 2012 के बीच प्रतिभावान बच्चों की तलाश और प्रशिक्षण के लिए कश्मीर आए थे। उस दौरान वे मुज़ामिल से मिलकर इतने प्रभावित हुए कि उन्हें ब्राज़ील में एक महीने फुटबॉल कोच की अच्छी पढ़ाई का अवसर दिया।

ब्राज़ील से लौटने के बाद ही मुज़ामिल ने गांदरबल में फुटबॉल क्लब खोल दिया। वे कहते हैं, “मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ, टीचर के साथ एक कोच भी हूँ। इससे मुझे अलग- अलग बच्चों से जुड़ने और उन्हें फुटबॉल के अपने गुर उन्हें सिखाने का मौका मिलता है।”

“मेरे घरवाले चाहते थे मैं कुछ और करने की बजाए परिवार की ज़मीन पर ही कुछ करूँ, सब मेरे ख़िलाफ़ थे। अब सोचता हूँ मेरा फ़ैसला सही था।” फुटबॉल कोच मुज़ामिल ने मुस्कुराते हुए कहा।

ऐसे बढ़ा फुटबॉल का जुनून

मुज़ामिल ने बड़े दिलचस्प तरीके से स्कूली बच्चों का फुटबॉल की तरफ रुझान बढ़ाया। अलग- अलग स्कूलों में गए और बच्चों को अपने -अपने स्कूल की तरफ से एक दूसरे के बीच टीम बनाकर खेलने के लिए तैयार किया।

फुटबॉल क्लब से प्रशिक्षित गोगजीगुंड गाँव के 15 साल के जुनैद जावेद कहते हैं” मुझे नहीं लगता मुज़ामिल सर जैसा कोई दूसरा बड़ा कोच शहर से दूर गाँव के बच्चों को इस तरह क्लब में फुटबॉल की बारीकियाँ सिखाता।”

यहाँ के स्कूल में बच्चों को फुटबॉल के गुर सिखाने से ज़्यादा उन्हें किसी चीज से प्यार नहीं है। वे यहाँ स्कूल टीचर के अलावा बच्चों के फुटबॉल कोच भी हैं।

यहाँ के स्कूल में बच्चों को फुटबॉल के गुर सिखाने से ज़्यादा उन्हें किसी चीज से प्यार नहीं है। वे यहाँ स्कूल टीचर के अलावा बच्चों के फुटबॉल कोच भी हैं।

फुटबॉल को लेकर मुज़ामिल का प्रेम किस हद तक है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे अपनी तनख़्वाह से ग़रीब बच्चों को ड्रेस, जूते और खेल के सामान खरीद कर देते हैं। फुटबॉल सीखने वाले बच्चों की मदद के लिए दोस्तों से उधार पैसे लेने में कोई संकोच नहीं करते हैं।

“मैं अगर इंटरनेशनल कोच भी बना तो मेरे गाँव के बच्चों के प्रति मेरा प्रेम कभी नहीं बदलेगा, मेरा मक़सद पैसा या शोहरत कमाना नहीं है बल्कि युवा लड़कों को फुटबॉल से जोड़ना है।” मुज़ामिल कहते हैं ।

वे कहते हैं, “जब उन्होंने 2011 में फुटबॉल क्लब में कोचिंग शुरू की थी तब वे अकेले थे, आज उनके साथ तीन और कोच हैं जो उनके फुटबॉल क्लब के पूर्व छात्र हैं।

मुज़ामिल का मानना है कि खेल हर किसी के जीवन का हिस्सा होना चाहिए। वे कहते हैं दूसरे राज्यों के लोगों को भी कश्मीर में आकर देखना चाहिए कैसे प्रतिभावान युवा खिलाड़ी शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। इससे राज्य में निवेश तो बढ़ेगा ही, खेल अकादमियों के और खुलने से बच्चों के लिए अवसर भी बढ़ेंगे।   

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