दिन में मास्टर जी और रात होते ही मेहनती किसान हो जाते हैं जयकरण वर्मा

सर्द रातों में जब ज्यादातर लोग अपनी रजाई के नीचे दुबके रहते हैं, उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में एक टीचर अपने खेत की ओर रुख करता है। आवारा मवेशियों से अपनी फसल को बचाने के लिए वह कंबल और टॉर्च के साथ अस्थायी मचान में अपनी पूरी रात गुजारते हैं। गाँव कनेक्शन ने जनवरी की एक सर्द रात जयकरण वर्मा के साथ उनके एक एकड़ खेत में बिताई-
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नंदा पुरवा (बाराबंकी), उत्तर प्रदेश। जयकरण वर्मा उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के नंदा पुरवा गाँव के रहने वाले हैं। गाँव में सभी उन्हें मास्टर जी के नाम से जानते हैं। वह सात साल से परमेश्वर इंटर कॉलेज में शिक्षक हैं।

“वह हमेशा समय पर आते हैं। मुझे हैरानी होती है कि वह अपने काम को इतने बेहतर तरीके से कैसे मैनेज कर पाते हैं, “कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल नीरज वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, वाइस-प्रिंसिपल की हैरानी बेवजह नहीं है। दरअसल जयकरण पेशे से एक मास्टरजी है, लेकिन इसके साथ-साथ वह एक किसान भी हैं, जो अपनी रातें खेत में आवारा मवेशियों से अपनी फसलों की रखवाली में बिताते हैं। उप-प्रधानाचार्य ने बताया कि बावजूद इसके वह कभी स्कूल से छुट्टी नहीं लेते।

40 साल के शिक्षक वर्मा ने कहा, “प्राइवेट स्कूल के टीचर को ज्यादा पैसा नहीं मिलता है। खेतों की रखवाली लिए मैं मजदूर नहीं लगा सकता हूं। इसलिए मेरे लिए आराम एक लग्जरी है। मुझे अपने खेतों में काम करना ही पड़ेगा।” जयकरन के पास एक एकड़ (लगभग आधा हेक्टेयर) जमीन है, जिसमें वह सरसों और गेहूं जैसी फसलें उगाते हैं ताकि अपनी आमदनी बढ़ा सके।

सुबह 2.30 बजे वर्मा थोड़ी सी नींद लेने के लिए घर वापस आ जाते हैं। उन्हें सुबह साढ़े पांच बजे फिर उठना पड़ता है और आठ किलोमीटर दूर स्कूल जाने की तैयारी करनी पड़ती है।

सुबह 2.30 बजे वर्मा थोड़ी सी नींद लेने के लिए घर वापस आ जाते हैं। उन्हें सुबह साढ़े पांच बजे फिर उठना पड़ता है और आठ किलोमीटर दूर स्कूल जाने की तैयारी करनी पड़ती है।

शाम 4 बजे स्कूल से घर लौटने के बाद जयकरन दोपहर का खाना खाते हैं और खेतों में जाने से पहले एक छोटी सी झपकी लेते हैं। 22 जनवरी की सर्द रात में भी वह घर पर नहीं रुके थे। आवारा पशुओं को भगाने के लिए हाथ में टॉर्च और डंडा लिए अपने खेत की ओर निकल पड़े। इस दिन न सिर्फ तापमान 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास बना हुआ था, बल्कि हल्की बारिश भी हो रही थी। फूस की छत और प्लास्टिक की पतली चादर से ढकी कच्ची झोपड़ी ही रात में उनका बसेरा थी।

अपनी मचान पर पहुंचते ही जयकरन ने कुछ सूखी टहनियों को इकट्ठा करके अलाव जला दिया। वह अपने आपको हर संभव तरीके से गर्म रखने की कोशिश कर रहे थे।

वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “आवारा मवेशी हमारे लिए लंबे समय से एक बड़ा सिरदर्द बने हुए हैं। इनकी संख्या कई गुना बढ़ गई है। अब चाहे जाड़ा हो, गर्मी हो या बरसात। मुझे रात को अपने खेत की रखवाली करनी ही पड़ती है। नहीं तो जानवर उसे चर लेंगे और मेरा पैसा व मेहनत सब बर्बाद हो जाएगा।”

तड़के सुबह 2.30 बजे वर्मा थोड़ी सी नींद लेने के लिए घर वापस आ जाते हैं। उन्हें सुबह साढ़े पांच बजे फिर उठना पड़ता है और आठ किलोमीटर दूर स्कूल जाने की तैयारी करनी पड़ती है।

थके-हारे किसान और शिक्षक ने आह भरते हुए कहा, “काश मैं जीवन में और ज्यादा नींद ले पाता।”

गाँव में सभी उन्हें मास्टर जी के नाम से जानते हैं। वह सात साल से परमेश्वर इंटर कॉलेज में शिक्षक हैं।

गाँव में सभी उन्हें मास्टर जी के नाम से जानते हैं। वह सात साल से परमेश्वर इंटर कॉलेज में शिक्षक हैं।

वर्मा अकेले नहीं हैं जो छुट्टा पशुओं की समस्या से जूझ रहे हैं। भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में सैकड़ों हजारों किसानों को रोजाना इस समस्या से दो-चार होना पड़ता है। ये छुट्टा पशु उनकी फसलों को बर्बाद कर देते हैं। 20वीं पशुधन गणना-2019 अखिल भारतीय रिपोर्ट के तहत संकलित आंकड़ों पर एक सरसरी नजर डालने से उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की बढ़ती समस्या का पता चलता है।

एक तरफ तो 2012 से लेकर 2019 तक पूरे देश में आवारा पशुओं की कुल संख्या में 3.2 फीसदी की कमी आई है, वहीं उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी में 17.34 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज की गई है। 2019 के पशुधन जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 11.8 लाख से अधिक आवारा मवेशी थे।

आवारा पशुओं की बढ़ती समस्या को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने कई योजनाओं और परियोजनाओं की शुरुआत की है। इनमें पशु आश्रयों (गौशाला) की स्थापना, आवारा गायों को गोद लेना, कर लगाना, कुपोषित परिवारों को आवारा गाय देना, गौ संरक्षण केंद्र, और बहुत कुछ शामिल हैं।

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