हुसैनपुर (नालंदा), बिहार। प्राचीन भारत में नालंदा यूनिवर्सिटी की उत्कृष्ट शिक्षा पद्धति से प्रेरित होकर इंजीनियर मोनू कुमार ने अपनी नौकरी छोड़ दी और बिहार के नालंदा जिले के हुसैनपुर गाँव में एक ‘गुरुकुल’ शुरू किया। वह 2021 से नालंदा के रहुई प्रखंड की पेशौर पंचायत के गाँवों से आने वाले छात्रों को फ्री में पढ़ा रहे हैं।
मोनू कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हम उन्हें साइंस, मैथ, फिलॉस्फी, मेटा फिजिक्स, इतिहास, संस्कृत व्याकरण, हिंदी आदि पढ़ाते हैं। उन्हें रामानुजन, बुद्ध, विवेकानंद, आर्यभट्ट और अन्य व्यक्तित्वों के बारे में भी बताया जाता है। बच्चों के सिलेबस से जुड़ी किताबों को हम हाथ तक नहीं लगाते हैं।”
उनके मुताबिक, अगर छात्र प्राचीन ग्रंथों जैसे वेदांत, भगवत गीता, उपनिषद आदि के बारे में सीखेंगे, तो उनके बौद्धिक स्तर में बढ़ोतरी होगी। हम ‘अ’ से अनार नहीं बल्कि ‘अ’ फॉर अब्दुल कलाम और अर्जुन सिखाते हैं।” उन्होंने मुस्कराते हुए कहा कि वे प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की पुरानी शैक्षणिक प्रणाली को फिर से जिंदा करना चाहते हैं।
पांचवीं शताब्दी में मगध (अब पटना) में गुप्त वंश के दौरान स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय की ख्याति चारों ओर फैली हुई थी। उस समय नालांदा यूनिवर्सिटी में लगभग 2,000 शिक्षक और 10,000 छात्र संस्कृत, व्याकरण, चिकित्सा, गणित और अन्य विषयों की पढ़ाई कर रहे थे। 13वीं शताब्दी में मोहम्मद बख्तियार खिलजी ने आक्रमण किया और इसे पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया। उसके बाद इसे आंशिक रूप से बहाल किया गया और यह 1400 तक अस्तित्व में बना रहा। आज यह यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) विश्व धरोहर स्थल है।
शुरू किया है अलग पाठ्यक्रम
मोनू कुमार ने गणित, इतिहास और भारतीय संस्कृति और परंपरा के साथ वेदांत को जोड़ते हुए एक अलग पाठ्यक्रम तैयार किया है। जो छात्र पढ़ना और लिखना जानते हैं वे गुरुकुल में शामिल हो सकते हैं।
मौजूदा समय में 11 छात्र स्कूल में पढ़ रहे हैं, जिनमें पांच लड़कियां हैं। 2021 से गुरुकुल ने 100 से ज्यादा छात्रों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की है। हुसैनपुर मिडिल स्कूल में नामांकित छात्र रोजाना तीन से चार घंटे गुरुकुल की कक्षाओं में भाग लेते हैं।
मोनू कुमार ने कहा, “हाई स्कूल पास करने के बाद भी गांवों के कई बच्चों का शैक्षणिक स्तर बहुत खराब है। वे गणित, विज्ञान, भारतीय संस्कृति आदि की बुनियादी बातों के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। और न ही उन्हें वेदांत, भगवत गीता, बाइबिल, आदि के बारे में कोई जानकारी है। मैं पुरानी शैक्षणिक प्रणाली और एडवांस डिजिटल तकनीक को एक साथ मिलाकर उनकी बुद्धि, ज्ञान और सोच की आदतों में सुधार करने की कोशिश कर रहा हूं।”
एडवांस लर्निंग
छात्रों को गुरुकुल में पढ़ना और पुरानी बातों को जानना काफी दिलचस्प लगता है। गुरुकुल में पढ़ने वाली सातवीं कक्षा की छात्रा पूजा कुमारी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं अब अपनी देश की समृद्ध और विविध संस्कृति के बारे में काफी कुछ जानती हूं। मुझे यह सब स्कूल में नहीं पढ़ाया गया था।”
