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वृक्षों में भी हैं सेहत के राज़

India

आदिवासी मान्यताओं के अनुसार संसार में पाए जाने वाले हर एक पेड़-पौधे में कोई ना कोई औषधीय गुण जरूर होता है, ये बात अलग है कि औषधि विज्ञान के अत्याधुनिक हो जाने के बावजूद भी हजारों पेड़- पौधे ऐसे हैं जिनके औषधीय गुणों की जानकारी किसी को नहीं।

सामान्यत: यह मानना है कि छोटी शाक या जड़ी- बूटियों में ही ज्यादा औषधीय गुण पाए जाते हैं जबकि ऐसी सोच निर्रथक है, मध्यम आकार के पेड़ और बड़े- बड़े वृक्षों और उनके तमाम अंगों में गजब के औषधीय गुणों की भरमार होती है। जानतें हैं कुछ खास वृक्षों के औषधीय गुणों के बारे में..

पीपल

मुंह में छाले हो जाने की दशा में यदि पीपल की छाल और पत्तियों के चूर्ण से कुल्ला किया जाए तो आराम मिलता है। डाँगी आदिवासी पीपल की छाल घिसकर चर्म रोगों पर लगाने की राय देते हैं। कुष्ठ रोग में पीपल के पत्तों को कुचलकर रोगग्रस्त स्थान पर लगाया जाता है तथा पत्तों का रस तैयार कर पिलाया जाता है।

अशोक

ऐसा कहा जाता है कि जिस पेड़ के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे अशोक कहते हैं। अशोक की छाल को कूट-पीसकर कपड़े से छानकर रख लें, इसे 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर में आराम मिलता है। पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार महिलाएं अशोक की छाल 10 ग्राम को 250 ग्राम दूध में पकाकर सेवन करें तो माहवारी सम्बंधी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

अर्जुन

अर्जुन का पेड़ आमतौर पर जंगलों में पाया जाता है और यह धारियों-युक्त फलों की वजह से आसानी से पहचान में आता है। अर्जुन की छाल में अनेक प्रकार के रासायनिक तत्व पाये जाते हैं जिनमें से प्रमुख कैल्शियम कार्बोनेट, सोडियम और मैग्नीशियम प्रमुख है। आदिवासियों के अनुसार अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से ६ ग्राम गुड़, शहद या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार लेने से दिल के मरीजों को काफी फ़ायदा होता है। वैसे अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें इससे उच्च-रक्तचाप भी सामान्य हो जाता है।

कचनार 

पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार जोड़ों के दर्द और सूजन में आराम के लिए इसकी जड़ों को पानी में कुचलते हैं और फिर  इसे उबालते हैं। इस पानी को दर्द और सूजन वाले भागों पर बाहर से लेपित करने से काफी आराम मिलता है। मधुमेह की शिकायत होने पर रोगी को प्रतिदिन सुबह खाली पेट इसकी कच्ची कलियों का सेवन करना चाहिए।

नीम

नीम में मार्गोसीन, निम्बिडिन, निम्बोस्टेरोल, निम्बिनिन, स्टियरिक एसिड, ओलिव एसिड, पामिटिक एसिड, एल्केलाइड, ग्लूकोसाइड और वसा अम्ल आदि पाए जाते हैं। नीम की निबौलियों को पीसकर रस तैयार कर लिया जाए और इसे बालों पर लगाया जाए तो जंुए मर जाते हैं। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार नीम के गुलाबी कोमल पत्तों को चबाकर रस चूसने से मधुमेह रोग मे आराम मिलता है।

पलाश

पलाश के गोंद में थायमिन और रिबोफ़्लेविन जैसे रसायन पाए जाते है। पतले दस्त होने के हालात में यदि पलाश का गोंद खिलाया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिलता है। पलाश के बीजों को नींबूरस में पीसकर दाद, खाज और खुजली से ग्रसित अंगो पर लगाया जाए तो फ़ायदा होता है।

बरगद

पेशाब में जलन होने पर 10 ग्राम ग्राम बरगद की हवाई जड़ों का बारीक चूर्ण, सफ़ेद जीरा और इलायची (2-2 ग्राम) का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ लिया जाए तो अतिशीघ्र लाभ होता है। पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर दाद-खाज खुजली पर लेप लगाया जाए तो फायदा जरूर होता है।

बेल

बेल की पत्तियों मे टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम जैसे रसायन पाए जाते हैं। पत्तियों का रस यदि घाव पर लगाया जाए तो घाव अतिशीघ्र सूखने लगता है। गुजरात प्रांत के डांग जिले के आदिवासी बेल और सीताफल पत्रों की समान मात्रा मधुमेह के रोगियों को देते हैं। गर्मियों मे पसीने और तन की दुर्गंध को दूर भगाने के लिए यदि बेल की पत्तियों का रस नहाने के बाद शरीर पर लगा दिया जाए तो समस्या से छुटकारा मिल सकता है।

महारूख

इसकी छाल में ग्लोकारूबिन, ग्लोकारूबिनोन, एक्सेल्सिन, एलेन्टिक अम्ल, बीटा- सिटोस्टेराल जैसे महत्वपूर्ण रसायन पाए जाते हैं। इसकी छाल और पत्तियों का काढ़ा महिलाओं में प्रसव के बाद होने वाली दुर्बलता के लिए बेहतर माना जाता है। इसकी पत्तियों का रस 20 मिली, ताजे गीले नारियल को पीसकर तैयार किया गया दूध (40 मिली), मिश्री और शहद का मिश्रण पिलाने से प्रसूता महिला को ताकत मिलती है।

महुआ

आदिवासियों के अनुसार महुआ की छाल का काढ़ा तैयार कर प्रतिदिन 50 मिली लिया जाए तो चेहरे से झाईयां और दाग-धब्बे दूर हो जाते हैं। इसी काढ़े को त्वचा पर लगाया जाए तो फोड़े फुन्सियां आदि से छुटकारा मिल जाता है।

शीशम

इसकी फल्लियों में टैनिन खूब पाया जाता है, फल्लियों को सुखाकर चूर्ण बना लिया जाए और इस चूर्ण को घावों पर लगाया जाए तो घाव जल्द ही सूख जाते हैं। आदिवासी शीशम के पत्तों से बने तेल को भी घाव पर लगाते हैं, जिससे घाव जल्दी ठीक होता है, जिन महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान दर्द की शिकायत हो उन्हे 3 से 6 ग्राम शीशम की पत्तियों का चूर्ण लेना चाहिए।

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