एक अन्य छात्रा शांति कुमारी ने कहा कि वह बिहार की संस्कृति को लेकर बनी गलत धारणा को बदलना चाहती हैं। उसने कहा, “गुरुकुल में हम जो भी कुछ सीखते या जानते हैं, उसके बारे में अपने परिवार के सदस्यों और आस-पास के लोगों को भी उस ऐतिहासिक संस्कृति और उपलब्धियों के बारे में जागरूक करने का काम करेंगे। हम बिहारी परंपरा ( जिसे कमतर आंका जाता है) को लेकर आम आदमी की सोच और मानसिकता को बदलना चाहते हैं।”
आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले उदय कुमार ने कहा कि गुरुकुल में आने के बाद से वह अब इतिहास और सामान्य ज्ञान के बारे में काफी कुछ जानने लगे हैं।
मोनू कुमार ने बताया कि उनका मिशन छात्रों को परीक्षा पास करने के लिए पढ़ाने की बजाय उन्हें ‘ज्ञान’ देना है। वह कहते हैं, “इतिहास को न सिर्फ छात्रों को उनके अतीत के बारे में बताने के लिए पढ़ाया जा रहा है बल्कि उन्हें हमारे जीवन में इसके महत्व के बारे में बताया जा रहा है। उन्हें इतिहास रचने के लिए प्रेरित किया जा रहा है जैसा कि पहले हुआ था।”
मोनू कुमार ने कहा कि उनका सपना नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला यूनिवर्सिटी जैसे प्राचीन भारत के शिक्षण केंद्रों की उत्कृष्टता को फिर से वापस लेकर आना है।
उन्होंने कहा, ” प्राचीन काल में भारत अकादमिक उत्कृष्टता का केंद्र था और इसी तरह की परंपराओं को फिर से वापस लाने की कोशिश की जा रही है। एक बार फिर से बुद्ध या आर्यभट्ट का लाया जाना संभव है।”
इंजीनियर से बने टीचर
मोनू कुमार ने 2017 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से बीटेक पूरा किया। उन्हें पुरानी शिक्षा पद्धति को फिर से वापस लाने का जुनून था, इसलिए उन्होंने 2018-19 में चंडीगढ़ में पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी के स्वामी विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में एक वरिष्ठ व्याख्याता के रूप में काम किया। साल 2020 में वह बिहार में अपने गाँव वापस आ गए।
यहां आकर उन्होंने ‘गुरुकुल’ शुरू किया। अपने जीवन की जरूरतों को पूरा करने और गुरुकुल को बनाए रखने के लिए उन्होंने आईआईटी के इच्छुक हाई स्कूल के बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया। ये बच्चे जेईई का एग्जाम देना चाहते थे मगर पैसों की तंगी और सही टीचर न होने की वजह से आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। वह उन्हें पढ़ाने के बदले में उनसे नाममात्र की फीस लेते हैं।
मोनू कुमार ने कहा, “यह मेरे सफर की शुरुआत है। काफी चुनौतियां हैं, लेकिन मैं गुरुकुल का विस्तार करता रहूंगा। और जिस तरह से नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाता था, उसी तरीके से पढ़ाते हुए आगे बढ़ता रहूंगा। मेरा इरादा गुरुकुल को राज्य सरकार से रजिस्टर कराने का है ताकि छात्रों को व्यवस्थित तरीके से पढ़ाया जा सके।”
उन्होंने अपनी बात खत्म करते हुए कहा, “मैं गुरुकुल के जरिए एक अकादमिक क्रांति लाना चाहता हूं।”
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